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सीता हरण प्रसंग देख भावविभोर हुए श्रद्धालु

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मलीला के दौरान सीताहरण व शबरी प्रसंग नामक लीला का मंचन किया गया

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बक्सर

. श्री रामलीला समिति बक्सर द्वारा नगर के किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर आयोजित 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के दौरान तेरहवें दिन सोमवार को श्रीधाम वृंदावन से पधारी सुप्रसिद्ध रामलीला मण्डल श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला संस्थान के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय व्यास जी के सफल निर्देशन में देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान सीताहरण व शबरी प्रसंग नामक लीला का मंचन किया गया. जिसमें दिखाया गया कि सूर्पणखा का नाक कट जाने के बाद वह खर दूषण व त्रिसरा के पास विलाप करते हुए जाती है. खर दूषण श्रीराम से युद्ध करने आते हैं. जहां प्रभु श्रीराम उसका वध कर देते हैं. वध के बाद सूर्पणखा भयभीत होकर अपने भाई रावण के पास जाकर सारी बात बताती है. रावण मारीच को सोने का हिरण बनाकर पंचवटी मे जाता है. सीता जी स्वर्ण हिरण को देख कर मोहित हो जाती है और प्रभु श्रीराम से कहती है कि हे प्रभु आप मुझे यह सोने का हिरण ला दीजिये. हिरण बना मारीच श्रीराम को वन में दूर भटकाकर ले जाता है. इधर रावण साधु के वेश में सीता से भिक्षा लेने आता है. छल से सीता का हरण कर लेता है. तब रास्ते में सीता अपने आभूषण डाल देती है. मार्ग में जटायु रावण को रोकता है, लेकिन रावण उसके पंख काट देता है. इधर राम लक्ष्मण सीता को खोजते हुए जाते हैं तो जटायु रास्ते में घायल अवस्था में मिलता है. जटायु राम को बताता है कि रावण सीता का हरण कर ले गया. आगे चलने पर राम-लक्ष्मण को मार्ग में शबरी मिलती है. राम शबरी के आश्रम में पहुंचते हैं. शबरी जैसे ही लक्ष्मण के साथ राम को आया हुआ देखती है, हर्ष से उठ खड़ी होती है. उसकी आंखें प्रसन्नता से अश्रुपूरित हो जाती हैं. वह राम के चरणों पर गिर पड़ती है. फिर वह स्वागत कर के उन्हें आसन पर बिठाती है.

भक्तिपूर्वक दोनों भाइयों के पांव धोती है. उन्हें अर्घ्य समर्पित करती है. फिर वह उन्हें दिव्य रुप अमृत के जैसे फल अर्पित करती है. रामलीला के इस प्रसंग को देखकर दर्शक रोमांचित हो जाते है और पांडाल जय श्रीराम के उद्घोष से गुंज उठता हैं. वहीं इसके पूर्व दिन में कृष्णलीला मंचन के दौरान वामनावतार प्रसंग का मंचन किया गया. भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद के पौत्र दैत्य राजा बलि दानवीर होने के बावजूद, एक अभिमानी राक्षस होता है. वह अपने पराक्रम के बल से इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेता है. अत्यन्त पराक्रमी और अजेय बलि अपने बल से स्वर्ग लोक, भू लोक तथा पाताल लोक पर भी अपना अधिकार स्थापित कर लेता है. आगे दिखाया गया कि जब स्वर्ग से इंद्रदेव का अधिकार छिन जाता है, तो इंद्र देव अन्य देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं. इंद्र देव वहां भगवान विष्णु को अपनी पीड़ा बताते हुए सहायता के लिए विनती करते हैं. देवताओं की ऐसी हालत देख भगवान विष्णु ने आश्वासन दिया कि वह तीनों लोको को राजा बलि के अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने के लिए माता अदिति के गर्भ से वामन अवतार के रूप में जन्म लेंगे. आगे चलकर माता अदिति के गर्भ से भगवान विष्णु वामन के रूप में धरती पर पांचवां अवतार लेते हैं. इसके बाद भगवान वामन एक बौने ब्राह्मण के वेष में हाथ में एक लकड़ी का छाता धारण किए राजा बलि के पास जाते हैं और उनसे अपने रहने के लिए तीन कदम के बराबर भूमि देने का आग्रह करते हैं. गे दिखाया गया कि जब स्वर्ग से इंद्रदेव का अधिकार छिन जाता है, तो इंद्र देव अन्य देवताओं को साथ लेकर भगवान विष्णु के पास पहुंचते हैं.इस समय दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा राजा बलि को किसी भी प्रकार का वचन न देने के लिए चेताया जाता है, लेकिन राजा बलि नहीं मानते हैं और ब्राह्मण पुत्र को तीन पग भूमि देने का वचन देते हुए कहते हैं कि उनकी ये मनोकामना वह जरूर पूरी करेंगे. इसके बाद वामनदेव ने अपना आकार इतना बढ़ा लिया कि पहले ही कदम में पूरा भूलोक (पृथ्वी) नाप लिया. दूसरे कदम में देवलोक नाप लिया.

तीसरे कदम के लिए कोई भूमि नहीं बची, लेकिन राजा बलि अपने वचन के पक्के थे, इसलिए तीसरे कदम के लिए राजा बलि ने अपना सिर झुका कर कहा कि तीसरा कदम प्रभु यहां रखें. वामन देव राजा बलि की वचनबद्धता से अति प्रसन्न हुए. इसलिए वामन देव ने राजा बलि को पाताल लोक देने का निश्चय किया और अपना तीसरा कदम बलि के सिर पर रखा. जिसके फलस्वरूप बलि पाताल लोक में पहुंच गए. राजा बली ने भी वामन भगवान से वरदान मांगा कि जब मेरे नेत्र खुले आप मेरे नेत्रों के समक्ष रहें. जहां वामन देव उनको आशीर्वाद प्रदान करते है. उक्त लीला का दर्शन कर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए. लीला के दौरान परिसर दर्शकों से भरा रहा. कार्यक्रम के दौरान समिति के सचिव बैकुंठ नाथ शर्मा, संयुक्त सचिव सह मीडिया प्रभारी हरिशंकर गुप्ता, कोषाध्यक्ष सुरेश संगम, ओएसडी पुरूषोत्तम नारायण मिश्रा, कृष्ण कुमार वर्मा, उदय कुमार सर्राफ उर्फ जोखन, कमलेश्वर तिवारी, संजय ओझा, निक्कू ओझा सहित अन्य मुख्य रुप से उपस्थित रहे.

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