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Russia-Ukraine: रूस-यूक्रेन युद्ध रोक में भारत की मध्यस्थता के मायने

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Russia-Ukraine:यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की यह चिंता भी है कि अगर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं, तो वे जल्दी लड़ाई समाप्त कराने का प्रयास करेंगे. यह सब जानते हैं कि यूरोप अकेले इस युद्ध को आगे नहीं ले जा सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे का असर दुनियाभर में पड़ता है.

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Russia-Ukraine: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक महत्वपूर्ण बयान देते हुए कहा है कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध रोकने के लिए संभावित वार्ता में भारत मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है. उन्होंने भारत के साथ-साथ मध्यस्थता करने के लिए चीन और ब्राजील का नाम भी प्रस्तावित किया है. इस बयान से एक अहम संकेत यह मिलता है कि भारत और रूस के बीच जो विशेष और रणनीतिक सहभागिता है, वह मजबूत बनी हुई है.

यह जगजाहिर तथ्य है कि राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच व्यक्तिगत गहरी मित्रता भी है. इस वजह से दोनों नेताओं का एक-दूसरे पर बहुत भरोसा भी है. रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए चीन ने भी अपने स्तर पर प्रयास किये हैं. रूस के साथ उसकी भी निकटता है और यूक्रेन के साथ भी उसके व्यापारिक संबंध हैं. उसने बहुत पहले ही एक 12-सूत्री शांति योजना का प्रस्ताव दिया था. ब्राजील के पास इस समय जी-20 समूह की अध्यक्षता है. इस कारण वह एक उल्लेखनीय भूमिका निभाने की स्थिति में है. भारत, ब्राजील, रूस और चीन ब्रिक समूह के संस्थापक सदस्य हैं. बाद में दक्षिण अफ्रीका के इससे जुड़ने के बाद इसका नाम ब्रिक्स पड़ा. ऐसे में रूसी राष्ट्रपति का मध्यस्थता का प्रस्ताव यह दर्शाता है कि इन देशों पर उन्हें भरोसा है.


इस वर्ष जून के मध्य में प्रधानमंत्री मोदी इटली में आयोजित जी-7 समूह की बैठक में हिस्सा लेने गये थे. वहां उनकी मुलाकात समूह के नेताओं, जिनमें अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन भी शामिल थे, के साथ-साथ यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के साथ भी हुई थी. उन मुलाकातों में यह बात प्रमुखता से उभरकर सामने आयी कि चूंकि रूस के साथ भारत का अच्छा संबंध है, इसलिए वह इस लड़ाई को रोकने और समझौता कराने में अहम भूमिका निभा सकता है. भारत ने शांति सम्मेलन कराने का प्रस्ताव भी रखा है तथा कहा है कि संबंधित पक्ष भारत में आकर परस्पर बातचीत कर सकते हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के संबंध में जो शांति सम्मेलन स्विट्जरलैंड में आयोजित हुआ था, उसमें भारत ने भी हिस्सा लिया था.

उस सम्मेलन में रूस को आमंत्रित नहीं किया गया था. इस कारण कुछ और देशों ने भी अपने को बैठक से अलग कर लिया था. सम्मेलन की अंतिम घोषणा पर भारत ने यह कहते हुए हस्ताक्षर नहीं किया था कि जब तक किसी वार्ता में दोनों पक्ष नहीं शामिल होंगे, तब तक शांति स्थापित करना संभव नहीं होगा. अब यूक्रेन ने भी कहना शुरू कर दिया है कि भारत को मध्यस्थता करनी चाहिए. जी-7 की बैठक से आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने रूस का दौरा किया और वहां राष्ट्रपति पुतिन से मिले. फिर अगस्त के महीने में उन्होंने यूक्रेन की यात्रा की और राष्ट्रपति जेलेंस्की से बातचीत की. उस यात्रा से लौटने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका और रूस के राष्ट्रपतियों से टेलीफोन के जरिये अपनी यात्रा के बारे जानकारी दी. अब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रूस के दौरे पर जा रहे हैं.


यह तो हम सभी जानते हैं कि यूक्रेन में जारी युद्ध की वास्तविकता बहुत भयावह है. विशेष रूप से जब से यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में हमला किया है और वहां एक इलाके पर कब्जा कर लिया है, तब से रूसी हमलों की संख्या भी बढ़ गयी है और ये हमले पूरे यूक्रेन में हो रहे हैं. यूक्रेनी क्षेत्रों में रूसी सेनाओं की बढ़त का सिलसिला भी जारी है. लड़ाई एक गंभीर अवस्था में प्रवेश कर चुकी है. ऐसे में लड़ाई रोकने के प्रयासों को भी तेज करने की आवश्यकता बढ़ गयी है. सबसे पहले तो यह जरूरी है कि रूस और यूक्रेन तथा रूस और पश्चिम के बीच संवाद स्थापित हो. इसी बिंदु से आगे की वार्ताओं का आधार तैयार हो सकता है. बाद में राष्ट्रपति पुतिन ने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद-बिन-सलमान की प्रशंसा की है. इसी तरह तुर्की के साथ भी रूस के रिश्ते अच्छे हैं. उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के दो माह के भीतर ही तुर्की के प्रयासों से शांति समझौते पर सहमति बन गयी थी, पर विभिन्न कारणों से वह प्रयास कारगर साबित नहीं हुआ.


कोई भी देश वैसे ही देशों का नाम प्रस्तावित करता है, जिनके बारे में उसे भरोसा होता है कि वार्ता प्रक्रिया में उसके हित भी सुरक्षित रहेंगे. चूंकि भारत का नाम विशेष रूप से लिया गया है, तो इसका अर्थ है कि भारत पर विश्वास भी अधिक है.
इसी पृष्ठभूमि में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की रूस यात्रा हो रही है. इससे इंगित होता है कि भारत शांति वार्ता या युद्धविराम के लिए गंभीरता से प्रयासरत है. उल्लेखनीय है कि इस वर्ष ब्रिक्स समूह की अध्यक्षता रूस के पास है तथा अक्टूबर में इस समूह का शिखर सम्मेलन भी होने वाला है. इस सम्मेलन की तैयारियों के सिलसिले में भी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों तथा विभिन्न मंत्रियों की अपने समकक्षों के साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय वार्ताओं का दौर चल रहा है. कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की यात्रा के दौरान चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी मॉस्को में होंगे तथा दोनों के बीच बातचीत हो सकती है. हाल में चीन की ओर से भारत को सकारात्मक प्रस्ताव दिये गये हैं. सीमा विवाद संबंधी वार्ताओं का एक दौर अभी कुछ दिन पहले ही पूरा हुआ है और उसके बाद जो बयान आया, उसमें दोनों पक्षों ने उत्साह दिखाया है. सीमा संबंधी जो व्यवस्था है, उसका नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ही करते हैं. तो, संभव है कि इस बारे में दोनों के बीच चर्चा हो. ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग और प्रधानमंत्री मोदी की भेंट होने की भी संभावना जतायी जा रही है. इन वार्ताओं में द्विपक्षीय मुद्दे तो निश्चित रूप से प्राथमिक होंगे, पर रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी चर्चा संभावित है.


यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की की यह चिंता भी है कि अगर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप जीतते हैं, तो वे जल्दी लड़ाई समाप्त कराने का प्रयास करेंगे. यह सब जानते हैं कि यूरोप अकेले इस युद्ध को आगे नहीं ले जा सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे का असर दुनियाभर में पड़ता है. पर कूटनीति एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया भी है. सितंबर में प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका जा रहे हैं, जहां वे संयुक्त राष्ट्र की बैठक के अलावा क्वाड समूह की बैठक में भी हिस्सा लेंगे. वहां भी यूक्रेन और पश्चिम एशिया की स्थिति पर चर्चा होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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