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जंग ए आजादी में महात्मा गांधी के कंधे को अनुग्रह बाबू ने दी थी मजबूती

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बापू के महत्वपूर्ण सहयोगी बने थे अनुग्रह बाबू, आजादी के बाद पहले उपमुख्यमंत्री का संभाला था पद

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औरंगाबाद सदर. जब स्वाधीनता की लड़ाई चल रही थी, तो बिहार के कई ऐसे वीर सपूत थे जो भारत की आजादी के लिए मर मिटने को तैयार थे. इनमें बिहार विभूति अनुग्रह नारायण सिंह प्रमुख हैं. महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद जैसे बड़े नेताओं के साथ मिलकर अनुग्रह बाबू ने आजादी की जंग में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. वे बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री के अलावा वित्तमंत्री भी रहे थे. लेकिन, दूसरे नेताओं से अलग उनकी पहचान सादगी से थी. वे सरकारी यात्रा पर जाने पर भी अपनी ही तनख्वाह से भोजन करते थे. यहां तक कि प्रदेश के दूर-दराज इलाके, जहां जाना आम लोगों के लिए भी सुरक्षित नहीं समझा जाता था, वहां अनुग्रह नारायण सिंह बगैर किसी सुरक्षा के यात्रा करते और तुरंत ही स्थानीय लोगों में घुलमिल जाते थे. आधुनिक बिहार के निर्माण में उनका अहम योगदान था. 18 जून 1887 को अनुग्रह नारायण सिंह का जन्म औरंगाबाद जिले के पोइवां गांव में हुआ था. अनुग्रह नारायण सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई औरंगाबाद से ही की. कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्हें स्कॉलरशिप मिला और पटना कॉलेज में उन्होंने एडमिशन लिया. यहां से उन्होंने इतिहास में ऑनर्स किया. कोलकाता विश्वविद्यालय से एमए और एलएलबी किया. वह डॉ राजेंद्र प्रसाद द्वारा स्थापित बिहार छात्र सम्मेलन और पटना कॉलेज की चाणक्य सोसाइटी के सचिव भी रहे. पढ़ाई के दौरान ही कोलकाता हाइ कोर्ट में आर्टिकल क्लर्क का भी काम किया. हालांकि, पढ़ाई के दौरान ही छात्र राजनीति में दिलचस्पी बढ़ गयी. पढ़ाई पूरी करने के बाद भागलपुर के टीएनबी कॉलेज में इतिहास के प्राध्यापक भी बने. मात्र 16 महीने तक ही नौकरी की और फिर पटना हाइकोर्ट में वकालत शुरू कर दी. अनुग्रह नारायण सिंह के जीवन में बदलाव उस समय आया, जब 1917 में महात्मा गांधी चंपारण सत्याग्रह के लिए बिहार आये थे. उस समय अनुग्रह नारायण सिंह को बेतिया ऑफिस का इंचार्ज बनाया गया था. महात्मा गांधी जब बिहार आये और चंपारण सत्याग्रह योजना किसानों के अधिकार के लिए बनायी गयी, तो अनुग्रह सिन्हा और महात्मा गांधी काफी करीब आ गये. किसानों के आंदोलन को आगे बढ़ाने और अंग्रेजों के दमन के विरोध में कानूनी लड़ाई के लिए महात्मा गांधी का साथ देने के लिए पटना के पांच वकीलों ने अपनी निजी वकालत छोड़ने का फैसला लिया, जिसमें अनुग्रह सिन्हा भी थे. इस घटना के बाद अनुग्रह नारायण सिन्हा से महात्मा गांधी काफी प्रभावित हुए. वे राजेंद्र बाबू के निर्देशानुसार आजादी के जंग में अपना कदम बढ़ाते गये. अनुग्रह नारायण सिन्हा की एक क्षमता थी कि वह व्यक्तिगत वार्तालाप में काफी मृदुभाषी थे. आजादी के पहले और आजादी के बाद अनुग्रह नारायण सिंह और बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह का बिहार के निर्माण में अहम भूमिका थी. अनुग्रह नारायण सिंह बिहार के पहले वित्त मंत्री और श्रम मंत्री भी बनाये गये. इनको बिहार विभूति कहा गया, वैसे लोग इन्हें बाबू साहेब भी कहते थे. पांच जुलाई 1957 को उनका निधन हो गया. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण आंदोलनों में से एक 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के पीछे की प्रेरक शक्तियों में अनुग्रह बाबू भी शामिल थे. उनकी देशभक्ति की भावना और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के चलते उन्हें 1933 से 1934 के बीच 15 महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा. 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों ने गिरफ्तार कर कैद कर लिया. 1944 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने महामारी से पीड़ित लोगों की सेवा की. 1937 में पहली बार कांग्रेस मंत्रिमंडल के बनने से लेकर पांच जुलाई 1957 को उनकी मृत्यु तक, डॉ अनुग्रह नारायण सिंह लगातार राज्य की सेवा में तत्पर रहे. इसके अतिरिक्त, उन्होंने स्वतंत्र भारत की पहली संसद में कार्य किया और वे भारत के संविधान लिखने के लिए गठित भारत की संविधान सभा के सदस्य भी थे. बिहार के वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री (स्वतंत्रता के बाद) के अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सभी मोर्चों पर बिहार के विकास के लिए खुद को समर्पित कर दिया.

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