30.7 C
Ranchi
Monday, April 21, 2025 | 02:12 am

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

स्वप्न में भी नृत्य देखती थीं यामिनी कृष्णमूर्ति

Advertisement

अपने नृत्य कौशल से यामिनी 1957-58 के अपने आरंभिक प्रदर्शनों से ही इतनी लोकप्रिय हो गयी थीं कि उनके नृत्य को देखने के लिए दर्शक महंगे टिकट खरीदते थे. उनके नृत्य इतने लोकप्रिय हुए कि उनके घुंघरुओं की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गयी, जिसका परिणाम यह हुआ कि आये दिन लंदन, अमेरिका, रूस, जापान फ्रांस, अफगानिस्तान आदि से उनको नृत्य के लिए आमंत्रण मिलता रहता था.

Audio Book

ऑडियो सुनें

yamini krishnamurthy : यामिनी कृष्णमूर्ति की मृत्यु वास्तव में मृत्यु नहीं कही जायेगी क्योंकि ऐसे कलाकार अमर होते हैं. वे एक धूमकेतु की तरह भारत के नृत्य जगत में अवतरित हुईं और अपना विशिष्ट स्थान बनाया. उनका भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी नृत्य अद्वितीय रहा. ये विचार प्रख्यात शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने तब व्यक्त किये, जब मैंने उनसे यामिनी कृष्णमूर्ति को लेकर बात की थी. सोनल मानसिंह ने कुछ शब्दों में ही यामिनी जी के जीवन और उपलब्धियों का सार व्यक्त कर दिया. यूं यामिनी कृष्णमूर्ति को लेकर ग्रंथ लिखे जा सकते हैं. उन्होंने बरसों पहले ही भरतनाट्यम नृत्य को जो शिखर दिया, वह अनुपम था. उनसे पहले भरतनाट्यम में दक्षिण भारत में कई बड़े नाम थे. यामिनी ने उसे उत्तर भारत में लोकप्रिय करने में पहली बड़ी शुरुआत की. इसके लिए वह 1960 में ही दिल्ली आकर रहने लगी थीं. फिर वे भरतनाट्यम तक ही सीमित नहीं रहीं. उन्होंने कुचिपुड़ी नृत्य को भी नवजीवन दिया. बरसों अनेक लोग इसे एक लोक नृत्य के रूप में देखते रहे. पर यामिनी ने अपनी प्रतिभा से इसे शास्त्रीय नृत्य में ढाल दिया. बड़ी बात यह भी कि उन्होंने ओडिसी नृत्य को भी अपने जीवन में उतारा.


अपने नृत्य कौशल से यामिनी 1957-58 के अपने आरंभिक प्रदर्शनों से ही इतनी लोकप्रिय हो गयी थीं कि उनके नृत्य को देखने के लिए दर्शक महंगे टिकट खरीदते थे. उनके नृत्य इतने लोकप्रिय हुए कि उनके घुंघरुओं की गूंज सात समंदर पार तक पहुंच गयी, जिसका परिणाम यह हुआ कि आये दिन लंदन, अमेरिका, रूस, जापान फ्रांस, अफगानिस्तान आदि से उनको नृत्य के लिए आमंत्रण मिलता रहता था. सत्तर के दशक तक वे भारत की सांस्कृतिक दूत बन गयीं. जिस तरह पंडित रवि शंकर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान और राज कपूर जैसी हस्तियों ने भारत की कला व संस्कृति को विश्व मंच पर ले जाने में बड़ी भूमिका निभायी, उसी तरह यामिनी कृष्णमूर्ति ने भारत की नृत्य कला को विश्व भर में पहुंचाने की अहम पहल की.


अस्सी के दशक में उनकी लोकप्रियता चरम पर थी. भाव, अभिनय, मुद्रा, कदमताल, सब इतने सटीक और सौंदर्य से परिपूर्ण कि जो भी उनका नृत्य देखता, मंत्रमुग्ध हो जाता. बड़ी बात यह भी कि शास्त्रीय नृत्य की समझ न रखने वाले दर्शक भी उनके नृत्य को टकटकी लगाये देखते रह जाते थे. एक बार यामिनी ने बताया था- ‘मैं मध्य प्रदेश के जंगल क्षेत्र में नृत्य कर रही थी, जहां कई ग्रामीण महिलाओं के साथ दो डाकू भी मेरा नृत्य देख रहे थे. मैं जानती थी कि इनमें किसी को भी भरतनाट्यम की समझ नहीं है, लेकिन मुझे तब घोर आश्चर्य हुआ, जब नृत्य के बाद कुछ महिलाएं मेरे पास आयीं और बोलीं कि आपका नृत्य देख हम तो दंग रह गये. आप एक पल इधर होती हैं और पलक झपकते दूसरी तरफ पहुंच जाती हैं. आप तो बिजली हैं.’ जंगल की उन महिलाओं ने यामिनी की विशेषता को तुरंत पहचान लिया था. उनके नृत्य में जो गति रही, वैसी गति अन्य नृत्यांगनाओं में नहीं मिलती.


उन्हें जहां पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे शिखर नागरिक सम्मान मिले. उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कालिदास सम्मान और साहित्य कला परिषद पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया. वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्ट्रेट की उपाधि भी दी. इतना सब उन्हें यूं ही नहीं मिल गया. इसके लिए यामिनी ने चार साल की उम्र से नृत्य सीखना शुरू कर दिया था. आंध्र प्रदेश के मदनपल्ली में 20 दिसंबर 1940 को जन्मी मुंगरा यामिनी पूर्णतिलाका को यह नाम उनके दादा जी ने दिया था. लेकिन यामिनी को महान नृत्यांगना बनाने में सबसे बड़ा योगदान संस्कृत के महाविद्वान उनके पिता प्रो एम कृष्णमूर्ति को जाता है, जिन्होंने अपनी तीन बेटियों में सबसे ज्यादा भरोसा यामिनी में जताया. यामिनी को कई बड़े गुरुओं से नृत्य शिक्षा दिलाने के लिए कृष्णमूर्ति ने अपना करियर तो त्यागा ही, साथ ही अपनी तीन संपत्ति भी बेच दी.
यामिनी ने दिल्ली में अपने ‘यामिनी स्कूल ऑफ डांस’ के माध्यम से पिछले करीब 30 बरसों में 500 विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर अपने नृत्य गुणों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाया है. यामिनी ने नृत्य के प्रति अपनी दीवानगी के चलते विवाह भी नहीं किया. नृत्य के प्रति उनका समर्पण इतना था कि एक बार उन्होंने बताया था- ‘मुझे तो सपने भी अक्सर नृत्य के ही आते हैं.’
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

[quiz_generator]

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snaps News reels