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पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का सितारा विजय उपाध्याय

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प्रधानमंत्री मोदी की हालिया ऑस्ट्रिया यात्रा के दौरान उनके स्वागत में बजी ‘वंदे मातरम्’ सिंफनी चर्चे में है. इसे भारतवंशी विजय उपाध्याय ने संगीतबद्ध और निर्देशित किया था.

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संगीत का तीर्थ मानी जाने वाली ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को यूरोपीय सिंफनी शैली के संगीत में सजा कर प्रस्तुत करने वाले विजय उपाध्याय का जन्म ठुमरी और कथक की नगरी लखनऊ में हुआ था. और संगीत के संस्कार उन्हें अपनी मां उषा चटर्जी से मिले. मां उषा चटर्जी ने ही उन्हें पियानो बजाना सिखाया. संगीत संचालन का शौक भी उन्हें बचपन से ही था, इसलिए उन्होंने तबला और कथक भी सीखा. इन्हें सीखकर उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र से ही स्कूल की गान-मंडली का संचालन शुरू कर दिया था.

पंद्रह वर्ष की उम्र में विजय उपाध्याय को गहरा आघात लगा. उनकी मां चल बसीं और उनके पिता जी इलाहाबाद चले गये. वे भी लखनऊ से कहीं दूर निकल जाना चाहते थे, इसलिए स्नातक बनते ही ऑस्ट्रिया से मिली संगीत छात्रवृत्ति पर पश्चिमी शास्त्रीय संगीत सीखने ग्राज की संगीत एवं मंच कला यूनिवर्सिटी में आ गये. यहां रहकर संगीत और उसका संचालन सीखने लगे, इसके साथ-साथ उन्होंने ऑस्ट्रिया की लोकभाषा और संस्कृति को भी आत्मसात किया.

पढ़ाई पूरी करते ही उन्होंने गिरजाघरों की गान-मंडलियों और एक ब्रास बैंड में काम करना शुरू कर दिया तथा वियना आ गये, जहां वे आजकल विश्व प्रसिद्ध वियना यूनिवर्सिटी फिलामोनिक ऑर्केस्ट्रा के निदेशक हैं. नौ सौ वादकों और गायकों वाला यह ऑर्केस्ट्रा विश्वभर में पश्चिम के मूर्धन्य संगीतकारों की और अपनी मौलिक संगीत रचनाओं की प्रस्तुतियां देता रहता है.

विजय उपाध्याय की रुचि भारतीय संगीत और नृत्य की बुनियाद एवं पश्चिमी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के साथ-साथ दुनियाभर की संगीत विधाओं, वाद्यों, लोक संस्कृतियों और भाषाओं में भी रही है. यही बात उन्हें एक अनूठा प्रयोगधर्मी और रचनाशील कलाकार बनाती है. सुप्रसिद्ध चीनी ओपेरा ‘मूलान’ के रचयिता ‘गुआन शिया’ अपने ओपेरा का पहला शो करने 2008 में वियना आये थे. अपने ओपेरा के पूर्वाभ्यास में विजय के योगदान से प्रभावित होकर उन्होंने उन्हें चीनी राष्ट्रीय ऑर्केस्ट्रा और गान-मंडली के संचालन तथा संरचना का न्योता दे दिया.

तब से वे चीनी ऑर्केस्ट्रा के संचालक और रचयिता भी हैं और हर वर्ष तीन महीने बीजिंग में बिताते हैं. इसके दो वर्ष बाद 2010 में उन्होंने भारत के युवा संगीतकारों को तराशने के लिए अपनी बहन सोनिया खान के साथ मिलकर ‘भारतीय राष्ट्रीय यूथ ऑर्केस्ट्रा’ की स्थापना की और उसके लिए 2014 में ‘प्रार्थना ध्वज’ नाम की एक सिंफनी की रचना की, जो उनकी पहली संगीत रचना थी. यह सिंफनी भारतीय साहित्य और रागों पर आधारित है जिसमें खुसरो, कबीर और मीरा के गीतों का प्रयोग किया गया है. इसका मंचन भारत समेत दुनिया के कई शहरों में हो चुका है और खासा लोकप्रिय रहा है.

विजय उपाध्याय की दूसरी सिंफनी रचना ‘चांगअन मेन’, यानी ‘स्थिर शांति का प्रवेश द्वार’ थी जो चीनी इतिहास और संस्कृति के कई युगों की यात्रा कराती है. चीनी भाषा और सुरों की चार ध्वनियों का अनुसरण करते हुए इसमें ‘कन्फ्यूशियस, शीजिंग, नानजिंग गीत और लाओजी के दर्शन और गीतों का प्रयोग किया गया है. इस सिंफनी ने उन्हें चीनी संगीत रचना का अनुबंध पाने वाले पहले गैर-चीनी के रूप में स्थापित किया.

पिछले वर्ष उनके वियना ऑर्केस्ट्रा ने ‘गेनशिन इंपैक्ट’ संगीत रचना का मंचन किया जो दसवीं सदी के जापानी बौद्ध भिक्षु, ‘गेनशिन’ के दर्शन पर आधारित लोकप्रिय कंप्यूटर खेल ‘गेनशिन इंपैक्ट’ के नायक ‘तेवाट’ की प्राकृतिक वादियों की सैर के अनुभवों पर आधारित है. दो सौ से अधिक वादकों और गायकों के स्वर संगम वाली इस रचना को संगीत प्रेमियों और युवाओं की भरपूर सराहना मिली.

इन दिनों विजय उपाध्याय कनाडा, अमेरिका और तुर्की जैसे कई अन्य देशों के ऑर्केस्ट्राओं का भी संचालन करते हैं. इतना ही नहीं, वे ईरान, इंडोनेशिया, सिंगापुर, ब्राजील और कजाखस्तान में भी संगीत परियोजनाएं चलाते हैं. विजय को प्रकृति और लोक संस्कृति से अत्यधिक प्रेम है. प्रकृति के सानिध्य में रहने और वहां की संस्कृति को जानने के लिए विजय हर वर्ष एक महीना हिमालय की वादियों में बिताते हैं, जिनकी गूंज उनके संगीत में सुनाई देती है. विजय उपाध्याय भारत के ऐसे सांस्कृतिक दूत बनकर उभरे हैं जिनकी संगीत रचनाओं में पूरी दुनिया के संगीत और संस्कृतियों की धाराओं का अनूठा संगम है.

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