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केरल में अतिथि माने जाते हैं प्रवासी कामगार

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केरल के एर्नाकुलम जिले में 85 ऐसे छात्रों की सफलता जिला प्रशासन के समर्थन से चल रही रोशनी नामक पहल के कारण संभव हो सकी है.

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कुछ दिन पहले केरल में घोषित दसवीं कक्षा के नतीजों में शिवराज मोहिते का नाम विशेष उल्लेखनीय रहा. एर्नाकुलम जिले में वेन्निकुलम के सेंट जॉर्ज स्कूल के छात्र शिवराज ने सभी विषयों में ए प्लस हासिल किया है. महत्वपूर्ण बात यह है कि वह महाराष्ट्र के सांगली जिले के प्रवासी माता-पिता की संतान है. उसने मलयालम भाषा में भी बहुत अच्छे अंक पाये हैं, जो स्कूल में पढ़ाई का माध्यम है.

उसके पिता कपड़े की एक दुकान में सेल्समैन है और दो दशक पहले यहां आ गये थे. तब उनकी शादी नहीं हुई थी. एक अच्छे निजी विद्यालय में उनके दोनों बच्चों को निशुल्क शिक्षा मिली है. उत्तर प्रदेश के एक प्रवासी कामगार की बेटी ने भी बहुत अच्छे अंक प्राप्त किया है. ऐसा उनके अपने गांव शायद संभव नहीं हो पाता, जहां लड़कियां दसवीं कक्षा तक पहुंच भी नहीं पाती हैं. केरल में माता-पिता बेटी की आगे की पढ़ाई के बारे में योजना बना रहा हैं.

इस लड़की की बड़ी बहन यहीं इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रही है. एर्नाकुलम जिले में 85 ऐसे छात्रों की सफलता जिला प्रशासन के समर्थन से चल रही रोशनी नामक पहल के कारण संभव हो सकी है. इसके तहत प्रवासी बच्चों को मलयालम, हिंदी और अंग्रेजी की शिक्षा देने के लिए 90 मिनट की विशेष कक्षा लगायी जाती है. इसके लिए हिंदी, बांग्ला और उड़िया में दक्ष वॉलंटियरों की सेवा ली जाती है.

कामगारों के बच्चों की सफलता की कहानियां सैकड़ों की संख्या में हैं, जो स्थानीय भाषा में निशुल्क शिक्षा पाते हैं और आगे की पढ़ाई कर अच्छा करियर बनाते हैं. कुछ वर्ष पहले मलयालम साक्षरता परीक्षा में बिहार के एक प्रवासी कामगार परिवार की महिला ने राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया था. स्नातक परीक्षा में भी एक बार बिहार के ही प्रवासी कामगार की बेटी शीर्ष पर रही थी.

कोरोना महामारी के दौरान जब अनेक राज्यों से प्रवासी वापस अपने घरों को लौटने को मजबूर हुए थे, केरल में उन्हें राशन, आवास और चिकित्सा सेवा मुहैया करायी गयी, जिसके कारण उनके सामने वापसी की नौबत नहीं आयी. जनसांख्यिकीय बदलाव और आबादी की बढ़ती आयु के मामले में केरल देश के सभी राज्यों से बहुत आगे है.

जनसांख्यिकीय बदलाव और आबादी की बढ़ती आयु के मामले में केरल देश के सभी राज्यों से बहुत आगे है. यही वह राज्य भी है, जहां से बहुत पहले से अच्छी-खासी तादाद में लोग काम के लिए पश्चिम एशिया जाते रहे हैं. ऐसे विभिन्न कारकों के कारण प्रवासी कामगारों पर राज्य बहुत अधिक निर्भर है. केरल में लगभग 40 लाख प्रवासी कामगार हैं, जिन्हें अतिथि कामगार कहा जाता है. यह सब कहने भर की बात नहीं है.

यही वह राज्य भी है, जहां से बहुत पहले से अच्छी-खासी तादाद में लोग काम के लिए पश्चिम एशिया जाते रहे हैं. ऐसे विभिन्न कारकों के कारण प्रवासी कामगारों पर राज्य बहुत अधिक निर्भर है. केरल में लगभग 40 लाख प्रवासी कामगार हैं, जिन्हें अतिथि कामगार कहा जाता है. यह सब कहने भर की बात नहीं है. वर्ष 2021 में राज्य में अकुशल कामगार को दैनिक मजदूरी के तौर पर 709 रुपये का भुगतान किया गया, जबकि तब राष्ट्रीय औसत केवल 309 रुपये था.

यहां कामगार विभिन्न प्रकार के काम करते हैं. अतिथि कामगारों की रोजगार संभावना बढ़ाने के लिए केरल में कौशल विकास और व्यावसायिक प्रशिक्षण के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं. साथ ही, प्रवासी कामगारों के लिए निशुल्क आवाज स्वास्थ्य बीमा योजना भी उपलब्ध है. बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा और स्थानीय भाषा के साथ उन्हें जोड़ना बहुत महत्वपूर्ण है, जिसके बारे में पहले चर्चा की जा चुकी है. कामगारों का शोषण न हो, उन्हें असुरक्षित परिस्थिति में काम न करना पड़े तथा उन्हें समुचित पारिश्रमिक मिले, इन पहलुओं पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है.

अतिथि कामगारों के पंजीकरण के लिए व्यापक डेटाबेस बनाया गया है, जिससे योजनाएं बनाने तथा कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने में मदद मिलती है. वर्ष 2021 में ओडिशा के कालाहांडी जिले में ग्राम विकास नामक संस्था के सर्वेक्षण में पाया गया था कि 26 प्रतिशत परिवारों के लोगों ने मौसमी अकुशल कामगार के रूप में केरल जाना चुना था, जहां उन्हें औसतन 12 हजार रुपये का वेतन हासिल हुआ था.

ओडिशा के अधिकतर प्रवासी कामगारों ने अपने गंतव्य के रूप में केरल को ही चिह्नित किया. देश के विभिन्न हिस्सों से काम करने के लिए केरल जाने की प्रक्रिया ने एक छोटी रेमिटैंस अर्थव्यवस्था खड़ी कर दी है. केरल में कमाई गयी राशि का एक हिस्सा ओडिशा, झारखंड, असम और बिहार जैसे कामगारों के गृह राज्य में आता है.

भारत में 50 लाख से अधिक प्रवासी कामगार हैं, जो अपने राज्य से बाहर काम करते हैं, जिनमें से 40 लाख केरल में हैं. आखिरकार, अर्थव्यवस्था के आकार तथा वृद्धि दर को देखते हुए केरल की ओर यह प्रवाह सीमित हो जायेगा. केरल की आमदनी में विदेशों में कार्यरत लोगों द्वारा भेजी गयी राशि का हिस्सा लगभग 25 प्रतिशत होता था, जो अब घटकर 15 प्रतिशत से भी कम हो गया है. राज्य के सामने आबादी की बढ़ती आयु, मैन्युफैक्चरिंग निवेश का अभाव, रोजगार की कमी, रियल इस्टेट की महंगाई जैसी चुनौतियां हैं.

ज्ञान से संबंधित उद्योगों को आकर्षित करने में केरल ने अच्छी सफलता पायी है, लेकिन शिक्षा एवं अन्वेषण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है. फिर भी प्रवासी यानी अतिथि कामगारों के साथ व्यवहार के मामले में केरल अन्य राज्यों के लिए एक आदर्श उदाहरण है. कामगारों और उनके परिवार के कल्याण के लिए सरकार द्वारा बहुत कुछ किया जाता है, विशेषकर बच्चों की शिक्षा के संबंध में.

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 45 करोड़ प्रवासी कामगार हैं, जो राज्य के भीतर या राज्यों के बीच आते-जाते रहते हैं. यह प्रवासन मौसमी, चक्रीय या अर्द्ध-स्थायी हो सकता है. संविधान हमें आर्थिक अवसरों की तलाश के लिए देश में कहीं भी जाने का अधिकार प्रदान करता है. अपने क्षेत्र में काम या जीवनयापन के अवसरों की कमी की समस्या से मुक्त होने का महत्वपूर्ण विकल्प है. पर सभी अन्यत्र नहीं जा सकते, और बहुत कम लोग अपने पूरे परिवार के साथ जा सकते हैं.

भूमि स्वामित्व, विशेषकर छोटे पैमाने पर, वाले जमीन से बंधे रहते हैं. शारीरिक रूप से सक्षम ही दूसरी जगहों पर जा सकते हैं. इस प्रकार, प्रवासन उद्यम का सकारात्मक प्रतीक है और स्थानीय स्तर पर अवसरों के अभाव की प्रतिक्रिया भी है. अधिकतर पश्चिमी देशों में प्रवासन के विरुद्ध माहौल है क्योंकि इसे स्थानीय रोजगार को छीनने के रूप में देखा जा रहा है. केरल का उदाहरण स्थानीय समुदायों पर किसी नकारात्मक प्रभाव के बिना प्रवासियों की क्षमता के उपयोग का तौर-तरीका मुहैया कराता है. प्रवासी कामगार को अतिथि कामगार कहने की सच्ची भावना यही है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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