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अपेक्षाकृत कम मतदान होने के मायने

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मतदान बढ़ने के बावजूद सरकारें वापस आयी हैं और घटने के बावजूद गयी हैं. इसलिए इसके आधार पर कोई एक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता.

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लोकसभा चुनाव के प्रथम एवं दूसरे चरण में लगातार मतदान की गिरावट चिंता का विषय बनी है, तो यह स्वाभाविक ही है. अब तक 12 राज्यों (केरल, राजस्थान, त्रिपुरा, तमिलनाडु, उत्तराखंड, अरुणाचल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम) तथा तीन केंद्र शासित प्रदेशों (अंडमान, लक्षद्वीप और पुद्दुचेरी) का मतदान संपन्न हो चुका है. राष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो औसत मतदान में गिरावट नहीं है. राज्यों एवं राज्यों के अंदर संसदीय क्षेत्रों में भी मतदान प्रतिशत कहीं ठीक है, तो कहीं गिरा है.

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अगर दोनों चरणों के 190 सीटों पर 2019 के मतदान प्रतिशत से तुलना करें, तो लगभग दो प्रतिशत की गिरावट ही दिखती है. दूसरे चरण में लगभग 68.49 प्रतिशत मतदान हुआ, जबकि 2019 में 70.05 प्रतिशत से ज्यादा हुआ था. त्रिपुरा में सर्वाधिक 79.66 प्रतिशत लोगों ने मताधिकार का उपयोग किया, तो मणिपुर में 78.78 प्रतिशत ने.

असम में 2019 में 76.45 की जगह 77.35, छत्तीसगढ़ में 75 प्रतिशत की जगह 75.16, कर्नाटक में 68.21 की जगह 68.47, केरल में लगभग 80 की जगह 70.21, बिहार में करीब 60 की जगह 56.81, मध्य प्रदेश में 67.75 की जगह 58.26, महाराष्ट्र में 61.93 की जगह 59.63, पश्चिम बंगाल में 80 की जगह 73.78 और उत्तर प्रदेश में 62. 39 की जगह 54.8 प्रतिशत मतदान हुआ. मध्यप्रदेश में नौ तथा उत्तर प्रदेश में आठ प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट असाधारण है. निश्चित रूप से इन दो चरणों ने मतदान की प्रवृत्तियों का आकलन कठिन बना दिया है.


अभी तक 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदान उच्चतम स्तर पर पहुंचा था. वर्तमान मतदान को देखते हुए तत्काल यह मानना होगा कि उससे आगे बढ़ने की संभावना नहीं है. जब एक बार कोई भी प्रवृत्ति ऊंचाई छूती है, तो उसके बाद उसे नीचे आना ही पड़ता है. हालांकि राजनीतिक दलों की प्रतिस्पर्धा और जन जागरूकता को देखते हुए मतदान प्रतिशत में निस्संदेह वृद्धि होनी चाहिए थी. आगे के दौर में सभी कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा मतदान हो, किंतु राष्ट्रीय स्तर पर गिरावट को देखकर ज्यादा निराश होने का कोई कारण नहीं है.

नागालैंड में मतदान प्रतिशत ज्यादा गिरा क्योंकि छह जिलों में ईस्टर्न नागालैंड पीपुल्स फ्रंट ने अलग राज्य की मांग को लेकर मतदान का बहिष्कार किया था. ऐसे में मतदान प्रतिशत गिरना ही था. इसे मतदान की प्रवृत्ति नहीं मान सकते. करीब डेढ़ दशक पहले मतदान घटने का अर्थ सत्तारूढ़ घटक की विजय तथा बढ़ने का अर्थ पराजय के रूप में लिया जाता था और प्रायः ऐसा देखा भी गया.

किंतु 2010 के बाद प्रवृत्ति बदली है. मतदान बढ़ने के बावजूद सरकारें वापस आयी हैं और घटने के बावजूद गयी हैं. इसलिए इसके आधार पर कोई एक निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता. दूसरे, हर जगह मतदान प्रतिशत ज्यादा गिरा भी नहीं है. तीसरे, बंगाल में साफ दिख रहा है कि दोनों पक्षों के मतदाताओं में प्रतिस्पर्धा है.


उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर बहुत ज्यादा गिरावट नहीं है, किंतु ज्यादातर में कमी आयी है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मतदान प्रतिशत घटना सामान्य स्थिति का परिचायक नहीं है. इस क्षेत्र को जातिगत और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का विशेषण प्राप्त है, तो यह आकलन करना कठिन है कि जहां मतदान प्रतिशत गिरा, वहां किनके मतदाता नहीं आये. पिछले चुनाव में भाजपा के लिए यह चुनौतीपूर्ण क्षेत्र था तथा बसपा-सपा ने उसे गंभीर चुनौती दी थी.

अगर भाजपा विरोधी उसे हराना चाहते थे, तो उन्हें भारी संख्या में निकलना चाहिए. फिर भी यह कहना कठिन होगा कि भाजपा समर्थक मतदाता ही ज्यादा संख्या में नहीं निकले. समर्थक, कार्यकर्ता थोड़ा असंतुष्ट हों, तो इसका असर होता है, किंतु विरोधी तेजी से हराने के लिए निकले और इसके बावजूद वह प्रतिक्रिया न दें, इस पर विश्वास करना कठिन होता है. इससे इनकार करना कठिन है कि मतदाताओं की उदासीनता चुनाव में आरंभ से ही बनी हुई है.

हालांकि विपक्ष के प्रचार के विपरीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को लेकर आम जनता के अंदर कहीं व्यापक आक्रोश या भारी विरोधी रुझान बिल्कुल नहीं दिखा है. पर कार्यकर्ताओं, नेताओं और समर्थकों के एक समूह के असंतोष का कुछ असर हो सकता है. भाजपा नेतृत्व को इसका संज्ञान लेना चाहिए.


हालांकि जिनके अंदर असंतोष है, उनमें भी यह भाव है कि अगर यह सरकार हार गयी, तो कहा जायेगा कि हिंदुत्व विचारधारा की हार हो गयी है. जिस जाति के विद्रोह की चर्चा है, वहां भी भाजपा, प्रधानमंत्री मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर सहानुभूति का भाव दिखता है. इसलिए यह मानने में भी कठिनाई है कि इन्होंने आक्रामक होकर भाजपा के विरोध में मतदान किया होगा.

ऐसा होने पर मतदान बढ़ जाता. मतदान कम होने को भाजपा विरोधी संकेत मानना उचित नहीं होगा. मतदान प्रतिशत सत्ता पक्ष और विपक्ष द्वारा प्रखर वातावरण बनाने से ही बढ़ता है. सत्ता पक्ष यह संवेग पैदा कर दे कि उसकी वापसी देश के हित में है, तो लोग बाहर निकलते हैं. इसी तरह विपक्ष माहौल बना दे कि सरकार आपके हितों के विरुद्ध काम कर रही है, तो उसके समर्थक भी भारी संख्या में निकलेंगे. मतदान में गिरावट का अर्थ है कि या तो यह दोनों स्थिति नहीं बनी या कम बनी है या फिर इनमें से किसी एक में अवश्य कमी है.

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