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फाइल- 5- सूखने लगी कंचन एवं धर्मावती नदी, हजारों जीवों के अस्तित्व पर मंडराने लगा खतरा, हारिल व बगेड़ी पंक्षियों का झुंड हो गया विलुप्त पर्यावरण प्रेमियों ने जतायी चिंता

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सूखने लगी कंचन एवं धर्मावती नदी

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27 अप्रैल- फोटो- 3-सूखी पड़ी कंचन एवं धर्मावती नदी में कचरायुक्त गंदा पानी

पंकज कुमार कमल राजपुर . तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर. यह पंक्तियां शंकर शैलेंद्र के द्वारा रचित आज भी नदी एवं पानी के लिए लोगों के जुबान पर है. प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन हर किसी को देखने एवं सुनने का मन करता है. मानव कृत्यों ने इस प्राकृतिक सुंदरता को तहस-नहस कर दिया है जो अब सिर्फ किताब की रचनाओं में देखने को मिलेगी. प्रखंड के ग्रामीण मैदानी इलाकों में प्राकृतिक छंटा बिखरने के साथ हजारों लोगों को रोजी रोजगार देने वाली कंचन एवं धर्मावती नदी सूखने लगी है. इन नदियों के सूखने से हजारों जीवों के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. नदियों के किनारे पेड़ों की डाल पर बसेरा बनाने वाली हारिल, बाया एवं बगेड़ी पक्षियों का झुंड पूरी तरह से विलुप्त हो गए हैं. एक समय था जब इन पंक्षियों को नदियों के किनारे लगे पेड़ों पर झुंड उतरता तो इनकी चहचहाहट से माहौल खुशनुमा रहता था. बाया पंछी के घोसलें को देखकर मन खुश हो जाता. बाया पंक्षी की घोसलें की खास बनावट विज्ञान की किताबों में पढ़ाई जाती थी. जिसे अक्सर दर्जी चिड़ियां भी कहा जाता था. आज यह अपने ही क्षेत्र से गुमनाम हो गई है. हारिल एवं बगेड़ी पक्षी यह अपने झुंड के साथ किसी खेतों में बैठकर खेतों के कीड़ें मकोड़ें को खाकर किसानों को मदद पहुंचाती थी. पानी पीने के लिए एक साथ कहीं नदी के पास जाती थी.शिकारी ने इसे शिकार कर अपना निवाला बना लिया. पक्षी संरक्षण की बात सरकार भले ही करती हो लेकिन पक्षियों का संरक्षण नहीं हो रहा है. इन नदियों के मैदानी इलाके में रहने वाले काले हिरण को संरक्षित घोषित किया गया है. काला हिरणों का कुछ झुंड तो बाकी है. इसके अलावा अन्य कुछ पशु है जिसमें जंगली सियार ,ऊदबिलाव अन्य पशुओं का भी अस्तित्व संकट में है.

नदी क्षेत्र से किसानों का हुआ विकास

वर्षो पूर्व कंचन एवं धर्मावती नदी का महत्व बहुत काफी था. गंगा की तरह पवित्र माने जाने वाली इन दो नदियों का पानी पीने एवं सिचाई के उपयोग में लाया जाता था. जिस नदी के किनारे सैकड़ों गांव बसे हुए हैं. पशुपालक किसान अपने पशुओं के साथ नदी में नहलाने के लिए जाते थे. आज इनका अस्तित्व समाप्त के कगार पर है जो समय से पहले ही सूख जाने से पशुओं को पानी पिलाने के लिए भी अनेक बार सोचना पड़ रहा है.यह नदियां जीवनदायनी थी. कोचानो नदी को कोचान अथवा कंचन भी कहा जाता है. जिसका उद्गम करंज गांव के पोखरा से होता है. जिस नदी का प्रवाह लगभग 35 किलोमीटर लंबा है.धर्मावती नदी बसही, खीरी,के रास्ते दर्जनों गांव को जोड़ते हुए नागपुर से आगे कर्मनाशा में मिल जाती है.जिसका प्रवाह लगभग 50 किलोमीटर है.कंचन नदी रोहतास जिले के करंज गांव से होकर सर्पीली आकार में यह नदी बक्सर जिला के धनसोई में प्रवेश कर इटाढ़ी प्रखंड के ठोरा नदी में आकर मिल जाती है. इसका जल ग्रहण क्षेत्र बरसाती पानी एवं सोन नहर प्रणाली के नदी के विभिन्न शाखों के बचे हुए पानी से होता है. नोखा से निकलने वाले नारा जो चिल्हरुआ, बेलवइया एवं चौसा नहर साइफन के रास्ते जमरोढ होते हुए इस नदी के जल प्रवाह को बढ़ाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कचइनी चढ़ाने के कारण इस नदी का नाम कंचन नदी हुआ था. जिस नदी पर अनेक लोकगीत एवं कथाएं आज भी प्रचलित हैं.महान संत एवं कवि दरिया साहब का धरकन्धा और एवं हिंदी साहित्य के शिवपूजन सहाय का गांव उनवास इसी नदी के तट पर है. वर्तमान में यह नदी दो जिले बक्सर एवं रोहतास को जोड़ती है. जबकि शाहाबाद गजेटियर में फ्रांसिस बुकानन ने 1812- 13 के संरक्षण के मुताबिक यह दो राज्यों बिहार एवं अवध राज्य की सीमा क्षेत्र था. चौसा परगना तब शाहाबाद में नहीं बल्कि अवध राज्य में शामिल था.

नदियों के रास्ते होता था व्यापार

वर्षों पूर्व सड़क मार्ग नहीं होने से नदी के जल मार्ग से बक्सर पटना एवं बनारस से व्यापारी नाव लेकर आते थे. यह नदी जल मार्ग के रास्ते पहले व्यापार के लिए जानी जाती थी. पूर्व में इस नदी के पानी को जगह-जगह पर बांधकर सिंचाई कार्य भी होता था. इसके उदाहरण आज भी है जैसे बैरी, गेरुआ बांध, बावन बांध,मैरवा बांध बदलते समय में मानवीय कृत्यों आज इस नदी को सूखने के कगार पर ला दिया है.प्रचंड गर्मी के दिनों में भी इसमें धाराएं बहती थी. जगह-जगह से पानी रिसता था. जिसे लोग ””””भुर फूटना””””भी कहते थे. तट के कुछ जमीन में दलदल भी थी.

जलीय जीव हो रहे विलुप्त

कंचन और धर्मावती नदी में मीठे जल के जलीय जीव पाए जाते हैं.जिनमें कछुए, घोंघे, बड़ी छोटी सीपियां, सेवर ,मछलियों में टेंगरा,बरारी के अलावा अन्य जलीय जीव व्यापक बनाने पर पाए जाते हैं. हाल के पांच वर्ष पूर्व इन नदियों में गर्मी के दिनों में पानी रहने पर नदी के किनारे रहने वाले मछुआरों के लिए जीविका का साधन था. दिन में मछली पकड़ कर नजदीक के गांव में बेचकर वह अपना रोजी-रोटी चलाते थे. नदियों में फैल रहे गंदगी एवं कचरा फेंकने से इसका पानी भी अब गंदा हो गया है. ऐसे में इन जलीय जीवों का भी अस्तित्व खतरे में हो गया है.जीवों का अस्तित्व खत्म होने से पानी दिन प्रतिदिन जहरीला होता जा रहा है.

क्या कहते हैं पर्यावरण प्रेम

-कंचन एवं धर्मावती नदी गंगा नदी तंत्र प्रणाली की एक महत्वपूर्ण नदी है. इन नदियों के किनारे दर्जनों गांव एवं सैकड़ों बस्तियां हैं. नदियों से बालू निकालने की प्रक्रिया काफी रहा है.नदी के जल स्रोत नाले भी लुप्त हो गए हैं.यह एक भीषण संकट का संकेत है.अगर नदी जीवित रहेगी तभी यहां जीवन टिका रह पाएगा, अन्यथा इस क्षेत्र को मरुभूमि होने से कोई रोक नहीं सकता.नदियों के गाद को साफ कर इसे बचाने की जरूरत है. इनका प्रयास है कि आने वाले दिनों में बची हुई नदियों को बचाकर मृत हुई नदियों को जीवंत किया जाए.

27 अप्रैल- फोटो-4- लक्ष्मीकांत मुकुल, साहित्यकार एवं वाटर मैन एकेडमी से शिक्षा ग्रहण कर ””””नदी को जाने””””कोर्स कर नदियों को बचाने के मुहिम में लगे पर्यावरण प्रेमी.

-जलवायु परिवर्तन एवं तापमान में हो रही वृद्धि से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. बढ़ती आबादी के साथ भूमिगत जल का काफी अधिक दोहन हुआ है. मानवीय गतिविधियों पर रोक लगाते हुए नदी, पानी एवं समस्त जीवों को बचाना जरूरी है. पिछले कई वर्षों से गांव-गांव में जागरूकता लाकर सैकड़ो पेड़ लगाए गए हैं. अभी भी लोगों को जगने की जरूरत है.

27 अप्रैल – फोटो-5- विपिन कुमार ,शिक्षक सह पर्यावरण संरक्षक

– पानी अनमोल है. आज दुनिया के कई देश गंभीर जल संकट से जूझ रहे हैं. अपने देश में भी हालत बहुत खराब है. अगर हम आज नहीं सोचेंगे तो गांव में रहने वाले लोग भी बूंद बूंद पानी के लिए तरसते लगेंगे. इसे हर हाल में बचाना होगा.

27 अप्रैल- फोटो-6- राजपति राम ,शिक्षक धनसोई

– नदी आज भी हमारे लिए जीवनदायिनी है. जीवन से लेकर मरण संस्कार तक नदियां ही हमें ढोती हैं. जिन नदियों में सैकड़ो जलीय जीव हैं. इन जीवों को बचाकर हम इस पृथ्वी पर संतुलन बनाए रख सकते हैं. 27 अप्रैल- फोटो-7- ललन सिंह ,सिसौंधा के ग्रामीण किसान

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