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नारी की पीड़ा व उसकी आजादी पर सवाल करता है नाटक

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प्रेमचंद रंगशाला में चल रहे चार दिवसीय प्रवीण स्मृति सम्मान व नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन ‘कुच्ची का कानून’ नाटक का मंचन किया गया. यह नाटक शिवमूर्ति की कहानी है, जबकि इसका नाट्य रुपांतरण अभिजीत चक्रवर्ती ने किया है.

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नाट्य महोत्सव. प्रेमचंद रंगशाला में महोत्सव के दूसरे दिन ‘कुच्ची का कानून’ नाटक का हुआ मंचन-फोटो

पटना. प्रेमचंद रंगशाला में चल रहे चार दिवसीय प्रवीण स्मृति सम्मान व नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन ‘कुच्ची का कानून’ नाटक का मंचन किया गया. यह नाटक शिवमूर्ति की कहानी है, जबकि इसका नाट्य रुपांतरण अभिजीत चक्रवर्ती ने किया है. नाटक का निर्देशन बिज्येंद्र कुमार टांक ने किया है.कुच्ची विधवा होते हुए भी बिना दूसरा विवाह किये गर्भ धारण करती है, जो समाज के पुरुष मानसिकता को नागवार गुजरती है. प्राचीन काल से बस इसी मानसिकता के डर से कई बच्चे मारे जाते रहे हैं व गिराये जाते रहे हैं, जिन्हें समाज नाजायज समझता है. पर कुच्ची अपने बच्चे को पैदा करने के लिए अपनी पूरी सकारात्मक ऊर्जा से सारे समाज के सामने खड़ी हो जाती है. बालकिशन की माई नहीं डरने वाली…कुच्ची समाज से लड़ते हुए कहती है- सीता की माई डर गयी, अंजनी माई डर गयी पर बालकिशन की माई नहीं डरने वाली. मेरा बालकिशन पैदा होकर रहेगा. लेकिन क्या किसी एक महिला की हिम्मत से पितृसत्तात्मक मानसिकता में बदलाव आ सकता है? ऐसी ही किसी संभावनाओं की तलाश में है ये नाटक ‘कुच्ची का कानून’. नाटक में महिलाओं की स्वतंत्रता और हक के हनन के खिलाफ ऐसी ही एक आवाज उठाती है, कुच्ची भारतीय समाज प्राचीन काल से ही पुरुष सत्तात्मक मानसिकता का अनुयायी रहा है. इसमें महिलाओं की स्वतंत्रता उनकी अभिव्यक्ति और संवेदना को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता रहा है. उन्हें मात्र एक वस्तु के रूप में प्रयोग करने की सामग्री समझा गया है.

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