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जिंदा जले बच्चों के शव तलाशने लगे चंद पल पहले बरातियों के स्वागत की तैयारी में जुटे लोग

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सुपौल बजार हाटगाछी में बुधवार को शहनाई की गूंज और बरात की तैयारी में लगे मोहल्लेवासियों को बच्चों के कारुणिक चीत्कार ने रूला दिया.

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मुन्ना चौधरी, बिरौल. सुपौल बजार हाटगाछी में बुधवार को शहनाई की गूंज और बरात की तैयारी में लगे मोहल्लेवासियों को बच्चों के कारुणिक चीत्कार ने रूला दिया. हाटगाछी के आदर्शनगर में हीरा सहनी बरात के लिए सभी तैयारी पूरा कर चुके थे. टेंट सज चुका था. बरातियों के अलावा सैकड़ों लोगों के लिए खाना तैयार हो चुका था. सहरसा जिले के जलई ओपी क्षेत्र स्थित मनवर से उनके समधी महादेव मुखिया अपने बेटे उमेश मुखिया के साथ 17 नंबर हाइवे से कोठराम चौक होते हुए कोठी चौक बिरौल तक पहुंच चुके थे. अचानक पड़ोसी के घर में आग लगने की खबर आयी. इस घटना में बच्चों की मौत की खबर सुनकर सभी स्तब्ध रह गये. घटना विवाह मंडप से महज 10 मीटर की दूर हुई थी. लोग वही, समाज वही और स्थान भी वही. जब पड़ोस में दुःखद घटना होती है, तो इसका असर आसपास पर भी पड़ता है. चंद पल पहले तक बरात के स्वागत की तैयारी में जुटे लोग बच्चों के शव उठाने में लग गये थे. आग लगने से दो बच्चों की जिंदा जलने से मौत हो चुकी थी. इधर अचानक पड़ोस में हुई दु:खद घटना पर दुल्हन के चेहरे पर भी आंसू और दु:ख साफ झलक रहे थे. उसने अपने घर के संगीतकारों व बरातियों से कहा कि उन्हें लौट जाना चाहिए. अंततः, शादी के बीच हुए इस दर्दनाक हादसे के कारण बरात शादी के बिना ही लौट गयी. राख के ढेर में पत्नी व बच्चों को दे रहा आवाज, जिंदा जल चुके दो बेटों के लिए फेंक रहा चॉकलेट, बिस्कुट व तरबूज बिरौल. राख के ढेर में बेसुध व पागलों की तरह अपने दो बच्चों को खो चुके पिता ने जब चॉकलेट, बिस्किट व तरबूज फेंकना शुरू किया, तो मोहल्ले में खड़े लोगों की आंखें नम हो उठीं. शाम को मजदूरी कर अपनी पत्नी गीता के संग लौटे अशोक सहनी ने झोपड़ीनुमा घर में कदम रखा. टाट-फूस के घर में न तो बिजली की जगमगाती रोशनी थी और न ही खाना बनाने के लिए गैस चूल्हा. आंगन में न पानी पीने के लिए चापाकल है और न ही कहीं शौचालय. घर में मिट्टी का चूल्हा, कुछ जलावन, कुछ बर्तन, डब्बे में राहर की दाल, नमक और महज एक वक्त का राशन, बावजूद बच्चों के साथ खुशियां भरपूर. इसलिए कि परवरिश में असमर्थ रहने के कारण गीता ने बच्चों को अपनी बहन अमला देवी को सौंप रखा था. इन बच्चों को महज पांच दिन पहले ही लेकर गीता घर लौटी थी. बुधवार की शाम गीता ने मोमबत्ती जलाकर बच्चों के लिए खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. पति अशोक ने कहा, आज पड़ोस में शादी है. वहीं जा रहा हूं. तुम्हें भी खाना बनाने की जरूरत नहीं है. आज कुछ अच्छा खाने को मिल जायेगा. निश्चिंत होकर गीता अपने बच्चों के साथ सो गयी. चारों तरफ पक्के मकानों के बीच एक झोपड़ीनुमा छोटे से कमरे में अनुमंडल के मुख्य बजार स्थित इस छोटी सी गली में सुकून से सोते इस परिवार पर अचानक कहर बरप गया. गरीबी की परकाष्ठा को झेलने के बाद भी खुश रहने वाले इस परिवार को अब हमेशा के लिए अंधेरा मिलने वाला था. एक चिंगारी उठी और घर में आग लग गयी. जबतक कोई कुछ समझ पाता, आग की लपट ने भयंकर रूप ले लिया. लपटों ने उसके घर के ऊपर से गुजरे सभी विद्युत तार को नंगा कर दिया. घर के छप्पर में लगा प्लास्टिक गलकर बच्चों पर गिरता रहा. इससे एक बच्चे की मौत तड़प-तड़पकर हो चुकी थी. बच्चों को बचाने के लिए मां झुलसती जा रही थी. इधर गांव के लोगों ने अग्निशमन दस्ता को सूचना दी. आसपास से बालू फेंककर किसी तरह आग पर काबू पाया. बच्चों के साथ घायल मां को सरकारी अस्पताल ले जाया गया, परंतु बच्चे की मौत हो चुकी थी और गीता को गंभीर हालत में डीएमसीएच व पीएमसीएच रेफर कर दिया गया. बच्चे के पिता अशोक सहनी अपना सबकुछ गंवा चुके थे. सुबह तक बेसुध पड़ा जलता हुआ घर देखता रहा. अपने बच्चों व पत्नी को पुकारता रहा. अहले सुबह लोगों की भीड़ जमा हो गयी. प्रशासनिक अधिकारी क्षति का आकलन लेने पहुंचे, तो उसकी नजरों के सामने टिकने व कुछ बोलने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. एसडीओ उमेश कुमार भारती भी इस घटना से इतने मर्माहत नजर आ रहे थे कि करीब डेढ़ बजे तक अपने कार्यालय, घटना स्थल व अंचल कार्यालय का दौड़ा कर जबतक उसे सभी सरकारी राशि का चेक उपलब्ध नहीं कराया, चैन से नहीं बैठे. विद्युत विभाग के अधिकारियों को भी इन गलियों में पोल की व्यवस्था करते हुए तुरंत सभी तारों को व्यवस्थित कराने का आदेश दिया.

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