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Durga Puja 2023: बिहार के भागलपुर में नाथनगर स्थित महाशय ड्योढ़ी दुर्गा स्थान में जिउतिया के बाद रविवार को मां दुर्गा की पूजा शुरू हो गयी, जो 16 दिनों तक चलेगी. बांग्ला विधि-विधान से कलश स्थापित की गयी. गाजे- बाजे के साथ मुख्य पुरोहित समेत सात पंडितों ने गंगा तट पर कलश में जल भरा और दुर्गा स्थान में विधि-विधान से कलश स्थापित की.
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Durga Puja 2023: महाशय ड्योढ़ी व सुजापुर की पूजा भी पारंपरिक ढंग से होती है. जिउतिया पर्व के बाद से ही दुर्गा पूजा की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. यह प्रक्रिया बोधन घट निकालने से शुरू होती है, जिसमें देवी दुर्गा को आह्वान किया जाता है.
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Durga Puja 2023: इसमें श्रद्धालु गंगा नदी से कलश में पानी भर कर लाते हैं. फिर इसे पूजा स्थान में स्थापित किया जाता है. यही प्रक्रिया चतुर्थी व सप्तमी को भी की जाती है. चतुर्थी और सप्तमी को (केला बहू) नौ पत्ते को मां के रूप में गंगा में स्नान करा कर स्थापित की जाती है. सप्तमी के दिन आसपास की महिलाएं पुष्पांजलि करती हैं. अष्टमी को महाभोग व आरती और नवमी को पूजन होता है. दशमी को श्रद्धालु पूजन के बाद मैया की प्रतिमा विसर्जित करते हैं. प्रतिमा विसर्जन के लिए गंगा नदी में नाव पर मां को सात बार चक्कर लगवाया जाता है. इसके बाद महिलाएं सिंदूर खेला करती है और पुरुष एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं.
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Durga Puja 2023: महाशय ड्योढ़ी परिसर में कौड़ी लुटायी गयी. कौड़ी लूटने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे. मान्यता है कि घर में लूटी हुई कौड़ी रखना शुभ होता है. महिलाओं ने एक-दूसरे को सिंदूर लगा कर सुख-समृद्धि के लिए मां दुर्गा का आह्वान किया.
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Durga Puja 2023: महाशय ड्योढ़ी में मिट्टी के फर्श पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. इसे पवित्र व सात्विक माना जाता है. पूजा स्थान पर कलश स्थापना के बाद कौड़ी लुटायी जाती है कौड़ी पाने वाले श्रद्धालु खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि पवित्र चीज प्राप्त कर ली.
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Durga Puja 2023: महाशय ड्योढ़ी की पूजा भी पारंपरिक ढंग से होती है. जिउतिया पर्व के बाद से ही दुर्गापूजा की प्रक्रिया शुरू हो जाती है. यह प्रक्रिया बोधन घट निकालने से शुरू होती है, जिसमें देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है. श्रद्धालु गंगा नदी से कलश में पानी भर कर पूजा स्थान में स्थापित की जाती है. यही प्रक्रिया चतुर्थी व सप्तमी को भी की जाती है. चतुर्थी और सप्तमी को (केला बहू) नौ पत्ते को मां के रूप में गंगा में स्नान करा कर स्थापित की जाती है.