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Women Reservation Bill: 27 साल बाद महिलाओं को हक का मौका, जानें महिला आरक्षण विधेयक की खास बातें

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Women Reservation Bill: केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने संसद के विशेष सत्र के दौरान सरप्राइज दिया है. सूत्रों के हवाले से खबर है कि केंद्रीय कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को अपनी मंजूरी दे दी है. जानें इस बिल की खास बातें..

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देश में महिलाओं को जनप्रतिनिधत्व का समानुपातिक अवसर देने के लिए कई बार पहल की गयी. 27 साल से यह मुद्दा उठता रहा है. राजनीतिक दलों ने चुनावी घोषणापत्रों में इसे लेकर वादे भी किये. संसद के पटल पर भी यह विषय आता रहा. राज्यसभा में इसे लेकर बिल भी आया, लेकिन लोकसभा में यह पारित नहीं हो सका. सोमवार को मोदी मंत्रिमंडल ने बड़ा फैसला िकया और महिला आरक्षण विधेयक 2023 को मंजूरी दे दी. अब इसे लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाना है. यह महिलाओं को अधिकार देने की दिशा में एक बड़ा कदम है.

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संसद का पांच दिवसीय विशेष सत्र सोमवार से शुरू हो गया. संसद के इस विशेष सत्र के दौरान केंद्र सरकार की ओर से आठ विधेयक पेश किये जाने हैं. इस बीच चर्चा है कि संसद के विशेष सत्र में ही मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल ला सकती है. सोमवार की शाम को मोदी सरकार की कैबिनेट बैठक में इस बिल को मंजूरी दे दी गयी. संसद के विशेष सत्र से पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक में विपक्ष के ज्यादातर नेताओं ने महिला आरक्षण बिल लाने की वकालत की थी. जानकारी के मुताबिक, मोदी सरकार की ओर से आगामी मंगलवार को महिला आरक्षण बिल पेश किया जा सकता है.

1996 से संसद में लंबित है महिला आरक्षण बिल

महिला आरक्षण विधेयक एचडी देवगौड़ा की सरकार के समय 12 सितंबर, 1996 को संसद में पेश किया गया था. तब से लेकर अब तक यह बिल 27 वर्षों से ज्यादा समय से लंबित है. इस विधेयक का मुख्य लक्ष्य महिलाओं के लिए लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं में 15 साल के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करना है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में इस विधेयक को आगे बढ़ाया, लेकिन ये फिर भी पारित नहीं हुआ. अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में 33 फीसदी आरक्षण का उल्लेख किया था.

नौ मई, 2010 को राज्यसभा से पारित

यूपीए-1 की सरकार के दौरान छह मई, 2008 को इस विधेयक को राज्यसभा में दोबारा पेश किया गया. महिला आरक्षण विधेयक नौ मई, 2008 को स्टैंडिंग कमेटी को भेजा गया. स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट 17 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत की गयी. केंद्रीय कैबिनेट ने फरवरी 2010 में इस विधेयक को मंजूरी दे दी. इसके बाद नौ मार्च, 2010 को विधेयक राज्यसभा से पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में लंबित था. राजद और सपा ने जाति के हिसाब से महिला आरक्षण की मांग करते हुए इसका विरोध किया.

2014 और 2019 : भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया. 10 मार्च, 2023 को भारत राष्ट्र समिति की नेता के कविता ने महिला आरक्षण विधेयक को जल्द ही पारित करने की मांग की थी.

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क्या है बिल में प्रावधान

महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी या एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है. विधेयक में 33 फीसदी कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो-इंडियन के लिए उप-आरक्षण का भी प्रस्ताव है. विधेयक में प्रस्तावित है कि प्रत्येक आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन द्वारा आवंटित की जा सकती हैं.

बिल के समर्थन-विरोध में अपने-अपने तर्क

1996 के महिला आरक्षण बिल की जांच करने वाली रिपोर्ट में सिफारिश की गयी कि ओबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति देने के लिए संविधान में संशोधन होने के बाद अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षण दिया जाना चाहिए. यह भी सिफारिश की कि आरक्षण को राज्यसभा और विधान परिषदों तक बढ़ाया जाये. इनमें से किसी भी सिफारिश को विधेयक में शामिल नहीं किया गया है. महिला आरक्षण पर लोगों की अलग-अलग राय है. बिल के समर्थन मे कहा जाता है कि इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार आयेगा. पंचायतों पर हाल के कुछ अध्ययनों ने महिला सशक्तिकरण और संसाधनों के आवंटन पर आरक्षण का सकारात्मक प्रभाव दिखाया है.

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इस बिल के विरोध में तर्क दिये जाते हैं कि इससे महिलाओं की असमान स्थिति कायम बनी रहेगी क्योंकि उन्हें योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्धा करने वाला नहीं माना जायेगा. उनका यह भी तर्क है कि यह नीति चुनाव सुधार के बड़े मुद्दों जैसे राजनीति के अपराधीकरण और आंतरिक पार्टी लोकतंत्र से ध्यान भटकाती है. संसद में सीटों का आरक्षण मतदाताओं की पसंद को महिला उम्मीदवारों तक सीमित कर देता है.

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पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी

संविधान के अनुच्छेद 243डी के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को आरक्षण प्रदान किया गया. अनुच्छेद 243डी ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की. चुनाव से भरी जाने वाली सीटों की कुल संख्या और पंचायतों के अध्यक्षों के पदों की संख्या में महिलाओं के लिए कम-से-कम एक तिहाई आरक्षण है. 21 राज्यों ने अपने-अपने राज्य में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया है. ये राज्य आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, पंजाब, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल हैं.

40 देशों में है महिलाओं के लिए कोटा

स्वीडन स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस (आइडीइए) के अनुसार, लगभग 40 देशों में या तो संवैधानिक संशोधन के माध्यम से या चुनावी कानूनों में बदलाव करके संसद में महिलाओं के लिए कोटा तय किया गया है. 50 से अधिक देशों में प्रमुख राजनीतिक दलों ने स्वेच्छा से अपने स्वयं के कानून में कोटा प्रावधान निर्धारित किये हैं.

एक नजर में जानें ये

1974 : पहली बार संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा भारत में महिलाओं की स्थिति के आकलन संबंधी समिति की रिपोर्ट में उठाया गया था. इसमें पंचायतों और स्थानीय निकायों में सीटें आरक्षित करने का सुझाव दिया गया.

1993 : संविधान में 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गयीं.

1996 : महिला आरक्षण विधेयक को पहली बार एचडी देवगौड़ा सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में पेश किया. लेकिन देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गयी और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया.

1996 का विधेयक भारी विरोध के बीच संयुक्त संसदीय समिति के हवाले कर दिया गया था.

1998: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में फिर से विधेयक पेश किया. लेकिन गठबंधन की मजबूरियों और भारी विरोध के बीच यह लैप्स हो गया.

1999, 2002, 2003 : इसे फिर लाया गया, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात रहा.

2008: मनमोहन सिंह सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण से जुड़ा 108वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश किया.

2010: तमाम राजनीतिक अवरोधों को दरकिनार कर राज्यसभा में यह विधेयक पारित करा दिया गया. कांग्रेस को भाजपा और वाम दलों के अलावा कुछ और अन्य दलों का साथ मिला, पर लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पायी.

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