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भारत के पर्यटन उद्योग को एक ब्रांड के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2002 में अतुल्य भारत अभियान की शुरुआत की गयी. इस अभियान ने भारत के पर्यटन उद्योग को काफी लाभ भी पहुंचाया है. आज भारत की जीडीपी में पर्यटन उद्योग की हिस्सेदारी जहां 6 प्रतिशत से अधिक है.

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भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधताएं और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भूगोल हमें पर्यटन के क्षेत्र में भी समृद्ध बनाता है. ऊंचे पहाड़, पठार, रेगिस्तान, नदियां, समुद्री तट और हिमालय की तराई में फैला हुआ इलाका भारत की पर्यटन संपदा है. देश में मौजूद सांस्कृतिक विशेषताएं दुनिया को इसके प्रति आकर्षित करती हैं. विविध सभ्यताओं के ऐतिहासिक स्मृति चिह्न यहां के पर्यटन को भी विकसित करते हैं. ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक, प्राकृतिक दर्शनीय स्थलों ने पूरी दुनिया के पर्यटकों को भारत के प्रति आकर्षित किया है. हमारे यहां तरह-तरह के पर्यटक पूरी दुनिया से आते हैं, कोई इतिहास समझने आता है, तो आध्यात्मिक शांति के लिए, किसी को प्रकृति भाती है, तो किसी को यहां का वातावरण.

वर्ष 1947 में जब हमें आजादी मिली, उस समय हमारे देश के बहुत से दर्शनीय स्थल जीर्ण-शीर्ण हो चुके थे, बहुत-सी कलाएं संरक्षण के आभाव में दम तोड़ चुकी थीं. इसके अलावा अंग्रेजों ने इंडियन ट्रेजर ट्रोव एक्ट, 1878 के तहत बहुत-सी कलाकृतियों को भारत से जब्त करके विदेशों में भेज दिया था. यही कारण था कि उस समय भारत के स्मारक और कलाओं को विशेष संरक्षण की जरूरत थी, लेकिन आजादी के समय भारत का राजकोष पूरी तरह से खाली हो चुका था. ऐसे में भारत सरकार ने उस दौर में अपना ध्यान जनता की रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकताओं को पूरा करने में लगाया. हालांकि, वर्ष 1949 में सरकार ने भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए परिवहन मंत्रालय के तहत पर्यटन विभाग को एक विशेष डिवीजन के रूप में स्थापित किया. इस डिवीजन ने पाया कि भारत में ऐतिहासिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं.

कई प्रयासों के बाद भी 1950 के दशक में भारत में पर्यटन उद्योग का रूप नहीं ले सका. वर्ष 1950 के दशक में भारत में जहां 17, 000 के करीब पर्यटक, पर्यटन यात्रा पर आये. वहीं, 1960 के दशक में इनकी संख्या बढ़कर 1 लाख, 23 हजार हो गयी. इससे स्पष्ट हो गया कि अगर पर्यटन के क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाये तो पर्यटकों की संख्या में वृद्धि सकती है. भारत के पर्यटन क्षेत्र में बड़ा बदलाव अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद आया. इसके बाद सरकार द्वारा भी भारतीय पर्यटन उद्योग को वैश्विक स्तर का बनाये जाने की कार्ययोजना बनने लगी. पर्यटन उद्योग के विकास के लिए को-ऑपरेटिव फेडरलिज्म के मॉडल पर काम करने की योजना बनायी गयी.

भारत के पर्यटन उद्योग को एक ब्रांड के तौर पर प्रोत्साहित करने के लिए वर्ष 2002 में अतुल्य भारत अभियान की शुरुआत की गयी. इस अभियान ने भारत के पर्यटन उद्योग को काफी लाभ भी पहुंचाया है. आज भारत की जीडीपी में पर्यटन उद्योग की हिस्सेदारी जहां 6 प्रतिशत से अधिक है. वहीं, वर्ष 2018 में देश की अर्थव्यवस्था में इसका योगदान लगभग 10 प्रतिशत के बराबर रहा. इसके अलावा पर्यटन उद्योग देश के 8.1 प्रतिशत लोगों को रोजगार भी मुहैया कराता है. विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद के अनुसार, भारत 185 देशों की सूची में पर्यटन के मामले में 10वें स्थान पर है. पर्यटन उद्योग से भारत को लगभग 30 बिलियन डॉलर की विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है, लेकिन कुल विदेशी पर्यटकों के मात्र 1.23 प्रतिशत पर्यटक ही पर्यटन के लिए हमारे यहां आते हैं. जबकि, यह संख्या बढ़ सकती है.

दरअसल, हमारे देश की सांस्कृतिक समृद्धि और गौरवशाली इतिहास इसको अच्छा गंतव्य स्थान बनाता है. हमारे यहां के ऐतिहासिक और प्राचीन स्थलों पर की गयी कारीगरी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र हो सकती हैं. हमारे देश में ऐतिहासिक इमारतों के अलावा सुंदर पहाड़, नदियां और मन को सुकून देने वाली प्राकृतिक शांति पर्यटकों को अपनी ओर लुभा सकती है. भारत की बहुविविधता के बारे में कहा जाता है कि यहां हर एक चार कोस पर वाणी और पानी बदल जाता है. आप जैसे-जैसे इस देश में भ्रमण करेंगे, तो आपको विभिन्न व्यंजनों, आस्था, कला, हस्त शिल्प, शिल्प, संगीत, प्रकृति, भू-भाग, आदिवासी समुदाय, इतिहास एवं रोमांचक क्रीड़ाओं में बहु विविधता देखने को मिलेगी.

चूंकि, पर्यटन आज दुनिया का सबसे बड़ा उद्योग बन गया है. इस मामले में भारत की अनूठी भौगोलिक अवस्थिति, प्राकृतिक संसाधन, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत और धरोहर, पर्यटन के नक्शे पर अति महत्वपूर्ण स्थान बनाती है. भारत में उत्तर में कश्मीर से सुदूर दक्षिण में अवस्थित कन्याकुमारी तक, पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश के किबूथू से गुजरात के कच्छ के रण तक, पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के मिलन बिंदु याना नीलगिरी की पहाड़ियों तक, प्रत्येक क्षेत्र की अपनी अनूठी विशिष्टता और संस्कृति है.

पाश्चात्य जीवनशैली से ऊब चुके विदेशी पर्यटकों को मानसिक शांति तो हिमालय की सुरम्य और दुर्गम्य चोटियों को ट्रैकिंग कर मिलती है या फिर वे ऋषिकेश के गंगा तट पर योग और आरती करते नजर आते हैं. ये वाराणसी में अपनी जिंदगी को नया अनुभव देते हैं या रांची अवस्थित योगदा सत्संग में समय बिताते हैं या फिर बेलूर अवस्थित के रामकृष्ण आश्रम हो या पुडुचेरी में अवस्थित महर्षि अरविंद के ऑरेविले आश्रम से निकल कर कन्याकुमारी में विवेकानंद रॉक पर जाकर अपने भीतर सत्य की तलाश करते नजर आते हैं या आप अपने सैनिकों की शौर्य गाथा को सैन्य विरासत पर्यटन के रूप में देख सकते हैं. भारत में जन्मे बौद्ध धर्म ने पूरी दुनिया को सांस्कृतिक व धार्मिक रूप से भी भारत से जोड़ा है. अत्यधिक व्यस्ततम जीवनशैली में ज्ञान और मानसिक शांति की तलाश में आने वाले पर्यटकों के लिए भारत उन्हें कई विकल्प प्रदान कर रहा है.

इसके बावजूद वैश्विक पटल पर पर्यटन के विकास के मामले में भारत की स्थिति बहुत बेहतर नहीं रही है, विडंबना देखिए देश की आजादी के तीन दशक बाद देश को पहली राष्ट्रीय पर्यटन नीति, 1982 में नसीब हुई. हालांकि, बीते एक दशक से इस क्षेत्र पर व्यापक ध्यान दिया जा रहा है. ये योजनाएं इस बात की तस्दीक करती हैं.

स्वदेश दर्शन योजना

इसके तहत पर्यटन मंत्रालय 13 चिह्नित थीम आधारित सर्किट्स के बुनियादी ढांचे के विकास हेतु राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करता है.

तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक, विरासत संवर्द्धन अभियान पर राष्ट्रीय मिशन : पर्यटन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014-15 में चिह्नित तीर्थस्थलों के समग्र विकास के उद्देश्य से ‘प्रसाद योजना’ शुरू की गयी. राष्ट्रीय विरासत के संरक्षण प्राकृतिक वातावरण पर्यटन उत्पादों के विकास और संवर्धन को भी महत्व दिया जायेगा. भारत की नयी पर्यटन नीति का उद्देश्य विदेशी पर्यटकों को प्रत्याशित लागत पर प्रभावी पारदर्शी और विश्वसनीय सेवाएं उपलब्ध कराकर उनके भारत प्रवास को अविस्मरणीय और सुखद बनाना भी है, जिससे वे भारत के मित्र के रूप में बार-बार अतुलनीय भारत की धरा पर भ्रमण के लिए आएं. अगर ऐसा होता है तो सही मायने में यह भारत को उनकी नजरों में ‘अतुलनीय और अविस्मरणीय भारत’ और ‘अतिथि देवो भव:’ के परंपरागत दर्शन के अनुरूप होगा.

पर्यटन के बढ़ते हुए महत्व को इस बात से ही समझा जा सकता है कि इसे व्यक्ति के अधिकार का विषय माना गया है. वर्ष 1980 में फिलीपींस की राजधानी मनीला में विश्व पर्यटन संगठन द्वारा आयोजित सम्मेलन में कहा गया कि पर्यटन का उद्देश्य मानव के जीवनशैली और उनके रहन-सहन के स्तर को बेहतर करता है. इससे व्यक्ति के व्यक्तित्व, उसके आंतरिक विकास और बेहतर जीवनशैली प्रदान करता है. इस सम्मेलन में पर्यटन को व्यक्ति का अधिकार बताते हुए प्रत्येक राष्ट्र के लिए इसे ‘परम आवश्यक गतिविधि’ बताया गया. विस्तृत रूप से देखा जाये तो पर्यटन का विकास का ताना बाना राष्ट्रों के सामाजिक व आर्थिक विकास के साथ जुड़ा हुआ है. पर्यटन को मानव को ‘संतोष प्रदान करनेवाली गतिविधि’ के रूप में स्वीकार किया गया है.

भारत के पास ऐतिहासिक व आध्यात्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं. इसी उद्देश्य से भारत ने विभिन्न धार्मिक परिपथों की शुरुआत की है. इसके तहत एक धर्म या महापुरुष से संबंधित विभिन्न स्थलों की पहचान कर उन्हें आपस मे जोड़ा जा रहा है. उदाहरण के तौर पर बौद्ध परिपथ, रामायण परिपथ, उत्तर पूर्वी परिपथ, हिमालय परिपथ, तीर्थंकर परिपथ आदि प्रमुख हैं. इन सबके साथ जरूरी है कि पर्यटकों के साथ हमारा व्यवहार ऐसा हो कि वे बार-बार भारत आने को उत्साहित हों. जैसा सम्मान हम अपने अतिथियों के साथ करते हैं, वैसा व्यवहार हम पर्यटकों के साथ भी करें.

(लेखक दूरदर्शन समाचार नयी दिल्ली से संबद्ध हैं.)

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