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Eid 2023: मुसलमान ईद से पहले गरीबों का रखें ख्याल, समय से दें जकात और सदका-ए-फित्र, जानें क्यों है जरूरी

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Eid 2023: इस्लाम में पांच स्तंभ में से एक जकात है. जकात की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि समाज में आर्थिक बराबरी के मकसद से कुरान में 83 जगह पर नमाज के साथ जकात का जिक्र आया है. जकात के साथ सदका लफ्ज भी प्रयोग किया गया है. जकात निकालने से इंसान का माल पाक हो जाता है, उसमें बरकत होती है.

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Bareilly: रमजान का मुकद्दस महीना चल रहा है. इस महीने में मुसलमान रोजों के साथ पांचों वक्त की नमाज अदा (इबादत) करते हैं. जिसके चलते मस्जिदें नमाजियों से फुल हैं. मगर, रोजों की तरह जकात (गरीबों की आर्थिक मदद) भी फर्ज है.

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इस वजह से दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) ने ईद से पहले रोजदारों को पैगाम दिया है. उन्होंने गरीब मुसलमानों का ख्याल रखने की बात कही. उन्होंने कहा कि मालदार मुसलमानों के माल पर गरीबों का हक है. जकात, और सदक़ा-ए-फित्र (ईद से पहले गरीबों की आर्थिक मदद) समय से अदा कर दें. हर इंसान को 65 रुपये सदका-ए-फित्र की रकम तय है. इसके साथ ही हैसियतमंद मुसलमान जौ (अन्न) की कीमत के 170, खजूर 1150 और मुनक्का की कीमत 1350 रुपये अदा करे. ये सबसे बेहतर है.

मुसलमान पर जकात फर्ज

दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ़्ती अहसन रजा कादरी ने मुल्क भर के मालदार मुसलमानों से अपील की. उन्होंने कहा कि जिन मुसलमान पर जकात फर्ज है, वह सभी शरई मालदार मुसलमान हैं. जकात के लिए साढ़े सात तोला सोना या इसकी कीमत, साढ़े बावन तोला चांदी या इसकी कीमत, रुपये या चल-अचल संपत्ति है. ऐसे लोग इस्लाम में मालदार व्यक्ति कहलाता हैं.उनको अपने माल की जकात व सदका-ए-फित्र की रकम जल्द से जल्द खुदा का शुक्र अदा करते देनी चाहिए. अल्लाह ने उन्हें देने वाला बनाया है न कि लेने वाला.आपकी जकात से गरीब मुसलमान भी आने वाली ईद की खुशियों में शामिल हो सकें.

इस्लाम में पांच स्तंभ

दरगाह के मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि इस्लाम में पांच स्तंभ में से एक जकात भी है. जकात की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि समाज में आर्थिक बराबरी के मकसद से कुरान (आसमान से अवतरित किताब) में ’83’ जगह पर नमाज के साथ जकात का जिक्र आया है. जकात के साथ सदका लफ्ज का भी जगह-जगह प्रयोग किया गया. जकात निकालने से इंसान का माल पाक हो जाता है, उसमें बरकत होती है. मालदार मुसलमानों के माल पर सबसे पहला हक गरीबों का है. उनकी जिम्मेदारी है कि वह लोग गरीब, यतीम (अनाथ), बेवा (विधवा) और जरूरतमंद तक ये रकम पहुंचाएं.

यह देनी है जकात

मुसलमानों को उनकी आमदनी से पूरे साल में जो बचत होती है और एक साल बीत गया हो. उस माल पर कुल ढाई प्रतिशत हिस्सा गरीबों में देना अनिवार्य है. अगर, किसी के पास तमाम खर्च करने के बाद 1000 रुपये बचते हैं, तो उसे 25 रुपए जकात अदा करनी है. इसके साथ ही सदका-ए-फित्र वाजिब है. सदके की रकम अपनी और अपनी नाबालिग बच्चों की तरफ से निकालनी है. सदका-ए-फित्र 2 किलोग्राम 47 ग्राम गेहूं, 4 किलोग्राम 94 ग्राम जौं, ख़जूर या मुनक्का या इसकी कीमत अदा करनी है.

एक इंसान पर 65 रुपये सदका-ए-फित्र

बरेली के बाजार में इस वक्त अच्छी क्वालिटी के 2 किलो 47 ग्राम गेहूं की कीमत 65 रुपये है. इसलिए हर इंसान को 65 रुपये सदका अदा करना है. इसके अलावा 4 किलो 94 ग्राम जौ की कीमत 170 रुपये, खजूर 1150, मुनक्का की कीमत 1350 रुपये है. इसकी बड़ी कीमत भी अदा कर सकते हैं. यह रकम मां, बाप, दादा, दादी, नाना-नानी व नाती-नवासों को नहीं दी जा सकती. लेकिन, भाई-बहन,चाचा-चाची, मामू-मुमानी, फूफी-फूफा, खाला-खालू के अलावा रिश्तेदारों,मदरसों,बीमारों, जरूरतमंद को दे सकते हैं.

जकात अरबी भाषा का शब्द

इस्लाम में जकात फर्ज है. मगर, यह अरबी भाषा का शब्द है. इसका मतलब (अर्थ) “पाक या शुद्धी करने वाला.” जजकात अल-माल “सम्पत्ती पर जकात” या “जकाह” इस्लाम में एक प्रकार का “दान देना” है. इसको धार्मिक रूप से ज़रूरी करार दिया गया है.

रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद बरेली

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