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पाशुपतास्त्र एवं नारायणास्त्र

तपस्याएं अनेक प्रकार की होती हैं. लेकिन, यहां पर मैं पंचाग्नि तपस्या की चर्चा कर रहा हूं, क्योंकि इसका संबंध पाशुपत विद्या के साथ है. पाशुपतास्त्र में ‘फट्’ शब्द का उच्चारण करते हैं.

‘फ’ अक्षर मणिपुर चक्र का है और ‘ट’ अनाहत चक्र का है. इस प्रकार यह मंत्र हुआ मणिपुर और अनाहत का, नाभि और हृदय का. जब फट् मंत्र का बार-बार उच्चारण करोगे, तो हृदय पर थोड़ा प्रेशर का अनुभव होगा. जब हम इनका उच्चारण करते हैं, तो हमारे भीतर के चक्र भी जागृत होते हैं. पूर्णहुति के समय हम पाशुपतास्त्र विधि का उपयोग इसी पंचाग्नि तपस्या को सिद्ध करने के लिए करते हैं.

पंचाग्नि को सिद्ध करने के लिए अपने मन पर अच्छा अंकुश होना चाहिए, क्योंकि इस साधना में जो वास्तविक चीज होती है, वह है धारणा का अभ्यास. हमारे यहां पाशुपतास्त्र के समकक्ष एक अस्त्र है नारायणास्त्र. महाभारत में एक बार जब नारायणास्त्र को चलाया गया था, तब श्रीकृष्ण ने निर्देश दिया, ‘सभी योद्धा अपने अस्त्र-शस्त्र नीचे रख कर खाली हाथ हो जायें, क्योंकि जो इस अस्त्र का विरोध करेगा, उसका तो सर्वनाश होना ही है. इसलिए अपने अस्त्र-शस्त्रों को एक किनारे फेंक दो, तब नारायणास्त्र तुम्हें सुरक्षित रखेगा. लेकिन, अगर तुम्हारे हाथ में एक भी बाण रह गया, तो समझ लो कि तुम्हारा नाश होनेवाला है.’ पाशुपतास्त्र और नारयणास्त्र- हमारी भारतीय परंपरा में इन दो अस्त्रों से शक्तिशाली कोई दूसरा अस्त्र नहीं है.

ये अस्त्र भौतिक भी हैं और आध्यात्मिक भी. यही इनकी खूबी है. अब हम लोग तो उतने सामर्थ्यवान नहीं कि इस दिव्य अस्त्र को भौतिक स्तर पर धारण कर सकें, और उसका कोई प्रयोजन भी नहीं है. आखिर किससे लड़ाई करनी है? अगर आदमी को खत्म करना है, तो डंडा पर्याप्त है, उसके लिए पाशुपतास्त्र की आवश्यकता नहीं है. लेकिन, जो अनुष्ठान हम लोग कर रहे हैं, वे मुक्त हो जायें. ब्रह्मग्रंथि, विष्णुग्रंथि और रुद्रग्रंथि- हमारी शरीर के भीतर की ये तीन ग्रंथियां ही तीन पुर हैं, जिनका नाश शिवजी को करना है. जब त्रिपुर का नाश हो जाता है, तब फिर अपने अहंकार के अस्त्र को भी नीचे रखना पड़ता है, ताकि नारायणास्त्र हमें प्रभावित न करे. इस तरह ये दो महत्वपूर्ण साधनाएं, आराधनाएं और मंत्र हैं.

– स्वामी निरंजनानंद सरस्वती

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