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यूपी में योगी राज : 2019 का प्रयोजन है योगी की ताजपोशी

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सरकार में दलितों मुसलमानों व पिछड़ों की भागीदारी बडा सवाल विवेक कुमार समाजशास्त्री योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाना प्रजातंत्र के लिए अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है. मेरे ख्याल में, आज के भारतीय प्रजातंत्र में यह विचारधारा का संकट भी है. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह […]

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सरकार में दलितों मुसलमानों व पिछड़ों की भागीदारी बडा सवाल
विवेक कुमार
समाजशास्त्री
योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाना प्रजातंत्र के लिए अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती है. मेरे ख्याल में, आज के भारतीय प्रजातंत्र में यह विचारधारा का संकट भी है. और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिनिधित्वकारी प्रजातंत्र के हिसाब से एक संक्रमण काल भी है. प्रजातंत्र मजबूत तब होता है, जब वह प्रतिनिधित्वकारी प्रजातंत्र से सहभागी प्रजातंत्र की तरफ जाता है. उत्तर प्रदेश की कमान एक ऐसे संन्यासी के हाथ में दी गयी है, जिसके पूर्व संन्यास की अस्मिता जिंदा है. कहा जाता है कि जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान. लेकिन एक ऐसा साधु, जिसकी जाति और अस्मिता सबको पता है. इस आधार पर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना कर साल 2019 के लिए एक सामाजिक संदेश भेजने का प्रायोजन किया गया है.
वहीं दूसरी तरफ, दो उपमुख्यमंत्रियों को बना कर दो अस्मिताओं का सीधे-सीधे प्रचार किया गया- एक, पिछड़ा वर्ग और दूसरा, ब्राह्मण वर्ग. यानी अगर योगी ही सिर्फ मुख्यमंत्री बनते, तो यहां तक ठीक था, लेकिन दो उपमुख्यमंत्रियों- केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा- का बनाया जाना, यह प्रमाणित करता है कि पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति साल 2019 के आम चुनावों की बिसात के लिए ही बिछायी गयी है. यहां महत्वपूर्ण सवाल है- 20-22 प्रतिशत दलितों और 19 प्रतिशत मुसलिमों के लिए उपमुख्यमंत्रियों का पद नहीं हो सकता था क्या? लेकिन, साढ़े सात प्रतिशत क्षत्रिय के लिए मुख्यमंत्री का पद और सात प्रतिशत ब्राह्मण के लिए उपमुख्यमंत्री का पद दिया गया है.
इसका संदेश बिल्कुल साफ है कि अगले पांच सालों तक राज्य में दलितों और मुसलमानों को फिर से एक बार नजरअंदाज किया जायेगा. यानी राज्य में विकास की धारा के अंदर इन दो वर्गों के लिए कोई विशेष प्रकार का प्रायोजन नहीं होगा. यह बात प्रमाणित है कि जब दलित और मुसलिम जैसी खंडित अस्मिताओं के लिए योजनाएं बनती हैं, तो उनके साथ भेदभाव होता है, इसलिए उनके लिए कुछ चीजें आरक्षित कर दी जाती हैं या विशेष प्रायोजन किये जाते हैं, जिसे लोग तुष्टिकरण या आरक्षण कहते हैं. अब क्या इस आरक्षण पर संकट आने की संभावना दिखती है, आनेवाले दिनों में यह एक बड़ा प्रश्न होगा.
हिंदुत्व की विचारधारा के साथ दिक्कत यह है कि वह खंडित अस्मिताओं के लिए विशेष प्रायोजनों का निषेध करता है और कहता है कि सभी हिंदू बराबर हैं. यद्यपि हिंदू समाज की आंतरिक संरचना देखी जाये, तो वह उद्वधर श्रेणी पर आश्रित है. कुछ लोगों के लिए सांस्कृतिक पूंजियों का संचयन है और कुछ लोग अभावग्रस्त हैं. अगर अभावग्रस्त वर्गों को विशेष प्रायोजन नहीं देंगे, उनके लिए लाभकारी योजनाएं नहीं बनायेंगे, तो वे पीछे छूटेंगे ही. तो विकास की धारा के अंदर ऐसी कौन सी नयी योजना होगी, जिसमें पिछड़ों, अतिपिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को योगी सरकार प्रतिनिधित्व देने का काम करेगी, इसी महत्वपूर्ण बिंदु पर उत्तर प्रदेश को आगामी सालों में देखा जायेगा. एक तरफ चालीस प्रतिशत में दलित और मुसलमान हैं, तो दूसरी तरफ चालीस प्रतिशत अतिपिछड़े लोग हैं. यानी उत्तर प्रदेश की कुल अस्सी प्रतिशत आबादी को प्रतिनिधित्व देने का सवाल है, जिसको नजरअंदाज करके विकास की बात करना एक बेमानी बात होगी.
मसलन, अगर पशुओं के स्लॉटर हाउस को बंद किया जा रहा है, तो उससे बेरोजगार हुए लोगों के व्यवसाय के लिए पहले वैकल्पिक व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए थी. अगर सरकार लोगों को वैकल्पिक व्यवस्था नहीं देगी, तो यह सीधे-सीधे लोगों के व्यवसायों पर और उनके रोजमर्रा के जीवन पर कुठाराघात होगा.

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