अब ब्रिटेन को निभानी होगी जिम्मेवारी
स्कॉटलैंड में हुए जनमत संग्रह में वहां के निवासियों ने ब्रिटेन से आजादी के विचार को अस्वीकार करते हुए ब्रिटेन के साथ जाने का फैसला किया. यह फैसला स्कॉटलैंड के लोगों ने अपने हितों को ध्यान में रख कर किया है. इस फैसले का दोनों के लिए काफी महत्व है. लेकिन विश्व के अन्य देश […]
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स्कॉटलैंड में हुए जनमत संग्रह में वहां के निवासियों ने ब्रिटेन से आजादी के विचार को अस्वीकार करते हुए ब्रिटेन के साथ जाने का फैसला किया. यह फैसला स्कॉटलैंड के लोगों ने अपने हितों को ध्यान में रख कर किया है. इस फैसले का दोनों के लिए काफी महत्व है.
लेकिन विश्व के अन्य देश जहां अलगाव की मांग उठ रही है, या उठती रही है, ब्रिटेन के इस फैसले से उन पर कोई असर पड़ेगा, या वे लोग स्कॉटलैंड के निवासियों की राय से प्रभावित होंगे, ऐसा मुङो नहीं लगता. अगर स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के परस्पर रिश्तों के मद्देनजर इस जनमत संग्रह को देखें तो स्कॉटलैंड ब्रिटेन के साथ काफी वर्षो से है.
दोनों की अर्थव्यवस्था, इतिहास, भूगोल सब जुड़े हुए हैं. स्कॉटलैंड को अलग देश बनाने की मांग काफी पुरानी है. इसी मांग के मद्देनजर अलग-अलग प्रांतों में अपनी अलग असेंबली थी.
जब इस विषय पर गंभीरता से विचार शुरू हुआ कि क्या स्कॉटलैंड को एक आजाद मुल्क होना चाहिए? और जनमत संग्रह के लिए इस प्रश्न को चुना गया, लेकिन पिछले कई महीनों से इसी एक सवाल पर स्कॉटलैंड के लोगों के बीच एक जोरदार बहस चली है. लोगों ने परिचर्चाओं में हिस्सा लिया, अपनी राय रखी. इस परिचर्चा में स्कॉटलैंड के लोग ही नहीं शामिल रहे, बल्कि पूरा यूनाइटेड किंगडम इस सवाल पर बहस में भाग लेता नजर आया.
इस बहस के बीच आम लोगों की यह धारणा बनी कि अगर स्कॉटलैंड उनसे अलग हो जाता है, तो वहां की आर्थिक स्थिति पर क्या असर होगा. लोगों की यह भी सोच रही होगी कि ग्रेट ब्रिटेन के साथ रहते उन्हें कोई खास परेशानी नहीं है, तो फिर अलग होने से क्या लाभ? या फिर अलग होते हैं तो वह कैसे दूर तक जा पायेंगे. कहीं पिछड़ तो नहीं जायेंगे, वगैरह. स्कॉटलैंड के अलग होने की मांग अपनी पहचान को बनाये रखने के इर्द-गिर्द बुनी गयी थी. लेकिन इस जनमत संग्रह में लोगों को यह लगा कि उनकी पहचान ब्रिटेन के साथ रहने में है. ऐसे में लोगों ने संघात्मक ढांचे, अपने भविष्य और इसके प्रति ब्रिटेन की जवाबदेही को ध्यान में रखते हुए इस तरह का फैसला लिया है. अब आगे ब्रिटेन को भी अपनी जवाबदेही निभाते हुए, वहां की जनता की पहचान को बरकरार रखते हुए विकास में भागीदारी देनी होगी, तभी जनमत संग्रह के दूरगामी मायने को संजो कर रखा जा सकता है.
राधा कुमार
महानिदेशक, दिल्ली पॉलिसी ग्रुप और पूर्व इनटेरोलोक्यूटर फॉर जम्मू-कश्मीर