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एफएटीएफ की चेतावनी : चार महीने में आतंकवाद पर नकेल कसे पाकिस्तान

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फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ ने एक बार फिर पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए जून तक की मोहलत दी है. अगर इसके बाद भी वह आतंकियों को पालने और पनाह देने का काम नहीं छोड़ता है, तो उसे काली सूची में डाल दिया जायेगा. हालांकि, अक्तूबर, 2019 की चेतावनी के बाद पाकिस्तान ने अपने […]

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फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ ने एक बार फिर पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए जून तक की मोहलत दी है. अगर इसके बाद भी वह आतंकियों को पालने और पनाह देने का काम नहीं छोड़ता है, तो उसे काली सूची में डाल दिया जायेगा.
हालांकि, अक्तूबर, 2019 की चेतावनी के बाद पाकिस्तान ने अपने कानूनों में बदलाव और खूंखार आतंकियों को जेल में डालने जैसे कदम उठाये, लेकिन उसकी नैसर्गिक आदतों में कैसे और कितना बदलाव होगा, यह तो आनेवाले वक्त के साथ तय होगा. आर्थिक चुनौतियों और जनता के आक्रोश का सामना कर रहे पाकिस्तान की ग्रे लिस्ट से बाहर आने की छटपटाहट बढ़ रही है. एफएटीएफ की मौजूदा बैठक के फैसले, जारी की गयी चेतावनी, एफएटीएफ की कार्यप्रणाली और विशेषज्ञ की टिप्पणी के साथ प्रस्तुत है आज का इन-दिनों पेज…
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की 16 से 21 फरवरी तक पेरिस में चली सामूहिक बैठक और प्लेनरी के समापन के बाद यह निर्णय लिया गया कि पाकिस्तान को जून 2020 तक ग्रे सूची में रहना होगा. बैठक में आतंकी वित्तपोषण में शामिल संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को चार महीने की एक और मोहलत दी गयी है. बीते वर्ष अक्तूबर में आतंकी समूहों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और अन्य आतंकी संगठनों को धन मुहैया कराने पर अंकुश लगाने में विफल रहने के लिए पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखने का फैसला लिया गया है. सूत्रों के मुताबिक, इस सम्मेलन के दौरान पाकिस्तान को चेतावनी दी गयी कि वह जून तक टास्क फोर्स द्वारा दी गयी 27 सूत्रीय कार्ययोजना को पूरा करे. यदि पाकिस्तान टास्क फोर्स के निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है, तो उत्तर कोरिया और ईरान के साथ उसके काली सूची में डाले जाने की पूरी संभावना है.
तकनीकी आधार पर गलत साबित हुआ पाक
पाकिस्तान की सरकार ने अपने लोगों से वादा किया था कि इस फरवरी वह ग्रे सूची से बाहर आ जायेगा. लेकिन इस सूची से बाहर आने के लिए उसे 12 देशों का समर्थन चाहिए था. पाकिस्तान ने इसके लिए अपने पक्ष में जनमत भी तैयार किया था और कई देश इसके पक्ष में बोलने को तैयार भी हो गये थे. लेकिन पैसों के लेन-देन के साक्ष्य के साथ तकनीकी आधार पर पाकिस्तान का दावा गलत साबित हुआ और वह क्षमा का अधिकारी नहीं माना गया. प्लेनरी ने इस बात पर भी गौर किया कि लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकी समूहों को धन उपलब्ध कराने पर रोक लगाने संबंधी, जो 27 सूत्री कार्य योजना दी गयी थी, उनमें से केवल कुछ ही बिंदुओं पर उसने काम किया है.
जून तक कार्रवाई करनी होगी
एफएटीएफ की चिंता यह है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को धन मुहैया करानेवाले व्यक्तियों और संगठनों पर मुकदमा चलाने और उन्हें दंडित करने में विफल रहा है.
टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को चेताया है कि अगर वह जून तक आतंकियों को धन मुहैया कराने के खिलाफ भरोसेमंद कार्रवाई नहीं करता है, तो वह अपने सदस्यों और सभी क्षेत्र के अधिकारियों से आग्रह करेगा कि वे अपने वित्तीय संस्थानों को पाकिस्तान के साथ व्यावसायिक संबंधों और लेन-देन पर विशेष ध्यान देने को कहें. पड़ोसी देश के लिए राहत की बात यह है कि चीन, मलयेशिया और तुर्की ने उसके पक्ष में तर्क रखकर उसे काली सूची में जाने से बचा लिया, लेकिन इस प्लेनरी में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया, उससे निस्संदेह पड़ोसी को चिंतित होना चाहिए. अक्तूबर 2019 में ईरान को लेकर ठीक इसी तरह की भाषा का प्रयोग किया गया था. वर्तमान में ईरान काली सूची में है.
छवि सुधारने की कर रहा कोशिश
एफएटीएफ की इस साल जून तक की शर्तों को पूरा करने के लिए पाकिस्तान पहले से ही कम से कम अपने दर्जन भर से अधिक कानूनों में संशोधनों को अंतिम रूप दे रहा है, भले ही वह दिखावे के लिए ही क्यों न हो. इतना ही नहीं, इसी 12 फरवरी को आतंकी वित्तपोषण के दो मामलों में उसने मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और जमात-उद-दावा प्रमुख हाफिज सईद को 11 साल की सजा सुनायी है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी हाफिज सईद, जिस पर अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर का इनाम रखा है, उसे बीते वर्ष जुलाई में आतंकी वित्तपोषण मामलों में गिरफ्तार किया गया था और वह कोट लखपत जेल में बंद है. इस आधार पर अक्तूबर, 2020 के एफएटीएफ प्लेनरी में पाकिस्तान के प्रदर्शन को आंका जायेगा.
इन बिंदुओं पर उठाने होंगे ठोस कदम
आतंकियों के वित्तपोषण से संबंधित काले धन के खिलाफ सुधारात्मक कदम उठाना और उस पर प्रतिबंध लगाना. पाकिस्तान को यह साबित करना होगा कि उसके अधिकारी अवैध धन हस्तानांतरण सेवा (एमवीटीएस) की पहचान करने व प्रवर्तन कार्रवाई में सहयोग कर रहे हैं और उसके खिलाफ कदम उठा रहे हैं.
बंदरगाहों के सभी प्रवेश द्वारों पर सीमा पार की मुद्रा और बीयरर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (बीएनआइ) नियंत्रणों और प्रभावी प्रतिबंधों को लागू करना होगा.
यह दिखना चाहिए कि कानून प्रवर्तन एजेंसियां (एलइए), आतंकी वित्तपोषण गतिविधियों के व्यापक क्षेत्र की पहचान व जांच कर रही हैं.
साथ ही इससे संबंधित व्यक्तियों व संस्थाओं और इनके निर्देशों पर काम करनेवाली संस्थाओं और व्यक्तियों पर कार्रवाई कर रही हैं.
आतंकी वित्तपोषण के खिलाफ मुकदमे का प्रभाव भी दिखना चाहिए.
सभी 1267 और 1373 नामित आतंकवादियों और इनके इशारों पर काम करनेवाले लोगों के खिलाफ वित्तीय प्रतिबंध की कार्रवाई करना. इस कार्रवाई के तहत इन आतंकियों द्वारा पैसों की उगाही और इसके एक से दूसरे जगह भेजे जाने पर रोक, उनकी चल व अचल संपति की पहचान कर उसे फ्रीज करना और पैसों व वित्तीय सेवाओं तक उनकी पहुंच पर रोक लगाना शामिल है. चिह्नित आतंकियों को उनके द्वारा नियंत्रित सेवाओं और सुविधाओं के इस्तेमाल से वंचित करना.
न छूटा दाग तो बढ़ेंगी मुश्किलें
ग्रे सूची में पाकिस्तान के बने रहने से इस देश के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और यूरोपीय संघ से वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो जायेगा. इस तरह पहले से वित्तीय परेशानी से जूझ रहे पाकिस्तान की स्थिति और विकट हो सकती है.
क्यों होता है कोई देश ग्रे या ब्लैक लिस्ट में शामिल
जब किसी देश को आतंकियों को धन मुहैया कराने और धनशोधन के सुरक्षित पनाहगार के रूप में देखा जाता है, तब एफएटीएफ उसे ग्रे सूची में डाल देती है. इस सूची में डालने का अर्थ, संबंधित देश को यह चेतावनी देना है कि वह इस मामले से निबटने की कार्रवाई करे. हालांकि, यह काली सूची में डाले जाने से कम गंभीर होता है. इसके बाद भी अगर वह देश आतंकियों को धन मुहैया कराने या धनशोधन जैसे मामलों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं करता है तो उसे काली सूची में डाल दिया जाता है. अभी तक सिर्फ ईरान और उत्तर कोरिया को ही ब्लैक लिस्ट में डाला गया है.
ग्रे सूची से निकलने की छटपटाहट
अपनी खराब वित्तीय स्थिति को देखते हुए पाकिस्तान ग्रे सूची से निकलने के लिए काफी बेचैन है. यही कारण है कि उसने हाल ही में एफएटीएफ को सूचित किया है कि जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर और उनका परिवार लापता है.
पाकिस्तान ने दावा किया है कि उसके यहां केवल 16 संयुक्त राष्ट्र से घोषित आतंकवादी थे, जिनमें सात मारे जा चुके हैं. जो नौ जीवित हैं, उनमें से सात ने वित्तीय व यात्रा प्रतिबंधों से छूट के लिए यूएन में आवेदन किया था.
पिछले महीने बीजिंग में एफएटीएफ की बैठक में पाकिस्तान को मलेशिया और तुर्की के अलावा एफएटीएफ के मौजूदा अध्यक्ष चीन का समर्थन हासिल हुआ. बीजिंग की बैठक में पाकिस्तान ने एफएटीएफ के निर्देशों का पालन करने के लिए की गयी अपनी कार्रवाई की एक सूची भी प्रदान की थी.
पाकिस्तान ने इसी आठ जनवरी को एफएटीएफ को 650 पृष्ठों की समीक्षा रिपोर्ट सौंपी थी. एफएटीएफ द्वारा धनशोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) पर नयी पाकिस्तानी नीतियों के संबंध में उठाये गये 150 सवालों के जवाब में यह रिपोर्ट पेश की गयी थी. इस रिपोर्ट में एफएटीएफ की सिफारिशों को लागू करने के लिए अक्तूबर 2019 और जनवरी 2020 के बीच पाकिस्तान द्वारा उठाये गये कदमों की रूपरेखा थी.
बीते महीने, बीजिंग में हुए अंतरराष्ट्रीय आतंकी वित्तपोषण निगरानी की एक महत्वपूर्ण बैठक से पहले पड़ाेसी देश ने अमेरिका से एफएटीएफ की ग्रे सूची से बाहर निकलने के लिए अपनी बोली के समर्थन करने का आग्रह भी किया था, जिसमें आतंक के वित्तपोषण और काले धन के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई के पाकिस्तानी प्रयासों की जांच की गयी थी.
एफएटीएफ क्या है
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ)) पेरिस स्थित एक अंतर-सरकारी निकाय है. जी-7 देशों की पहल पर धनशोधन से निपटने के लिए 1989 में इसकी स्थापना की गयी थी. शुरुआत में इस संगठन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विधायी, वित्तीय और कानून-प्रवर्तन गतिविधियों की निगरानी का दायित्व सौंपा गया था.
वर्ष 2001 में 11 सितंबर को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए आतंकी हमले के बाद इसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो गयी. और इसने अपने दायरे को बढ़ा कर इसमें आतंकी वित्तपोषण को भी शामिल कर लिया. वर्ष 2003 में, एफएटीएफ नये दिशा-निर्देशों को लेकर आया, जिसमें राज्यों से अवैध लेनदेन को जब्त करने और संदिग्ध लेनदेन रिपोर्ट प्राप्त करने और उसकी जांच के लिए एक वित्तीय खुफिया इकाई बनाने की बात कही गयी थी.
कैसे काम करता है एफएटीएफ
इस संगठन का उद्देश्य मानकों को निर्धारित करने के साथ ही धनशोधन, आतंकी वित्तपोषण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली से जुड़े अन्य खतरों से निबटना है. इसके लिए कानूनी, विनियामक और परिचालन उपायों के प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देना इस संगठन के कार्यप्रणाली में शामिल है.
एफएटीएफ आवश्यक उपायों को लागू करने, धनशोधन व आतंकवादी वित्तपोषण तकनीकों और उससे निबटने के लिए उठाये गये कदमों की समीक्षा करता है. इसके तहत यह अपने सदस्यों के प्रगति की निगरानी करता है और विश्व स्तर पर उपयुक्त उपायों को अपनाने और लागू करने को बढ़ावा देता है. वर्ष 1991 और 1992 के दौरान एफएटीएफ ने अपने सदस्यों की संख्या मूल के 16 से बढ़ा कर 28 कर दी. वर्ष 2000 में इसके सदस्यों की संख्या बढ़ कर 31 हो गयी, और अब यह बढ़ कर 39 पर पहुंच गयी है. इस संगठन का निर्णय लेने वाला निकाय, यानी एफएटीएफ प्लेनरी, प्रतिवर्ष तीन बार बैठक करता है. इस संगठन के अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रसार के लिए नौ क्षेत्रीय निकाय स्थापित किये गये हैं, जिनका प्रमुख कार्य संबंधित क्षेत्र में धनशोधन और आतंकी वित्तपोषण से निबटने के लिए तंत्र विकसित करना है. ये क्षेत्रीय निकाय हैं,
1. यूरेशियन ग्रुप (इएजी), 2. एशिया/ पैसिफिक ग्रुप ऑन मनी लॉन्ड्रिंग (एपीजी), 3. कैरेबियन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (सीएफएटीएफ), 4. कमिटी आॅफ एक्सपर्ट्स ऑन द इवैल्यूएशन ऑफ एंटी मनी लॉन्ड्रिंग मेजर्स एंड द फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज्म ऑप द कौंसिल ऑप यूरोप (एमओएनइवायवीएएल), 5. द इस्टर्न एंड साउथ अफ्रीकन एंटी मनी लॉन्ड्रिंग ग्रुप (इएसएएएमएलजी), 6. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ऑन लैटिन अमेरिका (जीएएफआइएलएटी), 7. इंटर-गवर्नमेंटल एक्शन ग्रुप अगेंस्ट मनी लॉन्ड्रिंग इन वेस्ट अफ्रीका (जीआइएबीए), 8. मिडिल इस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका फाइनेंशियल टास्क फोर्स (एमईएनएएफएटीएफ), 9. द टास्क फोर्स ऑन मनी लॉन्ड्रिंग इन सेंट्रल अफ्रीका (जीएबीएसी).

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