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देवी के सुप्रसिद्ध मंदिर, जहां होती है सभी मनोकामनाएं पूरी

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मां दुर्गा सृजन, संरक्षण और कल्याण की देवी हैं. देवी दुर्गा को देश-विदेश में उनके विभिन्न रूपों में पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से देवी की अराधना करनेवालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासतौर से नवरात्र के पर्व में भारत के अलग-अलग कोनों में फैले हुए मां के प्रसिद्ध मंदिरों […]

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मां दुर्गा सृजन, संरक्षण और कल्याण की देवी हैं. देवी दुर्गा को देश-विदेश में उनके विभिन्न रूपों में पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से देवी की अराधना करनेवालों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासतौर से नवरात्र के पर्व में भारत के अलग-अलग कोनों में फैले हुए मां के प्रसिद्ध मंदिरों में भारी संख्या में भक्ताें का जमावाड़ा देखने को मिलता है. आइए, जानते हैं मां दुर्गा के पांच प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में, जिन्हें या तो शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है या कुछ किंवदंती के चलते ये भक्तों के बीच लोकप्रिय हैं…

वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू
वैष्णो देवी भारत का सबसे लोकप्रिय दुर्गा मंदिर है. यह त्रिकुटा पर्वत के बीच, जम्मू से 61 किलोमीटर उत्तर की ओर, समुद्र तल से 1584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. हिंदू मान्यता के अनुसार कन्या रूपी मां दुर्गा ने यहां भैरवनाथ का वध किया था.
वैष्णों मंदिर में मां काली, सरस्वती और लक्ष्मी पिंडी के रूप में विराजती हैं. वैष्णो देवी की यात्रा कटरा से शुरू होती है. कटरा से एक किलोमीटर की दूरी पर बांणगंगा है़ यहां से 6 किमी दूर अर्धकुंवारी की गुफा है माना जाता है कि इस गुफा में देवी ने नौ महीने तक ध्यान किया था.
चामुंडा देवी मंदिर, हिमाचल
बानेर नदी के तट पर स्थित, चामुंडा देवी मंदिर भारत में दुर्गा के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. पालमपुर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में देवी के क्रोध की मुद्रा यानी काली के रूप में दर्शन करने को मिलते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां देवी ने काली रूप धारण कर शुंभ, निशुंभ का विनाश किया था.
चामुण्डा देवी मंदिर के अंदर एक सुंदर तालाब है, जिसके जल को काफी पवित्र माना जाता है. इस मंदिर का मुख्य आकर्षण यह है कि यहां देवी एक लाल कपड़े से ढंकी हुई हैं. देवी के दोनों ओर हनुमान और भैरव की मूर्तियां हैं. यहां भगवान शिव को मृत्यु और विनाश के रूप में देखा जा सकता है.
कामाख्या मंदिर, असम
असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है. इस मंदिर में भक्तों को किसी मूर्ति के दर्शन नहीं होते, बल्कि मंदिर में एक कुंड बना है, जो हमेशा फूलों से ढ़का रहता है.
पुराणों के अनुसार इस शक्तिपीठ का नाम कामाख्या इसलिए पड़ा क्योंकि जब विष्णु भगवान ने माता सती के 51 भाग किये थे, तो इस जगह माता की योनी गिरी थी. मंदिर में हर साल अम्बुबाची मेले का आयोजन किया जाता है. मेले के दौरान मंदिर के पास स्थित ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है.
दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता
दक्षिणेश्वर काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर में देवी काली को समर्पित मंदिर है. यह हुगली नदी तट पर बेलूर मठ के दूसरी तरफ स्थित है.
अनुश्रुतियों के अनुसार इस मंदिर समूह में भगवान शिव के कई मंदिर थे, जिसमें से अब केवल 12 मंदिर बचे हुए हैं. बेलूर मठ एवं दक्षिणेश्वर मंदिर बंगालियों के अध्यात्म का प्रमुख केंद्र है. देश के कोने-कोने से लोग यहां आते हैं और लंबी-लंबी कतारों में घंटो खड़े होकर देवी काली के दर्शन का इंतजार करते हैं.
नैना देवी मंदिर, उत्तराखंड
नैनीताल में नैनी झील के किनारे बसा है देवी मां का यह अनुपम मंदिर. कहा जाता है कि इसी झील में देवी सती के नेत्र गिरे थे. इसके चलते ही यहां पर नैना देवी मंदिर का निर्माण हुआ. यह एक शक्तिपीठ है. इस मंदिर में दो नेत्र हैं, जो मां नैना देवी को दर्शाते हैं. यहां सालभर भक्त आते हैं, लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां पर देवी के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतार लगती है. मंदिर के दाहिनी ओर हनुमान और गणेश की मूर्तियां हैं और मंदिर के मुख्य द्वार में बाहर शेरों की दो मूर्तियां हैं.
इनकी भी महत्ता
उपरोक्त मंदिरों के अतिरिक्त उत्तराखंड का मनसा देवी, गुजरात का अम्बा माता मंदिर, हिमांचल प्रदेश का मां ज्वाला मंदिर, राजस्थान का करणी माता मंदिर, कर्नाटक का चामुंडेश्वरी, श्रीदुर्गा परमेश्वरी और बनशंकरी मंदिर, उत्तर प्रदेश का देवी पाटन मंदिर व वाराणसी स्थित दुर्गा मंदिर, आंध्र प्रदेश का कनक दुर्गा मंदिर देवी दर्शन के लिए भक्तों में विशेष महत्व रखते हैं.

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