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निवेश में स्थिरता व वृद्धि का विकल्प डेब्ट फंड

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नीरज कुमार सिन्हा, निवेश सलाहकार डेब्ट फंड क्या है इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पब्लिक लिस्टेड कंपनियों में निवेश करते हैं, वहीं डेब्ट फंड्स सरकारी और कंपनियों की फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. इनमें कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और अन्य कई प्रकार की डेब्ट सिक्योरिटीज शामिल हैं. किसी कंपनी की इक्विटी […]

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नीरज कुमार सिन्हा, निवेश सलाहकार
डेब्ट फंड क्या है
इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पब्लिक लिस्टेड कंपनियों में निवेश करते हैं, वहीं डेब्ट फंड्स सरकारी और कंपनियों की फिक्स्ड-इनकम सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. इनमें कॉर्पोरेट बॉन्ड, सरकारी सिक्योरिटीज, ट्रेजरी बिल, मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और अन्य कई प्रकार की डेब्ट सिक्योरिटीज शामिल हैं.
किसी कंपनी की इक्विटी में निवेश करना, उस कंपनी की हिस्सेदारी को खरीदना होता है, वहीं जब आप डेब्ट फंड में निवेश करते हैं तो, आप फंड जारी करने वाली संस्था को लोन देते हैं. सरकार और प्राइवेट कंपनियां लोन पाने के लिए बिल और बॉन्ड जारी करती हैं.
डेब्ट फंड में निवेश की गयी राशि की परिपक्वता अवधि और मिलनेवाला ब्याज पूर्व निर्धारित होता है. इसलिए इन्हें ‘फिक्स्ड इनकम’ सिक्योरिटी कहा जाता है, क्योंकि इसमें आपको पता होता है कि आपको क्या मिलने वाला है. इक्विटी फंड की तरह ही डेब्ट फंड में भी अलग-अलग सिक्योरिटीज में निवेश करके अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है. परंपरागत या छोटे निवेशकों के लिए यह एक सुरक्षित निवेश विकल्प के रूप में जाना जाता है.
डेब्ट फंड का निवेश
डेब्ट फंड्स अलग-अलग क्रेडिट रेटिंग्स की विभिन्न सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. सिक्योरिटीज जारी करने वाली संस्था का अधिक क्रेडिट रेटिंग का होना यह बताता है कि मैच्योरिटी पर ब्याज और मूल राशि का भुगतान किये जाने की बेहतर संभावना है.
इसलिए जो डेब्ट फंड्स अधिक क्रेडिट रेटिंग वाले सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं, वे दूसरे सिक्योरिटीज की तुलना में कम अस्थिर होते हैं. इसके अलावा दूसरा पहलू परिपक्वता की अवधि है, जो जितना कम होगा, नुकसान की संभावना भी उतनी ही कम होगी.
डेब्ट म्यूचुअल फंड के प्रकार
डेब्ट म्यूचुअल फंड भी अलग-अलग तरह के होते हैं. विभिन्न डेब्ट फंड के बीच जो चीज सबसे बड़ा अंतर पैदा करती है वह है परिपक्वता की अवधि.
डायनामिक बॉन्ड फंड्स
नाम से ही स्पष्ट है कि यह एक ‘डायनामिक’ फंड, यानी कि यह फंड बदलते ब्याज दर के अनुसार अपना पोर्टफोलियो बदलते रहते हैं. इसकी परिपक्वता की अवधि बदलती रहती है क्योंकि यह ब्याज दर के अनुसार निवेश को कम या ज्यादा समय के लिए लगाते रहते हैं.
इनकम फंड
इनकम फंड भी ब्याज दर के अनुसार विभिन्न डेब्ट सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. सामान्यतया इनकी मैच्योरिटी अवधि लंबे समय की होती है. इस कारण से यह डायनामिक फंड्स की तुलना में ज्यादा स्थिर होते हैं. इनकी औसत मैच्योरिटी अवधि लगभग 5-6 साल की होती है.
शॉर्ट- टर्म व अल्ट्रा शॉर्ट- टर्म फंड
यह कम समयावधि के डेब्ट फंड्स हैं जिनकी परिपक्वता अवधि लगभग तीन साल का होता है. शॉर्ट- टर्म डेब्ट फंड्स सामान्य निवेशक के लिए बेहतर होते हैं क्योंकि बदलते ब्याज दरों से यह ज्यादा प्रभावित नहीं होते हैं. इनमें तीन से छह महीने तक के लिए निवेश की जा सकती है.
लिक्विड फंड्स
यह फंड बचत बैंक खाते का अच्छा विकल्प होता है. इनमें मैच्योरिटी अवधि 91 दिनों से ज्यादा नहीं होती है. इसलिए इनमें जोखिम बहुत कम होता है. कई म्यूचुअल फंड कंपनियां स्पेशल डेब्ट कार्ड्स के माध्यम से लिक्विड फंड निवेश को तुरंत निकालने की सुविधा भी प्रदान करती हैं. इसमें एक दिन से लेकर तीन महीने तक के लिए निवेश किया जा सकता है.
गिल्ट फंड्स
यह केवल अधिक रेटिंग वाली सरकारी सिक्योरिटीज में ही निवेश करते हैं. इनमें क्रेडिट रिस्क न्यूनतम होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार कॉरपोरेट डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स के रूप में लिये गये लोन में डिफॉल्ट हो जाती है. इसलिए निश्चित आय वाले निवेशक जो इस तरह का रिस्क नहीं लेना चाहते, उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है.
डेब्ट फंड में निवेश क्यों करें
एक सामान्य और परंपरावादी निवेशक के लिए यह एक बेहतर विकल्प है. डेब्ट फंड्स फिक्स्ड डिपॉजिट की रेंज में ही ब्याज देते हैं, लेकिन उसकी तुलना में टैक्स में अधिक छूट प्रदान करते हैं. फिक्स्ड डिपॉजिट से जो आय होती है, वह आपकी आय में जुड़ जाती है और आपको उस स्लैब के अनुसार टैक्स देना पड़ता है.
डेब्ट फंड्स के शॉर्ट-टर्म लाभ भी टैक्स योग्य आय में जुड़ते हैं, लेकिन जब समयावधि तीन वर्ष से ज्यादा होती है, तो टैक्स में ज्यादा फायदा मिलता है. लंबे समय के लाभ पर इंडेक्सेशन के बाद 20% टैक्स लगाया जाता है. डेब्ट फंड्स फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में ज्यादा तरल हैं. फिक्स्ड डिपॉज़िट में जहां पूंजी लॉक हो जाती है, वहीं डेब्ट फंड्स में उसे कभी भी निकाली जा सकती है. कुल राशि में से कुछ राशि निकालना भी डेब्ट फंड्स में संभव है.
फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी)
फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान (एफएमपी) क्लोज इंड डेब्ट फंड होते हैं. यह एक फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह हैं, जो टैक्स में शानदार छूट प्रदान करते हैं. ये भी कॉर्पोरेट बॉन्ड और सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं, लेकिन इनमें पूंजी को रोकने का एक समय होता है. हर एफएमपी में एक निश्चित अवधि तक आपकी पूंजी लॉक रहती है. यह समय कुछ महीनों या सालों का हो सकता है. शुरुआती ऑफर पीरियड में एफएमपी में निवेश किया जा सकता है.
ब्याज दर का प्रभाव
फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटीज की कीमत ब्याज दर से विपरीत होती है. जब ब्याज दर बढ़ती है, तो बॉन्ड की कीमत कम हो जाती है और कम होने पर कीमत ज़्यादा. यही कारण है कि जब ब्याज दर गिरती है, तो डेब्ट फंड्स अच्छा मुनाफा कमाते हैं क्योंकि इनकी कीमतें बढ़ जाती हैं. ब्याज दर जिसके बारे में हम अक्सर खबरों में सुनते हैं, यह रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट होती है, जो कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा तय किया जाता है, उससे प्रभावित होती है.

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