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बच्चों के लिए बेहद कारगर उपचार है की-होल सर्जरी, जानें

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किसी भी सर्जरी का उद्देश्य मरीज को ठीक करना होता है, मगर आमतौर पर सर्जरी का नाम सुनते ही लोग परेशान हो जाते हैं. दरअसल, इसमें जो चीर-फाड़ की जाती है, उससे लोग डरते हैं. जब मामला बच्चों का आता है, तो स्थिति और खराब हो जाती है. लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे […]

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किसी भी सर्जरी का उद्देश्य मरीज को ठीक करना होता है, मगर आमतौर पर सर्जरी का नाम सुनते ही लोग परेशान हो जाते हैं. दरअसल, इसमें जो चीर-फाड़ की जाती है, उससे लोग डरते हैं. जब मामला बच्चों का आता है, तो स्थिति और खराब हो जाती है. लेकिन चिकित्सा के क्षेत्र में हो रहे नित-नये आविष्कारों ने सर्जरी को कम पीड़ादायक और आसान बना दिया है.

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की-होल सर्जरी ऐसी ही एक तकनीक है, जिसमें कुछ मिलीमीटर के छोटे-छोटे छेद करके सर्जरी की जाती है. पहले यह सर्जरी वयस्कों में ही की जाती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बच्चों में ही नहीं, नवजात में भी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार के रूप में इसका प्रचलन तेजी से बढ़ा है.

क्या है की-होल सर्जरी

की-होल सर्जरी, की-होल्स के द्वारा की जाती है. इसमें छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं, इन्हीं में से सर्जरी के लिए इस्तेमाल होनेवाले यंत्र डाले जाते हैं और जटिल से जटिल ऑपरेशन संभव हो पाते हैं. इसे मिनिमली इनवेसिव सर्जरी या लैप्रोस्कोपिक सर्जरी भी कहते हैं.

कुछ वर्षों पहले तक की-होल सर्जरी केवल व्यस्कों में ही की जाती थी, क्योंकि नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों की एब्डॉमिनल कैविटी (पेट की गुहा) छोटी होती है. सर्जरी के लिए विशेष रूप से निर्मित छोटे औजारों की अनुपलब्धता, विकसित इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और कुशल डॉक्टरों के अभाव के कारण बच्चों में की-होल सर्जरी संभव नहीं हो पाती थी. लेकिन अब बच्चों में भी विभिन्न सर्जरियों में इस तकनीक का इस्तेमाल लगातार बढ़ रहा है.

बच्चों में सामान्यता की जानेवाली की-होल सर्जरियां

नवजात और अधिक उम्र के बच्चों में की जानेवाली सर्जरियां व्यस्कों से अलग होती हैं. बच्चों में सामान्यत: जो की-होल सर्जरियां की जा सकती हैं, वे ऑपरेटिव पीरियड के पश्चात होती हैं.

अपेन्डिक्टाइटिस : यह सबसे सामान्य स्थिति है, जिसमें बच्चों में इमरजेंसी सर्जरी की जरूरत पड़ती है. की-होल सर्जरी ने बड़े और दर्द वाले चीरों के बिना सूजी हुई अपेन्डिक्स को सुरक्षित रूप से बाहर निकालना संभव बनाया है.

अनडिसेंडेड टेस्टीज : कईं मेल चाइल्ड (लड़कों) में टेस्टीज़ (वृषण), स्क्रोटम (वृषणकोश) के बजाय पेट में पाये जाते हैं. पहले इसे ओपन सर्जरी द्वारा ठीक किया जाता था, लेकिन अब इसके लिए भी की-होल सर्जरी का ही इस्तेमाल किया जा रहा है, जो बेहद सफल है.

एनोरेक्टल मैलफार्मेशन : कुछ बच्चे एनल ओपनिंग (मलद्वार) न होने की जन्मजात विकृति के साथ पैदा होते हैं. इसे भी की-होल सर्जरी द्वारा अब सफलतापूर्वक ठीक किया जाने लगा है.

एम्पिएमा : बहुत सारे बच्चों की छाती में पस होता है, जिसके लिए सर्जरी की जरूरत पड़ती है. की-होल सर्जरी ने इसे आसान और कम पीड़ादायक बना दिया है.

कोलेडोकल सिस्ट : कई बच्चे कोलेडोकल सिस्ट की जन्मजात विकृति के साथ पैदा होते हैं. इसमें बच्चों की बाइल डक्ट फूली हुई होती है, इसका उपचार केवल सर्जरी द्वारा ही संभव है. अब इसे ठीक करने के लिए भी की-होल सर्जरी का ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

दो-तीन माह तक के शिशुओं में इन स्वास्थ्य समस्याओं के उपचार में होने लगी है यह सर्जरी

पारंपरिक रूप से किडनी सर्जरी में बड़े-बड़े चीरे लगाये जाते हैं. अस्पताल में भी अधिक रुकना पड़ता है और रिकवरी में समय भी अधिक लगता है.

की-होल सर्जरी में पेट के निचले हिस्से की दीवार में छोटे-छोटे छेद किये जाते हैं. इनका आकार कुछ मिलीमीटर से बड़ा नहीं होता. इन छेदों से एब्डॉमिनल कैविटी (पेट की गुहा) में सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स और लैप्रोस्कोप डाला जाता है, जिसमें किडनी तक पहुंचने के लिए लाइट और कैमरा भी होता है.

बच्चों के शरीर का आकार बहुत छोटा होता है. ऐसे में सर्जरी करने के लिए उपयुक्त स्थान न मिल पाना सबसे बड़ी चुनौती रही है. इसे दूर करने के लिए कार्बन डायऑक्साइड गैस का इस्तेमाल कर अस्थायी रूप से पेट की गुहा को फुलाया जाता है, ताकि सर्जन पेट के अंदर के अंग देख सकें और सर्जरी कर सकें. सर्जरी पूरी होने के पश्चात गैस निकाल दी जाती है. बच्चों में ये सर्जरी ऑब्स्ट्रक्शन ऑफ किडनी (पीयूजे), नेफ्रोक्टोमी (सर्जरी के द्वारा किडनी निकालना) के लिए की जाती हैं.

पीयूजे बच्चों में होने वाली एक आम समस्या है. दो-तीन माह के छोटे-छोटे बच्चों में भी की-होल तकनीक ने सर्जरी को संभव बनाया है. इनके अलावा ओवेरियन सिस्ट, कोनजेनाइटल डायफ्रागमैटिक हर्निया और ट्रैकियोइसोफैगियल फिस्टुला के उपचार के लिए भी की-होल सर्जरी बहुत कारगर है.

पारंपरिक सर्जरी से है बेहतर

डॉ संदीप कुमार सिन्हा

एमबीबीएस (रांची), एमएस (दिल्ली), फैलो (बर्मिंघम चिल्ड्रन हॉस्पिटल, यूके), सीनियर कंसल्टेंट-पीडियाट्रिक सर्जरी, रेनबो चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल, नयी दिल्ली

पारंपरिक सर्जरी या ओपन सर्जरी में बड़ा चीरा लगाना पड़ता था, जिससे त्वचा और उत्तकों को बहुत नुकसान होता था और रिकवर होने में भी अधिक समय लगता था. जबकि की-होल सर्जरी में सामान्य उत्तकों और आसपास के अंगों को अधिक नुकसान नहीं पहुंचता. खून भी कम निकलता है और जटिलताएं होने की आशंका कम होती है.

इसमें जल्दी रिकवरी होती है और अस्पताल में अधिक नहीं रुकना पड़ता. की-होल सर्जरी में मरीज को शारीरिक और भावनात्मक ट्रॉमा कम होता है, इसलिए यह बच्चों के लिए बहुत बेहतर है. बच्चों को सारी जिंदगी चीरे और टांकों के निशान के साथ जीना पड़ता है. ये निशान उन्हें हमेशा याद दिलाते हैं कि उनके शरीर में कोई समस्या है. इसे की-होल सर्जरी द्वारा रोका जा सकता है, इसलिए इसे स्कारलेस सर्जरी भी कहते हैं.

इनपुट : शमीम खान

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