21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कालाधन पर हरिवंश के आलेख की यह कड़ी पढ़ें

Advertisement

हरिवंश राज्यसभा सदस्य काले धन के खिलाफ जंग राजधर्म है -दो हाल ही में ‘डिमोनेटाइजेशन, इन द डिटेल’ पुस्तक आयी, मशहूर पत्रकार एचके दुआ द्वारा संपादित. इसमें एक लेख है, अनिल बोकिल का. वह दशकों से नोटबंदी के समर्थक माने जाते हैं. उन्होंने आंकड़े दे कर बताया है कि अमेरिका, जहां प्रति व्यक्ति आमद 53000 […]

Audio Book

ऑडियो सुनें

हरिवंश
राज्यसभा सदस्य
काले धन के खिलाफ जंग राजधर्म है -दो
हाल ही में ‘डिमोनेटाइजेशन, इन द डिटेल’ पुस्तक आयी, मशहूर पत्रकार एचके दुआ द्वारा संपादित. इसमें एक लेख है, अनिल बोकिल का. वह दशकों से नोटबंदी के समर्थक माने जाते हैं. उन्होंने आंकड़े दे कर बताया है कि अमेरिका, जहां प्रति व्यक्ति आमद 53000 डाॅलर है, सबसे बड़ा नोट 100 डाॅलर का है. इसी तरह ब्रिटेन, जहां प्रति व्यक्ति आम 25000 पौंड है, सबसे बड़ा नोट 50 पौंड का है.
जापान, जहां प्रति व्यक्ति 50 लाख युवान है, वहां सबसे बड़ा नोट 100,000 युवान है. भारत में प्रतिव्यक्ति अौसत आय 90,000 रुपये है, तो यहां सबसे बड़ा नोट 1000 रुपये का है. 30 फीसदी भारत की आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, वहां 95 फीसदी बड़े नोट हैं. यह क्यों? क्या जो गरीब मुश्किल से अपना जीवन जी रहे हैं, वे 500-1000 रुपये के नोट रखते हैं?
पहले जितनी मुद्रा छपती थी, उतनी कीमत का सोना रखा जाता था. अब यह प्रावधान या व्यवस्था नहीं है. सरकार का खर्च लगातार बढ़ता रहे और मौजूदा या प्रचलित कर प्रणाली से आमद नहीं बढ़े, तो आसानी से सरकार बड़े नोट छाप कर काम कर सकती है. भारत में 500 रुपये व 1000 रुपये के प्रति नोट छापने की कीमत तकरीबन चार रुपये है. भारत से शहरों में प्रतिदिन 47 रुपये और ग्रामीण इलाकों में 32 रुपये खर्च करने की क्षमतावाले गरीबी रेखा के नीचे है. रोचक यह है कि अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा की सीमा प्रतिदिन 1.9 डाॅलर है. यानी 130 रुपये रोजाना. इस कसौटी पर भारत की 50 फीसदी से अधिक आबादी गरीबी रेखा के नीचे है.
अब इन गरीबों के लिए कुल करेंसी या नोट का 85 फीसदी हिस्सा क्यों 500 और 1000 रुपये के नोटों का होना चाहिए? डिमोनेटाइजेशन के बाद ‘कैश टू जीडीपी रेशियो’ 12 फीसदी से घट कर नौ फीसदी आ गया है.
आज हकीकत यह है कि देश के ताकतवर वर्ग और लगभग सभी राजनीतिक दलों (नीतीश कुमार को छोड़ कर) ने नोटबंदी का विरोध किया, पर उसके बाद हुए आम चुनावों ने भी प्रमाणित किया कि आम जनता नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी फैसले के पक्ष में है. इसका बड़ा आसान और सहज कारण है कि बड़े नोटों से 50 फीसदी गरीब भारतीयों का क्या लेना देना है. उन्हें तो खुशी हुई कि धनपति, धनकुबेर और समर्थ लोग पहली बार आजाद भारत में फंसे हैं.
किसी सरकार ने साहस किया है इनके खिलाफ कार्रवाई करने का! गरीबों को जलन राग या ईर्ष्या के तहत संपन्न तबके की यह परेशानी खुशी दे गयी.
आज भ्रष्टाचार और कालाधन के खिलाफ जंग राजधर्म है. यही जंग भारत की नियति तय करनेवाला है. भविष्य का भारत दुनिया की महाशक्ति बनेगा या पुन: कमजोर बना रहेगा, यह फैसला भी इसी जंग में होनेवाला है. पिछले वर्ष केंद्र और राज्य सरकारों ने मिल कर 47 ट्रिलियन रुपये यानी 12,900 करोड़ प्रति दिन यानी 500 करोड़ रुपये प्रति घंटा रोजगार सृजन पर खर्च किया.
इस साल केंद्र सरकार इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पर 12 ट्रिलियन रुपये खर्च करेगी, जिसमें बड़े पैमाने पर मजदूर काम करेंगे. रोजगार सृजन होगा. इसी तरह केंद्र और राज्य सरकार लगभग 12 ट्रिलियन रुपये यानी 3,200 करोड़ रुपये प्रतिदिन शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सेवाओं पर खर्च कर रहे हैं, पर कक्षा पांच के 10 में से महज चार छात्र कक्षा दो की पाठ्य पुस्तकें पढ़ पाते हैं.(स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स, 19 अक्तूबर 2017). इस तरह बड़ी पूंजी देश के विकास, शिक्षा, सामाजिक कल्याण में लग रही है, पर इन पर अंकुश न हो, तो बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की लहरों में समाहित होगा, तय है.
इसका परिणाम क्या हुआ है?
भ्रष्टाचार पर महज जुबानी कार्रवाई, जो इस मुल्क में अब तक होती रही, उससे कैसा देश बना है, आज?
दुनिया में पिछले पांच वर्षों से जिस अर्थशास्त्री की धूम है, वह हैं, फ्रांस के थामस पिकेटी. गरीबी पर इतना व्यापक और गहरा अध्ययन किसी अर्थशास्त्री ने नहीं किया है. वह पढ़े-लिखे हार्वर्ड में, पर फ्रांस लौट कर फ्रांसीसी भाषा में गरीबी पर यह क्लासिक और ऐतिहासिक अध्ययन किया. कई शताब्दियों की गरीबी का अध्ययन उन्होंने लूकास चासेल के साथ मिल कर किया.
‘कैपिटल’ (पूंजी) पुस्तक में. दुनिया एकमत है कि यह भावी नोबुल पुरस्कार पानेवाली अर्थशास्त्र की कृति है. यह अध्ययन दुनिया में इतना प्रभावी माना गया कि हार्वर्ड के जानेमाने तीन विद्वानों (अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ) ने मिल कर हाल में एक और नयी किताब लिखी (हार्वर्ड प्रेस से प्रकाशित) है, ‘आफ्टर पिकेटी’. इतने कम समय में कोई किताब इस तरह क्लासिक कृति मान ली जाये, हाल के वर्षों में शायद नहीं हुआ.
उसी थामस पिकेटी ने हाल में भारत के ऊपर एक खास अध्ययन किया है ‘इंडियन इनकम इनइक्वलिटी, 1922-2014) फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलिनेयर राज’.
भारत के संदर्भ में यह अध्ययन विस्फोटक है. दुर्भाग्य कि भारत के बारे में इतना प्रामाणिक अध्ययन विदेश में हुआ. आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा विषमतामूलक समाज बन गया है. सरकारी नीतियों के कारण. 1922 में भारतीय समाज में धनी बहुत धनी थे. गरीब अत्यंत असहाय. इसे दूर करने के लिए 1922 से आयकर लगा. पिकेटी के इस भारत अध्ययन ने पाया है कि पुन: 2014 का भारतीय समाज, 1922 की तरह विषमता का समाज बन गया है.
यानी अब तक की सरकारी नीतियां, आर्थिक या सामाजिक, ऐसी रही हैं कि वे धनाढ्यों-उद्योगपतियों के हक में जाती हैं. इस अध्ययन के अनुसार 1982-83 में राष्ट्रीय आय का छह फीसदी हिस्सा भारतीय समाज के एक फीसदी धनाढ्यों के पास पहुंचता था, पर अब 2013-2014 में भारतीय समाज के शीर्ष एक फीसदी धनाढ्यों के हाथ में राष्ट्रीय आय का 22 फीसदी हिस्सा पहुंचता है. इसमें से 9 फीसदी हिस्सा 0.1 फीसदी धनाढ्यों के पास जाता है. साफ है कि 80 और 90 के दशकों में अर्थ नीतियों ने धनाढ्यों को और धनी बनाने का काम किया. बीच के 40 फीसदी लोगों के पास राष्ट्रीय आमद का 46 फीसदी हिस्सा 1982-83 में पहुंचता था, जो घट कर 2013-14 में 30 फीसदी रह गया है.
यह अध्ययन यह भी बताता है कि नीचे की 50 फीसदी आबादी की स्थिति बद से बदतर हुई है. 1982-83 में कुल राष्ट्रीय आमद का 24 फीसदी हिस्सा इस आबादी के पास था, जो 2013-14 में घट कर 15 फीसदी रह गया है. यह अध्ययन यह भी बताता है कि चीन, फ्रांस, अमेरिका की तुलना में भारत का धनी वर्ग, बहुत तेजी से धनी बन रहा है.
यह अध्ययन 1922 से 2014 के बीच के भारत का है. स्पष्ट है, यह मूलत: कांग्रेस राज की उपलब्धि है. अगस्त-सितंबर 2017 में ही यह अध्ययन सामने आया है. नहीं मालूम, भाजपा के लोगों को अब तक इस अध्ययन की सूचना है या नहीं? कांग्रेस की अर्थनीतियों या समर्थ वर्ग धनाढ्य तबके की पक्षधर कांग्रेसी अर्थनीतियों पर इससे बड़ा प्रमाण, निष्कर्ष या विश्लेषण और क्या हो सकता है?
वह भी हमारे समय के दुनिया के सबसे प्रामाणिक विद्वानों द्वारा, पर न टेलीविजन चैनलों पर, न सोशल मीडिया में, न अखबारों में यह अतिमहत्वपूर्ण विषय, बहस का मुद्दा बना. एक पंक्ति में कहें, तो इसका निष्कर्ष है कि 1922 के बाद 2014 में भारतीय समाज विषमता के संदर्भ में दुनिया के सबसे विस्फोटक कगार पर खड़ा है.
पर, एक शासक की तरह शायद नरेंद्र मोदी ने यह भांप लिया कि यह बढ़ती आर्थिक विषमता, आज के भारत की सबसे बड़ी चुनौती है. इसलिए उन्होंने अपनी अर्थनीति में नीचे के 50 फीसदी को प्राथमिकता देने की रणनीति अपनायी. यही आज भारत के हित में है, समाज के हित में है और भारत के संपन्न तबकों के सुरक्षित और खुशहाल भविष्य की गारंटी है.
जनसंघ या भाजपा का परंपरागत समर्थक वोटर या सामाजिक आधार क्या कर रहा है? उद्योग-धंधा करनेवाले व्यवसायी-व्यापारी, उद्यमी प्लस अन्य. 2014 में देश के मंझोले या बड़े उद्योगपति नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में कसीदे पढ़ते थे, आज व्हाट्सएप से लेकर बातचीत में यह तबका और ये लोग बड़े हमलावर-आलोचक बन गये हैं.
गहराई में उतरें, तो इस नाराजगी के मूल में है कि पहली बार देश में ऐसा मुमकिन हुआ है कि आप ब्लैक मनी जेनरेट नहीं कर सकते. आजादी के 70 वर्षों के बाद, भ्रष्टाचार के अनेक ऐतिहासिक संघर्षों और केंद्र में निजाम-तख्त बदल देने के बावजूद देश में भ्रष्टाचार और ब्लैक मनी का साम्राज्य विशालकाय, मजबूत और अपराजेय बनता गया. इसके साथ ही पिछले तीन वर्षों में इतने ठोस सख्त व प्रभावी कानून बने हैं कि बाहर रखा कालाधन भी देश में लाना लगभग असंभव जैसा बन गया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ इस कारगर लड़ाई और साहस दिखाने का श्रेय भाजपा को भी नहीं, सिर्फ नरेंद्र मोदी को है. आज दिल्ली के पांच सितारा होटल, जो मूलत: लाॅबिंग और दलाली के अड्डे थे, उजाड़ जैसी स्थिति में हैं, पर यह लड़ाई राज्यों और ब्लॉकों तक अभी नहीं पहुंची है. इन जगहों पर भ्रष्टाचारी और भ्रष्टाचार दोनों मजबूत ही हो रहे हैं.
इस सरकार ने सत्ता संभालते ही ब्लैक मनी की जांच के लिए यूपीए के शासनकाल में सुप्रीम कोर्ट के दिये निर्देश का पालन किया. पहले स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआइटी) गठित की.
सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैक मनी जांच के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार को बहुत पहले यह निर्देश दिया था, पर उस सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. इस सरकार ने पहली ही कैबिनेट में यह फैसला किया. विदेशों में जमा भारतीय कालाधन के लिए अत्यंत कठोर कानून ‘ब्लैक मनी एक्ट’ बनाया. कई नये देश के साथ ‘टैक्स ट्रिटीज’ की. पुराने टैक्स समझौतों को बदला, भारत के अनुकूल बनाया. साथ ही ‘इसाल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड’ बनाया. बैंकों का धन लेकर भागना कांग्रेस राज में जितना आसान था, अब उतना ही कठिन है.
बैंकों के चेयरमैन, अन्य कारणों से पद पाते थे और बैंकों को लूटते थे. ऐसे अनेक प्रकरण विजय माल्या व अन्य मामलों में सामने आ चुके हैं. अब चेयरमैन, एक संस्थागत प्रक्रिया के तहत, योग्य व ईमानदार बैंकर ही बन पायेंगे. ऊपर से सत्ता को खुश करनेवाले नहीं टपकेंगे. 28 साल से जानबूझ कर अटका कर रखा गया बेनामी संपत्ति कानून लागू किया गया. तभी तो आज लालू प्रसाद, चिदंबरम के सुपुत्र, जगन रेड्डी, महाराष्ट्र के छगन भुजबल, हिमाचल के वीरभद्र सिंह या तमिलनाडु में शशिकला या ऐसे लोगों के परिवार के सदस्यों के खिलाफ साहसिक कार्रवाई हो रही है.
गीता में भी कहा गया है, ऊपर बैठे श्रेष्ठजनों का जनता अनुकरण करती है. महाभारत साफ संदेश देता है कि महाजनो येन गता: सा पंथा, यानी समाज के अगुआ लोगों का ही जनता अनुकरण करती है, पर यहां क्या हो रहा था? समाज के आधुनिक अगुआ या राजनेता, उनका परिवार, भ्रष्टाचार के पर्याय बन रहे थे. राजनीति विश्वसनीयता खो रही थी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें