Bikru Kand: गैंगस्टर Vikas Dubey के करीबी अमर दुबे की पत्नी Khushi Dubey को कैसे मिली जमानत
!!सुभाष गाताडे,सामाजिक कार्यकर्ता!!
अंधश्रद्धा के खिलाफ लड़ते हुए शहादत कूबूल किये डाॅ नरेंद्र दाभोलकर की बहुचर्चित किताब ‘अंधविश्वास उन्मूलन’/भाग 2, पेज 78, लड़कियों की भानमती/ में एक घटना का जिक्र है, जिसमें एक स्कूल की लड़कियों के आंखों में अचानक कंकड़ मिलने की शिकायत मिलने के बाद अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की तरफ से उन्होंने गांव का दौरा किया था और लंबी जांच पड़ताल के बाद अंततः इस मामले का रहस्योदघाटन किया था. पता चला था कि अपने अपने घरों में उपेक्षित लड़कियों ने मिल कर यह कदम उठाया था, वह खुद ही अपनी आंखों में कंकड़ डाल देती थी और शोरगुल करती थी, ताकि उन पर लोगों का, परिवारजनों का ध्यान जाये और उन्हें थोड़ा कम काम करने के लिए कहा जाये.
फिलवक्त उत्तर भारत के कई इलाकों से सुनी जा रही महिलाओं के बालों की चोटी काटे जाने की खबरों को पढ़ते हुए बरबस किताब का वह हिस्सा याद आ गया, जिनकी संख्या 100 से अधिक पहुंच चुकी है. याद रहे कि सबसे पहले राजस्थान के बीकानेर जिले के नोखा क्षेत्र और बेदू कला ऊनवड़ा में चोटी काटने की घटना सामने आयी थी. उसके बाद हरियाणा और अब उत्तर प्रदेश में भी उसी किस्म की वारदातों की खबरें आ रही हैं. समाचार के मुताबिक हरियाणा के फतेहाबाद से चोटी काटने का सिलसिला शुरू हुआ और धीरे-धीरे पलवल, मेवात, फरीदाबाद और गुरुग्राम तक जा पहुंचा. अकेले हरियाणा में 41 वारदातों की खबर है. डर का आलम यह है कि लोगों ने अपने घरों के सामने नींबू-मिर्चा लटकान, नीम के पत्ते लटकाना और अपने घर के सामने दीवार पर हाथ के पंजे के निशान बनाये हैं, ताकि कोई बाधा उन्हें प्रभावित न करे. विडंबना यही है कि मामला अब जनभ्रम की स्थिति से आगे बढ़ गया है, अब लोग हिंसा पर भी उतर आये हैं. आगरा में बासठ वर्षीय मानदेवी को जिस तरह ग्रामीणों ने चुड़ैल समझ कर पीट-पीट कर मार डाला या झारखंड में जिस तरह कुछ नौजवानों पर हमला हुआ, उससे मामले की गंभीरता पता चल रही है.
गौरतलब है कि जिन-जिन महिलाओं/लड़कियों ने चोटी काटे जाने की शिकायत की, उनमें से कइयों ने एक समान ही बातें कहीं है, वह नींद में थीं और कोई अचानक चोटी काट कर ले गया.
कौन है इन घटनाओं के पीछे? क्या यह अंधश्रद्धा का मामला है, जादूटोना का मामला है- जिसे कुछ शरारती तत्वों की तरफ से अंजाम दिया जा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने अपने घरों में उपेक्षा का शिकार स्त्रियां/लड़कियां ध्यान बंटाने के लिए ऐसा कर रही हों, कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्माद की स्थिति में जिस तरह कइयों के शरीर पर ‘देवी आने’ की बात कही जाती है- जो एक किस्म की मनोविकार की ही अवस्था होती है- वह इस काम को अंजाम देती हों और उन्हें इस बात का गुमान न रहता हो.
मनोवैज्ञानिकों के हिसाब से चोटी काटे जाने की यह घटनाएं जनभ्रम अर्थात जनउन्माद का मामला है, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में डिसोसिएटिव रिएक्शन कहा जाता है. ऐसे लोग इसका शिकार अधिक होते हैं, जो खुद अवसाद में हैं और बदलती परिस्थिति के साथ अपने को एडजस्ट करने में जिन्हें दिक्कत आती है. उनके मुताबिक ऐसी घटनाएं तेजी से फैलती हैं और आप को नये-नये इलाकों से ऐसे समाचार मिलेंगे.
निश्चित ही कई सारे प्रश्न हैं, जिनका जवाब ढंूढना जरूरी है. बेहतर हो कि मामले को सनसनी की हद तक छोड़ देने के बजाय हमारे समय के तर्कशील लोग, वैज्ञानिक चिंतन पर भरोसा रखनेवाले लोग, समाजोभिमुखी समाजशास्त्राी- दाभोलकर एवं उनके सहयोद्धाओं की तर्ज पर- मिलजुल कर इसकी तह तक जायें और पता करें कि अचानक यह क्या हुआ और कई लोग इस जनभ्रम के चपेट में आये.