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शिखर वार्ता से भारत-अमेरिका संबंधों में मजबूती की उम्मीद

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली मुलाकात को संतोषजनक कहा जा सकता है. पूर्व राष्ट्रपतियों से अलग मिजाज रखनेवाले ट्रंप को लेकर अनिश्चितता का कारक बना रहता है, पर दोनों नेताओं के बयानों, रणनीतिक समझौतों और आतंक के विरुद्ध एकजुटता के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि भारत और […]

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहली मुलाकात को संतोषजनक कहा जा सकता है. पूर्व राष्ट्रपतियों से अलग मिजाज रखनेवाले ट्रंप को लेकर अनिश्चितता का कारक बना रहता है, पर दोनों नेताओं के बयानों, रणनीतिक समझौतों और आतंक के विरुद्ध एकजुटता के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि भारत और अमेरिका के संबंध मजबूती की ओर अग्रसर हैं. इस शिखर वार्ता के विविध आयामों को विश्लेषित करते हुए आज के इन-डेप्थ की प्रस्तुति…
पुष्परंजन
इयू–एशिया न्यूज के नई दिल्ली संपादक
यूं ही नहीं, मोदी और ट्रंप का मिलना
ऐसी कौन-सी बात थी कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी की अमेरिका यात्रा में रॉक स्टार की तरह अवतरित नहीं हुए? प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पांचवी बार अमेरिका यात्र पर गये हैं. और, पहली बार राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उनका आमने-सामने मिलना हुआ है. इस शिखर मुलाकात से पहले वैसा समां नहीं बंधा, जैसा कि सितंबर, 2014 में न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर गार्डन के विशाल स्टेडियम में 20 हजार दर्शकों के बीच मोदी जी के स्वागत का अद्भुत, अविस्मरणीय इतिहास रचा गया था. उसके अगले साल सितंबर, 2015 में सिलिकन वैली के सैप सेंटर में मोदी जी के विराट स्वरूप को कुछ उसी तरह प्रस्तुत किया गया था. इस बार वाशिंगटन से सटे, वर्जिनिया के रित्ज कार्लटन के 14 हजार वर्ग फीटवाले बॉल रूम में सिर्फ 600 भारतवंशी अमेरिकियों को प्रधानमंत्री मोदी संबोधित कर रहे थे. कहां आठ लाख 20 हजार वर्ग फीट का मेडिसन स्क्वायर गार्डन का विशाल स्टेडियम, और कहां एक फोर-स्टार होटल का बॉल रूम, जहां बिना किसी गाजे–बाजे के ‘विश्व नेता’ का उद्बोधन! आश्चर्य, किंतु सत्य. इतने ‘छोटे प्रोफाइल’ में प्रधानमंत्री मोदी की प्रस्तुति की कुछ ‘बड़ी वजह’ है.
‘लो प्रोफाइल’ का कारण?
क्या अमेरिका का नया निजाम यही चाहता है कि जो भी ‘विश्व नेता’ उसके यहां राजकीय मेहमान के रूप में आयें, उसके तरीके से मिलना-जुलना रखें, और ‘हाथी-घोड़ा-पालकी’ स्वदेश ही छोड़ आयें? कहा यही गया है कि ‘सुरक्षा कारणों’ से प्रधानमंत्री मोदी को ताम-झाम से दूर रखा गया. मगर, सवाल यह है कि उनकी पिछली चार यात्राओं में उनकी सुरक्षा चिंता क्या अमेरिकी मेजबान को नहीं थी? खबरिया चैनलों पर एक कथा चल रही थी कि पहली बार ट्रंप किसी ‘राजकीय मेहमान’ यानी प्रधानमंत्री मोदी को ‘डिनर’ पर बुला रहे हैं. अब इन्हें कौन बताये कि इस साल अप्रैल के पहले हफ्ते में चीनी राष्ट्रपति भी दो दिन फ्लोरिडा के पाम बीच पर ट्रंप के ‘मारालागो महल’ में बतौर विशेष मेहमान रूके थे.
फरवरी, 2017 में ही जापान के प्रधानमंत्री आबे यहां रूक चुके हैं. इस आलीशान महल को ‘विंटर ह्वाइट हाउस’ भी कहा जाता है. अमेरिकी राष्ट्रपति के इस इंतजाम को ध्यान से देखिये, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को वाशिंगटन के फाइव स्टार होटल ‘विलार्ड इंटरकांटिनेंटल’ में टिका देते हैं, दूसरी ओर उसके प्रतिद्वंद्वी देश चीन के शासन-प्रमुख का भव्य स्वागत करते हुए अपने महल में ठहराते हैं. यह अमेरिकी नेताओं की व्यापारिक मानसिकता को दर्शाता है. यह बात अपने प्रधानमंत्री को सम्मान देनेवाले किसी भी भारतीय को बुरी लग सकती है.
व्हाइट हाउस में सत्कार का आभार
इस पूरी यात्रा का केंद्र बिंदू व्हाइट हाउस ही रहा है, जहां भारत-अमेरिका संबंधों के बारे में अंतिम फैसला लिया जाना था. व्हाइट हाउस के रोज गार्डन में साझा बयान देते समय ट्रंप ने कहा कि चुनाव के वक्त मैंने भारत को अमेरिका का सच्चा दोस्त कहा था. भारत, व्हाइट हाउस का सच्चा दोस्त है, यह दिख रहा है. ट्रंप ने चुटकी ली, ‘सोशल मीडिया पर हम दोनों ‘वर्ल्ड लीडर’ हैं.’ उन्होंने यह भी कहा,‘भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, जिससे अमेरिका अपना सहकार बनाये रखेगा. मैं इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी को सैल्यूट करता हूं.’ प्रधानमंत्री मोदी ने भी आभार प्रदर्शित करते हुए कहा कि व्हाइट हाउस ने मुझे समय और सम्मान दिया, इसके लिए मैं राष्ट्रपति ट्रंप का अभिनंदन करता हूं. निजी संबंधों को प्रगाढ़ करने के वास्ते प्रधानमंत्री मोदी ने विशिष्ट उपहार भेंट किया. ट्रंप की बेटी इवांका ‘आंटेप्रिनियोरशिप समिट’ में भारत आयेंगी, यह भी तय हो गया. ट्रंप कब भारत आयेंगे, यह बाद में तय होगा.
एच वन–वी वीजा पर चुप्पी
इस यात्रा से पहले यह उम्मीद बंधी थी कि मोदी ‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा को आगे बढायेंगे. मगर, यह हुआ नहीं. सिर्फ एक बार ‘न्यू इंडिया’ का नाम नरेंद्र मोदी ने लिया. एचवन-बी वीजा पर चर्चा की उम्मीद 30 लाख अमेरिकन-इंडियन कर रहे थे. ऐसा लगता है, इस विषय को सूची से बाहर रखा गया था, उसी तरह ‘पेरिस पर्यावरण संधि’ जैसे मुद्दे को मोदी ने दूर ही रखा. उल्टा, ट्रंप ने कहा कि भारत से उभयपक्षीय व्यापार में घाटा हम उठा रहे हैं, उसे मोदी ठीक करें. उन्होंने मोदी से ‘ट्रेड बैरियर’ को और शिथिल करने को कहा, ताकि अमेरिका अधिक निर्यात कर सके, और अमेरिकी जनता को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकेंगे.
‘मेक इन अमेरिका’ पर मेहरबान मोदी
ट्रंप अपने चुनावी वायदे के प्रति गंभीर हैं, यह स्पष्ट दिख रहा था. दो अरब डॉलर की ड्रोन डील, अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन द्वारा 70 अदद एफ–16 की सप्लाई और उसके रख-रखाव व कल-पूर्जों के लिए टाटा से समझौते को लेकर अमेरिका का उद्योग जगत खुश है. उससे पहले नागरिक विमानों की बड़ी खेप भारत में निर्यात किये जाने को उद्धृत करते हुए ट्रंप ने संदेश दिया कि इससे अमेरिकी नागरिकों को रोजगार के बड़े अवसर मिलने जा रहे हैं. भारतीय वायुसेना को 200 अत्याधुनिक युद्धक विमानों की आवश्यकता है, इसके एक बड़े हिस्से का निर्यात अमेरिका करेगा, इसे ट्रंप की व्यापारिक सफलता के नुक्ते-नजर से देखा जाना चाहिए. ट्रंप ने जीएसटी को जल्द लागू किये जाने को जिस तरह सराहा, इससे साफ था कि भारत में कर प्रणाली में हो रहे बदलाव पर अमेरिका की गहरी नज़र है.
हाफिज सईद अब ‘ग्लोबल आतंकी’
अमेरिकी गृह मंत्रलय का एक महकमा है, ‘ब्यूरो ऑफ काउंटर टेररिजम.’ इस विभाग का काम है, दुनिया भर के दहशतगर्द संगठनों और उनके नेताओं को ‘ग्लोबल टेररिस्ट’ घोषित करना, और जब वे दुरूस्त हो जायें, तो उनके नाम को सूची से बाहर कर देना. आतंकी सरगना हाफिज सईद अब इस सूची में 61वें नंबर पर है. चीन की वजह से संयुक्त राष्ट्र में न सही, अमेरिका की सूची में हाफिज सईद ‘ग्लोबल आतंकी’ है. सच है कि यह प्रधानमंत्री मोदी के कूटनीतिक प्रयासों की वजह से हुआ. मगर, क्या इतना भर से हाफिज सईद को पाकिस्तान, भारत को सौंप देगा? यह वही नवाज शरीफ हैं, जिन्होंने हिज्बुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी को संयुक्त राष्ट्र को दिये भाषण में ‘कश्मीरी इंतिफादा’ का प्रतीक मान लिया था. आतंकी को समर्थन देने वाला भी आतंकी होता है, यह बात ट्रंप को समझाने की जरूरत है और पाकिस्तान को खैरात में करोड़ों डॉलर का खर्चा-पानी देने पर रोक लगाने के वास्ते माहौल बनाये रखना चाहिए.
आठ ‘ग्लोबल टेररिस्ट’ पाकिस्तान में
अमेरिकी गृह मंत्रालय के इसी ‘ब्यूरो ऑफ काउंटर टेररिजम’ ने 1997 में हरकतुल मुजाहिदीन, 2001 में जैशे-मोहम्मद व लश्करे-तैयबा, 2003 में लश्करे-झंगवी, 2010 में तहरीके-तालिबान पाकिस्तान और जुंदल्ला, 2012 में हक्कानी नेटवर्क, 2016 में भारतीय उपमहाद्वीप में सक्रिय अल कायदा को ‘ग्लोबल आतंकी संगठन’ और इनके नेताओं को ‘टेररिस्ट’ घोषित किया था. अभी 61 में से आठ ‘ग्लोबल टेररिस्ट’ पाकिस्तान में हैं. तो क्या अमेरिका ने उनका सफाया कर दिया? इसलिए हाफिज सईद के ‘ग्लोबल टेररिस्ट’ घोषित होने पर अति उत्साह में आने की आवश्यकता नहीं है. उससे ज्यादा जरूरी उसे जड़ से उखाड़ फेंकना है.
‘इंटेलीजेंस शेयरिंग‘
पाकिस्तान के हर गोशे में कौन-सा आतंकी क्या कर रहा है, इस बात की पक्की जानकारी अमेरिकी खुफिया को रहती है. बिन लादेन का वध इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम को निपटाने में अमेरिकी खुफिया तंत्र किस तरह की मदद कर सकता है? इस बारे में राष्ट्रीय सुरक्षा की कमान संभालने वाले अजीत डोभाल को पता होना चाहिए. ट्रंप प्रशासन अफगानिस्तान में भारत से खुफिया आदान-प्रदान चाहता है. मगर, सीआइए और रॉ के बीच नये सिरे से ‘इंटेलीजेंस शेयरिंग’ का दायरा कहीं कश्मीर की वादियों तक न पहुंच जाये, यह हमारे लिये चिंता का विषय होना चाहिए. अमेरिका ने पहली बार गैर-नाटो देश भारत को 22 अदद ‘प्रीडेटर–बीईआर ड्रोन’ देने का फैसला किया है. बयालीस घंटे हवा में उड़ने वाले ये ड्रोन भारतीय सीमाओं की चौकसी के लिए गेम चेंजर साबित होंगे, यह चीन के लिए चिंता का विषय हो चुका है. ट्रंप प्रशासन एशिया-प्रशांत के समुद्री इलाके में भारत की मजबूती चाहता है, यह बात चीन की समझ में आ गयी है.
अफगानिस्तान में ‘ग्रेट गेम’ और भारत
एक बार फिर से अफगानिस्तान में ‘ग्रेट गेम’ आरंभ है. मगर इस बार इस खेल में रूस के साथ चीन और पाकिस्तान सहयोगी हैं. चीन की खुफिया एजेंसी ‘एमएसएस’ (मिनिस्ट्री ऑफ स्टेट सिक्योरिटी), रूसी खुफिया ‘एफएसबी’ (फेडरल सिक्योरिटी सर्विस) और आइएसआई के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान ने अमेरिका को चिंता में डाल रखा है. इन तीनों एजेंसियों का दबाव अफगान खुफिया एजेंसी ‘एनडीएस’ पर है. ‘एनडीएस’ के बहुत सारे लोगों को भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ ने प्रशिक्षित कर रखा है, इस वजह से ‘एनडीएस’ से भारत की इंटेलीजेंस शेयरिंग अच्छे से हो जाती है. ट्रंप प्रशासन इसी का लाभ लेना चाहता है.
पेंटागन ने एक नयी मिलिट्री इंटेलीजेंस सर्विस की शुरूआत की है, जिसका नाम है, ‘डीसीएस’(डिफेंस क्लेंडेस्टाइन सर्विस). डीसीएस के खुफिया पेंटागन और सीआईए के बीच संपर्क सूत्र का काम कर रहे हैं. उनका लक्ष्य दक्षिण एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन-रूस की सैन्य व आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखना है. ट्रंप प्रशासन इस नयी रणनीतिक गठजोड़ में भारतीय खुफिया एजेंसियों की बड़ी भूमिका चाहता है. मगर ऐसा न हो, हमारा खुफिया तंत्र अमेरिकी हितों का साधन बन जाये. इस खतरे से बचने के रास्ते ढूंढने होंगे.
क्या कहा दोनों नेताओं ने
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
यहां मेरे साथ उपस्थित होने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद है प्रधानमंत्री मोदी. व्हाइट हाउस द्वारा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का स्वागत करना सम्मान की बात है. भारत और वहां के लोगों का मैं गहरा प्रशंसक रहा हूं और वहां की समृद्ध संस्कृति, विरासत और परंपराओं की काफी सराहना करता हूं. भारत हमारा सच्चा दोस्त है. अमेरिका और भारत के बीच मित्रता साझा मूल्यों पर आधारित है, जिसमें लोकतंत्र के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धता शामिल है. भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. प्रधानमंत्री मोदी मैं आपके साथ काम करने, हमारे देश में नौकरियों के सृजन करने, हमारी अर्थव्यवस्था को विकसित करने और एक सच्चे व पारस्परिक व्यापारिक संबंधों को विकसित करने के लिए
आशान्वित हूं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
हमारी इस यात्रा और हमारे बीच की बातचीत दोनों राष्ट्रों के बीच सहकार्य और सहयोग के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पन्ने के रूप मे दर्ज होगा. मेरे और राष्ट्रपति ट्रंप के बीच हुई बातचीत सभी बिंदुओं और अनेक कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह पारस्परिक विश्वास पर आधारित है.
हमारी मजबूत सामरिक साझेदारी मानवीय प्रयासों के लगभग सभी आयामों को छूती है. आज इस बातचीत के दौरान हमने भारत-अमेरिका के सभी आयामों पर चर्चा की. दोनों देश ऐसे द्विपक्षीय संबंधों के लिए प्रतिबद्ध हैं जाे हमारी सामरिक प्रतिबद्धता को नई ऊंचाइयों पर ले जायेगा. एक मजबूत, समृद्ध और सफल अमेरिका भारत के हित में है, ठीक उसी तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का विकास और इसकी भूमिका अमेरिका के
हित में है.

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