Bikru Kand: गैंगस्टर Vikas Dubey के करीबी अमर दुबे की पत्नी Khushi Dubey को कैसे मिली जमानत
हैदराबाद के नामपल्ली में मोटरसाइकिल और कार का गैराज चलाने वाले 43 वर्षीय मोहम्मद शहजोर खान ने एक ऐसी एंबुलेंस बनायी है, जो बाइक से जुड़कर काम कर सकती है. आइए जानें इस बाइक एंबुलेंस को बनाने में उन्हें किस घटना ने प्रेरित किया और किस तरह काम करती है उनकी ये बाइक एंबुलेंस…
पिछले साल नवंबर में आंध्र प्रदेश में 53 साल के एक भिखारी रामुलू की स्टोरी खूब चर्चा में रही थी जिसमें वह एंबुलेंस न मिलने पर अपनी पत्नी की लाश को ठेले पर लादकर 60 किलोमीटर तक ले गया था. हालांकि रामुलू अपनी पत्नी की मदद करने में असफल रहा था और किसी ने भी उसकी मदद नहीं की थी. बाद में तमाम लोगों ने रामुलू के प्रति संवेदना प्रकट थी.लेकिन, एक व्यक्ति ऐसा भी था, जिसने संवेदना प्रकट करने के आगे भी सोचा और एक ऐसी एंबुलेंस बना दी जो बाइक के सहारे भी चल सकती है.
रामुलू और उसकी पत्नी कविता दोनों लेप्रोसी के मरीज थे और रोजी-रोटी चलाने के लिए भीख मांगकर अपना गुजारा करते थे. सही से इलाज न होने पर कविता ने हैदराबाद के लिंगामपल्ली रेलवे स्टेशन पर दम तोड़ दिया था. आंध्र प्रदेश के मेडक जिले के अपने पैतृक गांव में पत्नी का अंतिम संस्कार करने के लिए उसे गाड़ी की जरूरत थी, लेकिन पैसे न होने के कारण किसी ने उसकी मदद नहीं की. ऑटो वाले उससे 5,000 रुपये की मांग कर रहे थे, जबकि उसके पास हजार रुपये भी नहीं थे.
इस घटना को सुन कर हैदराबाद के नामपल्ली में मोटरसाइकिल और कार का गैरेज चलाने वाले 43 साल के मोहम्मद शहजोर खान काफी दुखी हुए और उन्होंने कुछ करने के लिए ठान लिया. सिर्फ 335 दिनों में उन्होंने एक ऐसी एंबुलेंस बना डाली जो बाइक से जुड़कर काम कर सकती है. इस एंबुलेंस की लागत सिर्फ 1.10 लाख रुपये आयी. हालांकि केबिन का खर्च ही लगभग 65 हजार आया. बाकी के पैसे एंबुलेंस के अन्य सामान खरीदने में लग गये. हीरो होंडा सीडी डीलक्स बाइक से जुड़कर चलने वाली इस एंबुलेंस में वो सारी सुविधाएं हैं जो किसी आम एंबुलेंस में होती हैं. शहजोर ने कहा, “रामुलू की पत्नी की खबर ने मुझे अंदर तक हिला दिया था और मैंने गरीबों की मदद करने के लिए इस एंबुलेंस को बनाया.”
शहजोर के पिता कस्टमाइज्ड बाइक बनाने में माहिर हैं. अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे शहजोर ने दस लोगों की टीम के साथ मिलकर हीरो होंडा बाइक से इस एंबुलेंस को जोड़ दिया है. इसमें एक वक्त पर बड़ी आसानी से एक मरीज को ले जाया जा सकता है. इसकी खास बात यह है कि भारी ट्रैफिक जाम में भी ये आसानी से निकल सकती है, जबकि नॉर्मल एंबुलेंस का निकलना काफी मुश्किल होता है.
शहजोर खान बताते हैं, कि उन्हों इस बाइक एंबुलेंस का निर्माण भारतीय सड़कों को ध्यान में रखकर किया है. हालांकि कई सारे हॉस्पिटल और मेडिकल इंस्टिट्यूट्स ने पहले ही शहजोर को इस मॉडल के लिए अप्रोच किया, लेकिन उन्होंने सभी को मना कर दिया क्योंकि वह इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं चाहते हैं. वह गरीबों की मुफ्त में मदद करना चाहते हैं.
फिलहाल मोहम्मद शहजोर खान इस बाइक को सिर्फ ग्रामीण इलाकों में मेडिकल सेंटर के लिए उपलब्ध करवाना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि उन्हें ये भला काम करने की प्रेरणा उनके पिता से मिली जो 1975 से विकलांगों के लिए मोडिफाइड बाइक बनाने का काम कर रहे हैं.
वह कहते हैं, “मेरे पिता ही मेरे प्रेरणास्रोत हैं. जब मैं केवल 12 साल का था तभी से मैं गैरेज में काफी समय बिताता था और अपने पिता से बाइकों को मोडिफाई करना सीखता था. वे गरीबों और विकलांगों के लिए बाइक को मोडिफाई करने का काम करते थे, ताकि ऐसे लोगों को किसी पर निर्भर न होना पड़े. हालांकि अब मेरे पिता हमारे साथ नहीं हैं, लेकिन मैं उनके सपने को आगे ले जाना चाहता हूं.”
(योर स्टोरी डॉट कॉम से साभार)