गांव की अर्थव्यवस्था कैसे मजबूत कर रहा है पीला सोना, जीवन में ऐसे रचा-बसा है महुआ
झारखंड में महुआ ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, ग्रामीण अहले सुबह माथे पर टोकरी लेकर जंगल की तरफ निकल जाते हैं. लातेहार जिले के महुआडांड़ के जंगलों में काफी संख्या में महुआ के पेड़ हैं. इनसे पीला सोना टपक रहा है. ग्रामीण कहते हैं कि जंगल में सबसे ज्यादा आय महुआ से ही है.
झारखंड में महुआ ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ा है, ग्रामीण अहले सुबह माथे पर टोकरी लेकर जंगल की तरफ निकल जाते हैं. लातेहार जिले के महुआडांड़ के जंगलों में काफी संख्या में महुआ के पेड़ हैं. इनसे पीला सोना टपक रहा है.
ग्रामीण कहते हैं कि जंगल में सबसे ज्यादा आय महुआ से ही है. ग्रामीण इसे पीला सोना कहते हैं सोने की चमक हासिल करने के लिए जिस तरह उसे तपना पड़ता है वही तपन और संघर्ष जंगल के इस पीले सोने को हासिल करने के लिए ग्रामीणों को करना पड़ता है. महुआ गिर रहा है, सुबह-सवेरे जंगलों में लोगों की चहल-पहल बढ़ जाती है.
ग्रामीण लाइट, लाठी और महुआ रखने के लिए टोकरी लेकर निकल पड़ते हैं. पेड़ के नीचे ही खाना-पीना एवं विश्राम करना इस मौसम में उनकी दिनचर्या है. जंगली जानवर इससे पहले की महुआ को आहार बना लें ग्रामीणों को उससे पहले चुनकर उन्हें टोकरी तक पहुंचाना होता है