Purnia: जिस जूट ने गुलाबबाग मंडी को एशिया महादेश में चर्चित कर दिया, बेरहम वक्त ने उसी जूट को पूर्णिया क्षेत्र से अलविदा कर दिया. जैसे-जैसे गोल्डेन फाइबर का गोल्ड झड़ता गया, वैसे-वैसे किसान भी इसकी खेती से दूर होते चले गए. आलम यह है कि पूर्णिया क्षेत्र में जूट की खेती घटकर एक-चौथाई रह गयी है. जबकि एक जमाने में पूर्णिया समेत पूरे कोसी-सीमांचल में तीन लाख हेक्टेयर से अधिक जूट का रकबा हुआ करता था. जूट की खेती से मुंह मोड़ने का दर्द किसानों में छलक जाता है, हालांकि वे कहते हैं कि जब फायदा ही नहीं होगा तो जूट लगाकर क्या करेंगे. पूर्णिया पूर्व प्रखंड के श्रीनगर गांव के किसान विजय कुमार यादव बताते हैं कि पांच साल पहले तक वे करीब 10 एकड़ में जूट की खेती करते थे, मगर मुनाफा घटने लगा तो उन्होंने जूट की खेती करनी छोड़ दी. अब जूट की जगह आलू, मकई और मिर्च की खेती करते हैं. वहीं रायपुर खाखोबाड़ी के किसान हंसराज ततमा ने बताया कि अब बहुत छोटे पैमाने पर जूट की खेती होती है. चार-पांच साल पहले वे भी 10-15 एकड़ में जूट लगाते थे, मगर मुनाफा ठीक से नहीं होने से जूट लगाना बंद कर दिए. ‍‍