आइ गेलइ जाड़ मास

हिलइ लागल हाड़ मास

बहइ लागल कनकनी

ठिठुइर गेलइ देह.

पिनहइक नायं लुगा-साड़ी

ओढ़इक नायं लेंदरा चादइर

थइर-थइर कांइप रहल गिदर गुला

देहिएं बतास गेलइ मेह.

घरइ नायं खावा-खरचा

आर नायं कोन्हों उपाय

दरजन भइर धीया-पुता

खाय खतिर कांय-कांय चिलाय.

रउद नायं निकलय जखिन

दु-चाइर दिन पहरिया

टप-टप टपकइ ओला

सित आर पनियां

कुहास रहइ घेर-घेर

चलइ सित लहरिया

कोना में दुबइक रहे बाले-बचे

कटइ दिन रतिया.

चुइन-बिइछ कागइज-पतइर

आर जमा करइ झुरी-काठी

करइ जलावइक उपाय

जोखंय मिलय नायं दियासलाय.

मोने-मोन कोसइ हे भइगवान

कहिल बनाइलें कहइ खातिर इनसान

कहिल बनइलें हमरा गरीब-गुरबा

खाइल-पहनइल मिलइ नायं

कटतइ कइसें जड़वा.

भीम कुमार, शिक्षक सह कवि, नगवां, गावां, गिरिडीह

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