आज हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्रीकांत वर्मा की पुण्यतिथि है. श्रीकांत वर्मा हिंदी की नयी कविता धारा के एक प्रमुख कवि थे. इसके साथ-साथ वे एक बेहतरीन कहानीकार व उपन्यासकार थे. उनके कहानी संग्रह- झाड़ी, संवाद और उपन्यास– दूसरी बार चर्चित रहे. लेकिन ‘दिनमान’ पत्रिका के विशेष संवाददाता से लेकर राज्य सभा सदस्य बनने तक के अपने सफर में तमाम उतार-चढ़ाव के बीच उनका कविता लेखन के साथ गहरा जुड़ाव बना रहा. आज भी उनकी मगध, जलसाघर, कोसल में विचारों की कमी है, जैसी कविताएं लोगों की जुबान पर रहती हैं. प्रभात साहित्य में आज पढ़ें श्रीकांत वर्मा की चुनिंदा कविताएं…

मगध

सुनो भई घुड़सवार, मगध किधर है

मगध से

आया हूं

मगध

मुझे जाना है

किधर मुड़ूं

उत्तर के दक्षिण

या पूर्व के पश्चिम

में?

लो, वह दिखाई पड़ा मगध,

लो, वह अदृश्य –

कल ही तो मगध मैंने

छोड़ा था

कल ही तो कहा था

मगधवासियों ने

मगध मत छोड़ो

मैंने दिया था वचन –

सूर्योदय के पहले

लौट आऊंगा

न मगध है, न मगध

तुम भी तो मगध को ढूंढ़ रहे हो

बंधुओ,

यह वह मगध नहीं

तुमने जिसे पढ़ा है

किताबों में,

यह वह मगध है

जिसे तुम

मेरी तरह गंवा

चुके हो.

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एक मुर्दे का बयान

मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूं

मेरे पास कुछ भी नहीं है –

न मेरी कविताएं हैं न मेरे पाठक हैं

न मेरा अधिकार है

यहां तक कि मेरी सिगरेटें भी नहीं हैं.

मैं गलत समय की कविताएं लिखता हुआ

नकली सिगरेट पी रहा हूं

मैं एक अदृश्य दुनिया में जी रहा हूं

और अपने को टटोल कह सकता हूं

दावे के साथ

मैं एक साथ ही मुर्दा भी हूं और ऊदबिलाव भी.

मैं एक बासी दुनिया की मिट्टी में

दबा हुआ

अपने को खोद रहा हूं

मैं एक बिल्ली की शक्ल में छिपा हुआ चूहा हूं

औरों को टोहता हुआ

अपनों से डरा बैठा हूं

मैं अपने को टटोल कह सकता हूं दावे के साथ

मैं गलत समय की कविताएं लिखता हुआ

एक बासी दुनिया में

मर गया था.

मैं एक कवि था. मैं एक झूठ था.

मैं एक बीमा कंपनी का एजेंट था.

मैं एक सड़ा हुआ प्रेम था

मैं एक मिथ्या कर्तव्य था

मौका पड़ने पर नेपोलियन था

मौका पड़ने पर शहीद था.

मैं एक गलत बीवी का नेपोलियन था.

मैं एक

गलत जनता का शहीद था!

कोसल में विचारों की कमी है

महाराज बधाई हो; महाराज की जय हो !

युद्ध नहीं हुआ –

लौट गये शत्रु.

वैसे हमारी तैयारी पूरी थी !

चार अक्षौहिणी थीं सेनाएं

दस सहस्र अश्व

लगभग इतने ही हाथी.

कोई कसर न थी.

युद्ध होता भी तो

नतीजा यही होता.

न उनके पास अस्त्र थे

न अश्व

न हाथी

युद्ध हो भी कैसे सकता था !

निहत्थे थे वे

उनमें से हरेक अकेला था

और हरेक यह कहता था

प्रत्येक अकेला होता है !

जो भी हो

जय यह आपकी है ।

बधाई हो !

राजसूय पूरा हुआ

आप चक्रवर्ती हुए –

वे सिर्फ़ कुछ प्रश्न छोड़ गये हैं

जैसे कि यह –

कोसल अधिक दिन नहीं टिक सकता

कोसल में विचारों की कमी है.

हस्तिनापुर का रिवाज

मैं फिर कहता हूं

धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा –

मगर मेरी

कोई नहीं सुनता!

हस्तिनापुर में सुनने का रिवाज नहीं –

जो सुनते हैं

बहरे हैं या

अनसुनी करने के लिए

नियुक्त किये गये हैं

मैं फिर कहता हूं

धर्म नहीं रहेगा, तो कुछ नहीं रहेगा –

मगर मेरी

कोई नहीं सुनता

तब सुनो या मत सुनो

हस्तिनापुर के निवासियो! होशियार!

हस्तिनापुर में

तुम्हारा एक शत्रु पल रहा है, विचार –

और याद रखो

आजकल महामारी की तरह फैल जाता है

विचार.

काशी का न्याय

सभा बरखास्त हो चुकी

सभासद चलें

जो होना था सो हुआ

अब हम, मुंह क्यों लटकाए हुए हैं?

क्या कशमकश है?

किससे डर रहे हैं?

फैसला हमने नहीं लिया –

सिर हिलाने का मतलब फैसला लेना नहीं होता

हमने तो सोच-विचार तक नहीं किया

बहसियों ने बहस की

हमने क्या किया?

हमारा क्या दोष?

न हम सभा बुलाते हैं

न फैसला सुनाते हैं

वर्ष में एक बार

काशी आते हैं –

सिर्फ यह कहने के लिए

कि सभा बुलाने की भी आवश्यकता नहीं

हर व्यक्ति का फैसला

जन्म के पहले हो चुका है.