मशहूर अभिनेता ऋषि कपूर का मुंबई के सर एच. एन. रिलायंस फाउंडेशन अस्पताल में निधन हो गया. इस खबर से बॉलीवुड इंडस्‍ट्री को झकझोर कर रख दिया है. ऋषि कपूर लंबे समय से कैंसर का इलाज करा रहे थे. 67 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली और दुनिया को अलविदा कह दिया. उन्‍होंने बॉलीवुड में अपनी अदायगी से एक अमिट छाप छोड़ी है. लेकिन ही लोग जानते हैं कि पड़ोसी देश पाकिस्‍तान से भी उनका ताल्‍लुक है.

दरअसल ऋषि कपूर के दादा पृथ्‍वीराज कपूर का नाता उस परिवार से था जिसका एक घर पेशावर में हैं और इसका निर्माध सन् 1918 से 1922 के बीच दीवान बशेश्‍वरनाथ कपूर (पृथ्‍वीराज कपूर के पिता) ने करवाया था. सन् 1947 में जब भारत और पाकिस्‍तान का बंटवारा हुआ तो कपूर खानदान पाकिस्‍तान से भारत आ गया. पेशावर के इस घर को ‘कपूर हवेली’ के नाम से जाना जाता है. इसी हवेली में ऋषि के पिता और ‘शोमैन’ राजकपूर का जन्‍म सन् 1924 में हुआ था.

ऋषि कपूर की ही कोशिशों की बदौलत पाकिस्‍तान की सरकार ने कपूर खानदान की पुश्‍तैनी हवेली जो खैबर पख्‍नून्‍ख्‍वां के पेशावर में है उसे एक संग्रहालय बनाने का फैसला लिया था. इस हवेली से आज भी कपूर खानदान कई यादें जुड़ी हुईं हैं. यहां राजकपूर का बचपन बीता और यहीं पृथ्‍वीराज कपूर ने बचपन से लेकर अपनी जवानी तक के दिन बिताए.

1930 में पृथ्‍वीराज कपूर इस हवेली को छोड़कर अपना भविष्‍य संवारने मौजूदा भारत आ गए थे. बता दें कि ऋषि कपूर के परदादा और उनके भी पिता दीवान हुआ करते थे. पेशावर का यह पंजाबी हिंदू परिवार पाकिस्‍तान की शान हुआ करता था.

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पेशावर की इसी हवेली के जर्जर होने की खबर जब मीडिया में आई तो ऋषि कपूर की बेचैनी भी खुलकर सामने आई थी. वर्ष 2016 में जब पाकिस्‍तान के तत्‍कालीन गृहमंत्री शहरयार खान अफरीदी अपने निजी दौरे पर भारत के जयुपर आये थे तो ऋषि कपूर ने उन्‍हें फोन पर अपनी पुश्‍तैनी हवेली को एक संग्रहालय बनाने की अपील की थी. यह बातचीत रंग लाई और नवंबर 2018 में पाकिस्‍तान सरकार ने फैसला लेते हुए इसे संग्रहालय बनाने पर अपनी सहमति दी. बता दें कि पेशावर के किस्‍सा ख्‍वानी बाजार की इस हवेली को पहले भी पाकिस्‍तान की सरकार ने राष्‍ट्रीय विरासत के तौर पर घोषित किया था.

बता दें कि इस हवेली को विभाजन के बाद 1968 में एक ज्‍वैलर हाजी खुशाल रसूल ने निलामी में खरीदा था. ऋषि कपूर इस हवेली से कितना लगाव महसूस करते हैं इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं, जब वह 1990 में इसे देखने पेशावर गए थे तब वहां से वो इसकी मिट्टी अपने साथ लेकर आए थे. ऋषि कपूर बेहद जमीन से जुड़े इंसान थे. उन्‍हें न तो कभी सफल एक्‍टर होने का गुमान हुआ न ही एक ऐसे परिवार का सदस्‍य होने का जिसकी शान कभी फीकी नहीं पड़ी. आज वो हमारे बीच नहीं हैं तो ऐसा मालूम होता है कि इतिहास का एक पन्‍ना पूरी तरह से बंद हो गया…