Jitiya Vrat 2023 Date: जितिया व्रत 6 या 7 अक्टूबर कब ? जानें शुभ मुहूर्त और पारण का समय

Jitiya Vrat 2023 Date: इस साल जितिया व्रत 6 अक्तूबर 2023 दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है. जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला होता है. ये बेहद कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि इस व्रत में 24 घंटे से भी ज्यादा समय के लिए अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है.

By Shaurya Punj | October 3, 2023 9:54 AM
an image
  • इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत 6 अक्तूबर 2023 दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है

  • ये बेहद कठिन व्रत माना जाता है

  • इस व्रत में 24 घंटे से भी ज्यादा समय के लिए अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है

Jitiya Vrat 2023 Date: जीवित्पुत्रिका व्रत को जिउतिया, जितिया या ज्युतिया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. इस साल यह व्रत 6 अक्तूबर 2023 दिन शुक्रवार को रखा जा रहा है. जीवित्पुत्रिका व्रत निर्जला होता है. ये बेहद कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि इस व्रत में 24 घंटे से भी ज्यादा समय के लिए अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता है. जानिए इस साल जितिया व्रत कब है और पूजा का क्या रहेगा शुभ मुहूर्त.

Also Read: Dussehra 2023: कब है दशहरा, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा मुहूर्त

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जीवित्पुत्रिका का व्रत सुहागिन महिलाएं पुत्र की प्राप्ति और दीर्घायु होने के लिए रखती है. इस दिन 24 घंटे तक बिना कुछ खाए पिए व्रत रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को करती है, उसके बच्चे चारों ओर यानी सभी जगह प्रसिद्धि प्राप्त करते हैं. इसके साथ ही लंबे समय तक जीवित भी रहते हैं.

जितिया व्रत 2023 शुभ मुहूर्त

अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 34 मिनट से प्रारंभ होगी और 07 अक्टूबर को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर समाप्त होगी। यह पर्व तीन दिनों तक चलता है। इस बार यह व्रत 05 अक्टूबर से 07 अक्टूबर तक चलेगा।

मंत्र

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।

सदा बसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते,

देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः

पंचांग

जितिया व्रत के दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 46 मिनट से दोपहर 12 बजकर 33 मिनट तक है. वहीं, राहुकाल सुबह 10 बजकर 41 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक है. इस दौरान शुभ काम करने की मनाही होती है.

Also Read: Surya Grahan 2023: इसी महीने लगने जा रहा है साल का दूसरा सूर्य ग्रहण, जानें किस तारीख को दिखेगा

जितिया में क्या क्या चढ़ाया जाता है?

आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है. जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, अक्षत, पुष्प, फल आदि अर्पित करके फिर पूजा की जाती है. इसके साथ ही मिट्टी और गाय के गोबर से सियारिन और चील की प्रतिमा बनाई जाती है. प्रतिमा बन जाने के बाद उसके माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है.

जितिया व्रत का नियम क्या है?

जितिया व्रत के पहले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले जागकर स्‍नान करके पूजा करती हैं और फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं. उसके बाद पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. इसके बाद दूसरे दिन सुबह-सवेरे स्‍नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और फिर पूरा दिन निर्जला व्रत रखती हैं. व्रत के तीसरे दिन महिलाएं पारण करती हैं.

नहाय-खाय के दिन क्या क्या खाना चाहिए?

इस दिन बिना कुछ खाये-पीये या सिर्फ पानी या नारियल पानी का सेवन कर पूरे दिन उपवास रखा जाता है. शाम के समय पूजा कर मंडुआ की लिट्टी, गेहूं के आटे की दूध-पिट्ठी, देसी मटर करी, झिंगली-तोरी की सब्जी, अरबी की सब्जी, नोनी साग, पोई साग के पकौड़े, काशीफल की सब्जी, खीरे का रायता और न जाने कितने व्यंजन खाये और खिलाये जाते हैं.

जितिया व्रत का पूजा कैसे किया जाता है?

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. इसके बाद भगवान जीमूतवाहन की पूजा करें. इसके लिए कुशा से बनी जीमूतवाहन की प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित करें. इस व्रत में मिट्टी और गाय के गोबर से चील व सियारिन की मूर्ति बनाई जाती है. इसके बाद पूजा अर्चना की जाती है.

जितिया व्रत कथा

पौराणिक कथा अनुसार महाभारत युद्ध के समय अपने पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बेहद नाराज हुए. वो गुस्से में पांडवों के शिविर में घुस गए और उन्होंने देखा कि शिविर के अंदर उस वक्त 5 लोग सो रहे थे. अश्वत्थामा को लगा ये 5 पांडव हैं. अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उन्होंने उन पांचों को मार डाला. लेकिन असल में वह द्रौपदी की पांच संताने थी.

अर्जुन को जैसे ही द्रौपदी की संतानों की मृत्यु का समाचार मिला उन्होंने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उनकी दिव्यमणि छीन ली. अब अश्वत्थामा का गुस्सा और भी ज्यादा बढ़ गया और उन्होंने बदला लेने के लिए अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे को नष्ट कर दिया.

लेकिन भगवान कृष्ण ने अपने पुण्य का फल उत्तरा की संतान को देकर उसे पुन: जीवित कर दिया. मर कर पुनः जीवित होने की वजह से उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया. कहते हैं उसी समय से बच्चों की लंबी उम्र के लिए जितिया का व्रत रखे जाने की परंपरा शुरू हो गई.

Exit mobile version