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रानीगंज के बड़ाबाजार स्थित ‘बड़ी काली मां’ की प्रतिमा का विसर्जन

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रानीगंज.

परंपरा के अनुसार सोमवार को रानीगंज के बड़ा बाजार स्थित ‘बड़ी काली मां’ की प्रतिमा का विसर्जन धूमधाम से संपन्न हुआ. लगभग 350 वर्षों से यहां मां काली की पूजा होती आ रही है. लगभग 350 साल पहले अंडाल गांव के ताराचरण चट्टोपाध्याय का अंतिम संस्कार उनकी मां के निर्देश पर पंचमुंडी आश्रम में उसी श्मशान क्षेत्र में किया गया था, जहां वे दाह संस्कार किया करते थे.

ढाई सौ वर्षों के बाद इसी श्मशान स्थित काली की प्रतिमा स्थापित कर मां की पूजा-अर्चना की गयी है. मालूम हो कि साल के 11 महीने यहां पूजा होती है, लेकिन एक महीना मां काली अपने माता-पिता के घर जाती हैं. काली पूजा के तहत चट्टोपाध्याय परिवार के सदस्य मां की नयी मूर्ति बनाते हैं और पूजा संपूर्ण करते हैं. अभी भी नियमानुसार , महालया के बाद वाले सोमवार को मां काली की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. सोमवार को विसर्जन के दौरान भक्तों ने मां की विशेष पूजा की. एक बार फिर से एक महीने तक प्रतिमा का निर्माण किया जायेगा और काली पूजा के दिन से मां की पूजा शुरू हो जायेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

रानीगंज.

परंपरा के अनुसार सोमवार को रानीगंज के बड़ा बाजार स्थित ‘बड़ी काली मां’ की प्रतिमा का विसर्जन धूमधाम से संपन्न हुआ. लगभग 350 वर्षों से यहां मां काली की पूजा होती आ रही है. लगभग 350 साल पहले अंडाल गांव के ताराचरण चट्टोपाध्याय का अंतिम संस्कार उनकी मां के निर्देश पर पंचमुंडी आश्रम में उसी श्मशान क्षेत्र में किया गया था, जहां वे दाह संस्कार किया करते थे.

ढाई सौ वर्षों के बाद इसी श्मशान स्थित काली की प्रतिमा स्थापित कर मां की पूजा-अर्चना की गयी है. मालूम हो कि साल के 11 महीने यहां पूजा होती है, लेकिन एक महीना मां काली अपने माता-पिता के घर जाती हैं. काली पूजा के तहत चट्टोपाध्याय परिवार के सदस्य मां की नयी मूर्ति बनाते हैं और पूजा संपूर्ण करते हैं. अभी भी नियमानुसार , महालया के बाद वाले सोमवार को मां काली की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है. सोमवार को विसर्जन के दौरान भक्तों ने मां की विशेष पूजा की. एक बार फिर से एक महीने तक प्रतिमा का निर्माण किया जायेगा और काली पूजा के दिन से मां की पूजा शुरू हो जायेगी.

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