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Holi 2024: खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश-झारखंड के सरायकेला-खरसावां की खूबसूरती में पलाश के फूल चार चांद लगा रहे हैं. खरसावां, कुचाई, चांडिल, ईचागढ़, नीमडीह आदि के जंगलों में पलाश के फूल लोगों को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. आम तौर पर बसंत ऋतु में यह फूल खिलने लगता है, परंतु होली के आसपास ये फूल अपनी खूबसूरती से चार चांद लगा जाते हैं. गांव के लोग इसी पलाश के फूल से तैयार हर्बल कलर से होली खेलते हैं. पलाश के फूल कई बीमारियों में भी फायदेमंद हैं. इनमें औषधीय गुण हैं.
पलाश फूल से ऐसे तैयार किया जाता है हर्बल कलर
हर्बल कलर तैयार करने के लिए लोग होली के चार-पांच दिन पहले से ही पलाश के फूलों को एकत्रित कर एक बर्तन में पानी के साथ उबालते हैं. इससे प्राकृतिक रंग तैयार होता है. बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही पलाश के फूलों को लोग पेड़ों से तोड़कर जमा करने लगते हैं. इसके बाद इसे सुखा कर रंग और अबीर बनाते हैं. इसी से होली खेलते हैं. इसका रंग कई दिनों तक लोगों के चेहरे पर बना रहता है.
औषधीय है पलाश का पेड़
पलाश एक औषधीय पेड़ है. इसके पत्ते, फूल और छाल से दवा बनायी जाती है और कई बीमारियों का इलाज इसमें छिपी हुआ है. कोल्हान के कई क्षेत्रों में अब भी पलाश फूल से बने रंगों से होली में पूजा की जाती है. क्षेत्र के सुदूरवर्ती इलाकों में सदियों से लोग पलाश के फूल से बने रंग से होली खेलते हैं.
कई बीमारियों में फायदा पहुंचाता है पलाश फूल
पलाश के बीज में पैरासोनिक तत्व पाए जाते हैं. इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है. एग्जिमा और खुजली में यह लाभ पहुंचाता है. रेडिएशनजनित रोगों से छुटकारा मिलता है.
आयुर्वेद में काफी उपयोगी है पलाश का फूल
आयुर्वेदाचार्य मनोज महतो ने कहा कि आयुर्वेद में पलाश के फूल का उपयोग होता है. पलाश का फूल मूत्र संबंधी रोग, रतौंधी, गर्भधारण के समय उपयोगी, बवासीर, रक्तस्त्राव, हड्डी रोग में उपयोगी होता है. पलाश के फूल को ब्रह्मवृक्ष के नाम से भी जाना जाता है.