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1983 से ही हो रही है कोटालपोखर को प्रखंड बनाने की मांग

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संचिका आगे भी बढ़ी, कैबिनेट से स्वीकृति प्राप्त होने के बाद वित्त विभाग में भी गया

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बरहरवा. संयुक्त बिहार में 1983 से बरहरवा प्रखंड क्षेत्र की 10 पंचायतों को अलग कर कोटालपोखर को प्रखंड सह अंचल का दर्जा प्राप्त करने की मांग की जा रही है. वर्ष 2000 में बिहार से झारखंड जब अलग हुआ, तो यहां के स्थानीय लोगों में उम्मीद जगी कि अब उनका कोटालपोखर प्रखंड बन जायेगा, लेकिन बिहार से झारखंड अलग हुये भी 24 वर्ष हो गये हैं और यहां पर भी विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की सरकार आयी और गयी लेकिन अब तक कोटालपोखर को निराशा ही हाथ लगी है. 6 अक्टूबर 1994 संयुक्त बिहार के समय ही साहिबगंज जिले के कोटालपोखर, मंडरो और उधवा को प्रखंड सह अंचल का दर्जा देने के लिये बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने शिलान्यास की तिथि भी घोषित कर दिया था, लेकिन राजनीतिक उठापटक के कारण कोटालपोखर को तत्काल स्थगित करते हुए मंडरो एवं उधवा का शिलान्यास कर दिया गया और कोटालपोखर की यह मांग ठंडे बस्ते में चली गयी. तभी कोटालपोखर के तत्कालीन मुखिया और कोटालपोखर प्रखंड बनाओ संघर्ष समिति के तत्कालीन अध्यक्ष भगवती प्रसाद साह ने पुन: आवाज उठायी और उसके बाद 2 अगस्त 1996 को बिहार सरकार को फिर से प्रस्ताव भेजा. प्रस्ताव भेजने के बाद सरकार ने ग्रामीण विकास विभाग से इस संचिका को आगे बढ़ायी, लेकिन यह संचिका कुछ दिन बाद फिर अधर में लटक गयी और धीरे-धीरे यह मामला पुराना होता गया. लेकिन संघर्ष समिति ने अपना आवाज उठाना बंद नहीं किया. लगातार बिहार सरकार से पत्राचार होता रहा. बिहार से झारखंड जब अलग हुआ, तो 2008 में बरहरवा प्रखंड विकास पदाधिकारी के माध्यम से उपायुक्त साहिबगंज को कोटालपोखर को प्रखंड बनाने की मांग संबंधित एक रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजी गयी. उस वक्त झारखंड के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन थे. कोटालपोखर को प्रखंड बनाने की संचिका आगे बढ़ी तथा कैबिनेट से स्वीकृति प्राप्त होने के बाद वित्त विभाग में गया, लेकिन तमाड़ विधानसभा के उप चुनाव हार जाने के कारण शिबू सोरेन को 18 जनवरी 2009 में इस्तीफा देना पड़ा और उसके बाद यह मांग पुन: ठंडे बस्ते में चली गयी. ग्रामीण विकास विभाग के पत्रांक 5162 दिनांक 30 अगस्त 2013 के माध्यम से साहिबगंज उपायुक्त से कोटालपोखर को प्रखंड बनाने की मांग को लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर एक रिपोर्ट मांगी गयी. यहां से पंचायत समिति, जिला परिषद से इसे पास करने के बाद उपायुक्त ने ग्रामीण विकास विभाग को भेज दिया. 13 मार्च 2014 को राष्ट्रीय नियोजन कार्यक्रम के निदेशक ने भी बरहरवा बीडीओ से इस संबंध में एक रिपोर्ट की मांगी थी. यहां से रिपोर्ट भेजी गयी थी. इन सारी प्रक्रिया एवं रिपोर्ट भेजने के बाद भी कोटालपोखर को प्रखंड सह अंचल का दर्जा अब तक प्राप्त नहीं हुई, जिससे यहां के लोगों में काफी मायूसी है. लोग बरहरवा प्रखंड क्षेत्र के कोटालपोखर, श्रीकुंड, पलाशबोना, मयूरकोला, बड़ा सोनाकर, पथरिया, बिनोदपुर, आगलोई, मधुवापाडा, दरियापुर आदि को मिलाकर कोटालपोखर को प्रखंड का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जिसकी आबादी लगभग 80,000 से ऊपर है. बरहरवा व कोटालपोखर को भौगोलिक रूप से गुमानी नदी अलग करती है. वहीं, हरिहरा पंचायत मुख्य मार्ग होते हुये गुमानी बैरेज चौक के समीप स्थित पुल सीमावर्ती क्षेत्र है, इस पार बरहरवा थाना क्षेत्र आता है और पुल के उस पार कोटालपोखर थाना क्षेत्र आता है. कोटालपोखर थाना क्षेत्र में जितने भी गांव हैं, वह सभी कोटालपोखर प्रखंड के अधीन आयेंगे. यह प्रस्ताव पूर्व में तैयार किया गया था. वहीं, बरहरवा थाना क्षेत्र के इलाके के भी कुछ पंचायत कोटालपोखर प्रखंड बनाने की रिपोर्ट में शामिल की गयी थी, लेकिन यह सारी रिपोर्ट फाइलों में दबकर रह गयी. कोटालपोखर में पूर्व से रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, राष्ट्रीयकृत बैंक, पोस्ट ऑफिस, यातायात के साधन, संचार के साधन, भूमि की उपलब्धता और सभी पंचायतों से अच्छी कनेक्टिविटी मौजूद है. क्या कहते हैं स्थानीय जनप्रतिनिधि कोटालपोखर को प्रखंड सह अंचल का दर्जा प्राप्त होना चाहिये. यह हमारी वर्षों पुरानी मांग है. सेरोफिना हेम्ब्रम, मुखिया, कोटालपोखर कोटलपोखर को अगर प्रखंड बनाया जाता है, तो हम लोगों को काफी सुविधा होगा, क्योंकि हमें 20 किलोमीटर का सफर तय कर बरहरवा जाना पड़ता है. वकील अंसारी, मुखिया पति, बड़ा सोनाकर कोटालपोखर प्रखंड बने और इसका मुख्यालय मयूरकोला के आस-पास हो, तो गुमानी एवं कोटालपोखर दोनों क्षेत्र के लोगों को काफी सुविधा होगी. कपरा टुडू, मुखिया, मयूरकोला हमारा थाना क्षेत्र कोटालपोखर पड़ता है. अगर कोटालपोखर को प्रखंड सरकार बनाती है, तो हमारे आस-पास के सभी गांव के लोगों को काफी सुविधा होगी. प्रकाश कुमार टोप्पो, जिप सदस्य

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