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रांची: ईद और जुमे की नमाज के लिए जिन सड़कों पर हमेशा भीड़ रहती थी. कई बार भारी भीड़ की वजह से ट्रैफिक डाइवर्ट करना पड़ता था इस बार सड़क और मस्जिद बिल्कुल सुनसान रहे. जुमे की नमाज के साथ- साथ कोरोना की वजह से ईद की अलविदा जुमे की नमाज भी घर पर ही पढ़ गयी. रांची के वैसे इलाके जो ईद के बाजार से गुलजार रहती थी वहां मुश्किल से ही कोई नजर आ रहा था. सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे पुलिस इस बात का पूरा ध्यान रख रही थी कोई घरों से बाहर ना निकले.
रांची का हिंदपीढ़ी इलाका जो कंटेनमेंट जोन में है. अभी तक किसी को अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है. कर्बला चौक में भी पूरी तरह शांति रही कोई बाहर नहीं निकला हालांकि इन सड़कों पर इक्का दुक्का लोग कुर्ता पयजामा में यह जरूर याद दिला रहे थे कि आज ईद है. हिंदपीढ़ी के अंदर की गलियां भी सुनसान थीं. सभी ईद में अपने घरों में ही थे.
नहीं बनी बिरयानीईद के इस असवर पर हमने कुछ लोगों से बात की. हिंदपीढ़ी के रहने वाले अकीब रजा ने कहा, त्योहार है लेकिन कोरोना की वजह से हम सब निराश हैं. हमने यही दुआ मांगी है कि अल्लाह सबको स्वस्थ रखे. जब हमने पूछा कि हर त्योहार में सबके यहां विशेष बनता है इस बार कुछ विशेष बना है इस पर अकीब कहते हैं कि हमारे यहां राशन की दिक्कत हो जाती है कभी- कभी पार्षद अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन हमारे पास इतना राशन नहीं है कि हम कई तरह के पकवान बना सकें. इस बार तो बिरयानी भी नहीं बनी है.
अकीब बताते हैं कि हमने इस बार मिलकर फैसला लिया कि हम नये कपड़े नहीं पहनेंगे, बहुत खुशियां नहीं मानयेंगे. हम सभी एक दूसरे से दूर हैं. सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं. हम त्योहार में भी इतने खुश नहीं है जितना हर बार होते हैं. यह त्योहार साथ मिलकर मनाने का है एक दूसरे के घर जाने का है. हम सभी मजबूर हैं और इस मजबूरी में कोई कैसे खुश रहेगा. ज्यादा खुशी होगी जब कोरोना पूरी तरह खत्म हो जायेगा. हम सभी एक दूसरे से मिल सकेंगे.
कैसे मनायें खुशियां ?आसिफ रांची के कडरु इलाके में रहते हैं. आसिफ कहते हैं हमारा इलाका तो बंद नहीं है लेकिन इसके बावजूद भी हमने एक दूसरे से मिलना जरूरी नहीं समझा. हम सभी इस वक्त मौके को समझते हैं. नमाज भी हमने घर पर ही पढ़ा. नये कपड़े नहीं खरीदे क्योंकि इस वक्त खुशी मनायी भी जाये तो कैसे ? कोरोना वायरस से पूरी दुनिया परेशान है. हमारे यहां के कई मजदूर बाहर फंसे हैं. हर दिन खबरें देख रहा हूं.
उनकी तकलीफें सुनकर किसी की इच्छा नहीं होगी कि खुशी मनायी जाये. हम सभी यही कोशिश कर रहे हैं कि एक दूसरे कि जितनी मदद कर सकते हैं करें. ये वक्त भी चला जायेगा. सब साथ होंगे. हमारे यहां जकात का चलन है जिसमें से आपको गरीबों का हिस्सा निकालना होता है. सभी मुस्लिम भाई उन गरीबों की मदद कर रहे हैं अपने कमाये पैसे में से उनका हिस्सा निकालकर दे रहे हैं.