शिक्षाविद डॉ करमा उरांव को कांग्रेस नेता बंधु तिर्की, राजद व आजसू प्रमुख सुदेश महतो ने ऐसे दी श्रद्धांजलि
झारखंड प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य प्रवक्ता डॉ मनोज कुमार ने शिक्षाविद डॉक्टर करमा उरांव के असामयिक निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है. बंधु तिर्की ने कहा कि डॉ करमा उरांव ने न सिर्फ आदिवासियों की आवाज बुलंद की बल्कि मूलवासी, सदान और झारखंडियों की आवाज को पूरी दुनिया में अद्भुत पहचान दी.
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रांची: झारखंड के पूर्व मंत्री व कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने कहा है कि प्रकांड विद्वान, प्रखर शिक्षाविद और सफल नेतृत्वकर्ता डॉ करमा उरांव का निधन राज्य के लिए अपूरणीय क्षति है. इसकी भरपायी नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि रांची विश्वविद्यालय के पूर्व डीन और मानवशास्त्र विभागाध्यक्ष के रूप में उन्होंने रांची विश्वविद्यालय को एक नयी दिशा दी. अलग झारखंड राज्य के निर्माण के पहले से लेकर झारखंड के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक जागरण में भी डॉ उरांव का अतुलनीय योगदान है और इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.
श्री तिर्की ने कहा कि डॉ करमा उरांव ने न सिर्फ आदिवासियों की आवाज बुलंद की बल्कि मूलवासी, सदान और झारखंडियों की आवाज को पूरी दुनिया में अद्भुत पहचान दी. विशेष रूप से सरना धर्म कोड, झारखंड के सांस्कृतिक उन्नयन, ज़मीनी मामले विशेषकर सीएनटी एक्ट के मामले में वे बेहद संवेदनशील थे और मुखरता से अपनी बातों को रखते थे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डॉ उरांव ने अनेक शैक्षणिक अधिवेशनों में झारखंड के शिक्षाविद के रूप में भाग लिया. डॉ उरांव का जीवन हमें इस बात की प्रेरणा देता रहेगा कि शैक्षणिक उपलब्धि के बलबूते कोई भी व्यक्ति ना केवल अतुलनीय प्रदर्शन कर सकता है बल्कि अपने प्रदेश और समाज को भी ऊंचा उठाने में अपना योगदान दे सकता है.
झारखंड प्रदेश राष्ट्रीय जनता दल के मुख्य प्रवक्ता डॉ मनोज कुमार ने शिक्षाविद डॉक्टर करमा उरांव के असामयिक निधन पर गहरी संवेदना व्यक्त की है. उनका निधन अत्यंत दुखदाई और पीड़ादायक है. वे एक मुखर वक्ता थे. झारखंड के ज्वलंत मुद्दों पर मुखर रहते थे. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें.
झारखंड के पूर्व उपमुख्यमंत्री एवं आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने प्रख्यात शिक्षाविद् डॉ करमा उरांव के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वे आदिवासी समाज के उत्थान तथा झारखंडी सभ्यता, संस्कृति एवं परंपराओं के संरक्षण एवं संवर्धन को लेकर हमेशा समर्पित एवं प्रयत्नशील रहे. वे अपने आप में एक संस्था थे. झारखंड की समृद्ध संस्कृति को आगे बढ़ाने और आदिवासियों की पहचान बनाए रखने के लिए अंतिम सांस तक लड़ते रहे. उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता.