लोकसभा चुनाव में मतदान के लिए तारीखों के ऐलान के साथ ही अधिकारियों-कर्मचारियों ने चुनावी ड्यूटी लगने से खुद को बीमार बताकर लिस्ट से नाम कटवाने के लिए बड़े पैमाने पर आवेदन दिया था. ऐसे 423 आवेदन सिविल सर्जन, रांची कार्यालय को प्राप्त हुए थे. मेडिकल बोर्ड उसकी पड़ताल करती, इसके पहले ही तकरीबन 90% आवेदनकर्ता मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश ही नहीं हुए. इधर, चुनावी कार्य के लिए प्रशिक्षण शुरू हो गया है. बोर्ड के समक्ष मंगलवार तक 42 ओवदनकर्ता ही पेश हुए. इन आवेदकों में सबसे ज्यादा हृदय रोग से गंभीर रूप से पीड़ित, दिल की सर्जरी करा चुके लोग, किडनी रोग से पीड़ित और दिव्यांग शामिल हैं. इसमें खुद को पेट दर्द रहने, अनिद्रा रोग से पीड़ित, बीपी, शुगर जैसे बीमारी से ग्रस्त बताने वाले मरीज सिरे से गायब हो गये. जानकारी के मुताबिक, लोकसभा चुनाव को देखते हुए बड़ी संख्या में चुनाव ड्यूटी में लगाये गये कर्मियों ने प्राइवेट अस्पतालों के अलावा प्राइवेट क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टरों से पुराने मेडिकल फिटनेस और झूठी जांच रिपोर्ट बनायी, ताकि चुनाव में ड्यूटी से बचा जा सके.

उपायुक्त की सलाह पर मेडिकल बोर्ड का गठन :

अधिकारियों-कर्मचारियों द्वारा बड़ी संख्या में इस तरह के आवेदनों का अंबार लगने के बाद उपायुक्त ने जांच के लिए मेडिकल बोर्ड बनाने की सिफारिश की थी. इसके बाद जांच के लिए सिविल सर्जन ने सात सदस्यीय बोर्ड का गठन किया है. इसके तहत अगर कोई भी व्यक्ति आवेदन करता है, तो उस पर निर्णय लेने से पहले उसे मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होना पड़ेगा. बोर्ड स्वास्थ्य संबंधी जांच करेगा. मेडिकल बोर्ड से ग्रीन सिग्नल मिलने पर वह चुनाव ड्यूटी से हट पायेंगे.