Jharkhand Weather: झारखंड में अगले दो दिनों तक कड़ाके की ठंड, पश्चिमी विक्षोभ 10 जनवरी से होगा सक्रिय
धनबाद, नारायण चंद्र मंडल: झारखंड में कुड़मी समाज की जो स्थिति आज है, वह 60 के दशक में नहीं थी. पूरा समाज सांघा प्रथा (पत्नी परित्याग), बाल-विवाह, बहु-विवाह, अशिक्षा, दहेज प्रथा, शराबखोरी आदि से जूझ रहा था. चतुर लोग झांसा देकर इनसे उत्पादित अनाज ले लेते थे. महाजनों व गैरउत्पादक वर्ग के चंगुल से यह समाज उबर नहीं पा रहा था. इसी समाज से होने के कारण बिनोद बाबू इन सारी चीजों से बारीकी से अवगत थे. असमान विकास व समाज के हालात देख उन्होंने लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया.
कुड़मी जाति के कुछ पढ़े-लिखे लोगों से मिल कर एक संगठन बनाया. नाम रखा गया शिवाजी समाज. इसके पीछे तर्क था कि शिवाजी महाराज के वंशज है कुड़मी समाज. संगठन की शुरुआत किस तारीख को हुई, इसका तो सटीक प्रमाण नहीं है, लेकिन बुजुर्ग सामाजिक कार्यकर्ताओं के अनुसार इसकी पहली बैठक बिनोद बाबू ने आम बागान, सरायढेला में बलियापुर के लोबिन महतो, मानटांड़ के टेकलाल महतो, गोविंदपुर के शत्रुघ्न महतो, सरायढेला के शांतिराम महतो आदि के साथ मिल कर की. अगली बैठक धोबाटांड़, धनबाद में हुई.
जमीन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ताओं का सहयोग उन्हें मिलता रहा. तोपचांची के सिंहडीह में छह अप्रैल 1969 को वृहत बैठक की गयी, जिसमें डुमरी के चुड़ामन महतो व शिवा महतो, धनबाद के जादू महतो, भेलाटांड़ के योधाराम महतो, चंदनकियारी सियालजोरी के सीताराम महतो जैसे लोग संगठन से जुड़े. फिर तोपचांची के मानटांड़ मैदान में शिवाजी समाज का पहला सम्मेलन हुआ. इसमें कोयलांचल के अलावा हजारीबाग, गिरिडीह व कोल्हान के कुड़मी समाज के लोग जुटे.
सम्मेलन में बिनोद बाबू अध्यक्ष व टेकलाल महतो महासचिव चुने गये. इसके बाद शाखा कमेटियों का गठन कर सबसे पहले अशिक्षा को दूर करने के लिए रात्रि पाठशाला चलायी जाने लगी. गांवों में एक्शन कमेटी बनायी गयी. अगर कोई पत्नी त्याग करता था, दहेज लेता था या फिर 18 साल से पहले बेटी या बेटा की शादी कराता था, तो उसे कमेटी खुद सजा देती थी.