Exclusive: महात्मा गांधी और राजेंद्र बाबू द्वारा खुलवाए 603 स्कूल कहां गए, ढूंढ रहा रांची का आदिम जाति सेवा मंडल
साल 1948 में शुरू हुए इस संस्थान की वर्तमान स्थिति यह है कि इसके पास केवल एक आश्रम है और वो 603 स्कूल कहां गए किसी को नहीं पता. आइए जानते है पूरा मामला कि आखिर रांची के निवारणपुर में स्थित आदिम जाति सेवा मंडल का क्या है दावा और वह 603 स्कूल-हॉस्टल कहां गायब हो गए…
![an image](https://pkwp184.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/04/Picnic-32-1024x576.png)
Table of Contents
Adim Jati Sewa Mandal: महात्मा गांधी और राजेंद्र प्रसाद की पहल पर झारखंड में कुल 603 स्कूल बनाए गए जिसका काम आदिवासी लोगों को शिक्षित करना था. लेकिन, वो स्कूल अभी कहां है ये किसी को पता नहीं है. इसकी तलाश रांची के निवारणपुर स्थित आदिम जाति सेवा मंडल की ओर से की जा रही है लेकिन अभी तक कुछ भी हाथ नहीं लगा है. इन स्कूलों के संबंधित कोई भी दस्तावेज कागजी रूप में इस संस्थान के पास नहीं है. साल 1948 से संचालित आदिम जाति सेवा मंडल के पास एक वक्त 603 स्कूल और हॉस्टल थे जिसमें आदिवासी बच्चे पढ़ते है और रहते थे, लेकिन आज इनके पास निशानी के तौर पर केवल आश्रम है जहां करीब दो दर्जन बच्चे रहते है और कुछ वर्कर्स स्कूल के उन दस्तावेजों को खोज रहे है.
Adim Jati Sewa Mandal: रांची के आरोग्य भवन पर भी इनका दावा!
रांची स्थित आदिम जाति सेवा मंडल के सदस्य विकास कुमार सिन्हा ने बातचीत के क्रम में बताया कि रांची में भी कई ऐसे शैक्षणिक भवन है जिसका निर्माण उनके संस्थान के द्वारा करवाया गया था. अयोग्य भवन स्थित आदिवासी विकास केंद्र पर भी मंडल की ओर से दावा किया जाता है. साथ ही रांची के करमटोली चौक स्थित आदिवासी हॉस्टल को भी संस्थान के लोग उनके द्वारा निर्मित बताते है. इतना ही नहीं, उनका कहना है कि इस हॉस्टल का नाम पहले यदुवंश आदिवासी छात्रावास था जिसे बाद सरकारी कल्याण विभाग द्वारा चलाया जाने लगा और इसका नाम भी बदल दिया गया.
Adim Jati Sewa Mandal: ललित प्रसाद विद्यार्थी के किताब में है जिक्र
संबंधित व्यक्ति ने जानकारी के क्रम में यह भी बताया कि प्रसिद्ध लेखक ललित प्रसाद विद्यार्थी ने अपनी एक किताब में इस बात का जिक्र किया था कि करीब 603 स्कूल और हॉस्टल संस्थान की ओर से चलाई जाती है. साल 1977 में प्रकाशित द पीजेंट ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के चौथे चैप्टर में उन्होंने इस बात का जिक्र किया था कि आदिम जाति सेवा मंडल संस्थान का मुख्यालय रांची में है और आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए काम करती है. एक गैर सरकारी संस्थान आदिम जाति सेवा मंडल (Adim Jati Sewa Mandal), आदिम जाति सेवक संघ और आदिवासी विकास केंद्र का भी जिक्र किताब में देखने को मिला है.
क्या Adim Jati Sewa Mandal सही में चलाते थे 603 हाईस्कूल-हॉस्टल?
ऊपर लिखा सवाल केवल हमारा नहीं है. यह हर उस व्यक्ति के द्वारा पूछा जाने वाला सवाल है जिसके सामने यह दावा किया जाता है. आश्रम के संबंधित व्यक्ति के बात करने पर यह जानकारी मिली कि 603 हाईस्कूल-हॉस्टल के प्रमाण की कॉपियां अभी उनके पास उपलब्ध नहीं है लेकिन उसकी तलाश जारी है. उनका कहना था कि इस संस्थान से संबंधित कई दस्तावेज पहले मिले थे जिसमें इस बात का दावा किया गया था कि 600 के अधिक हाईस्कूल और हॉस्टल आदिम जाति सेवा मंडल (Adim Jati Sewa Mandal) के द्वारा चलाए जाते थे.
‘शिक्षा के बाद रोजगार पर किया था काम’
विकास कुमार सिन्हा ने यह भी जानकारी साझा की कि ना केवल स्कूल और हॉस्टल बल्कि इसके सफल स्थापना के बाद संस्थान ने कई कौशल विकास कोर्स की भी शुरुआत की जिससे यहां के आदिवासी समुदाय को शिक्षा के साथ-साथ रोजगार भी उपलब्ध कराया जा सके. विकास सिन्हा ने बताया कि संस्थान की तरफ से बीएड कॉलेज भी खोली गए थे और अलग-अलग आईटीआई कोर्स की पढ़ाई भी कराई जा रही थी. लेकिन, अब ये कहां है इसका कोई भी जिक्र नहीं है और संस्थान के पास ना ही इससे संबंधित कोई दस्तावेज या पुख्ता जानकारी है.
‘सरकार ने उन स्कूलों को लिया अपने अधीन’, संस्थान का दावा
हालांकि, इन तमाम खोज-पड़ताल के बीच संस्थान का यह भी दावा है कि साल 1970 के बाद जब बिहार सरकार की शिक्षा के प्रति मुहिम चली और अधिक से अधिक शैक्षणिक संस्थान खोलने की कोशिश में जुटे तो उन्होंने नए भवन का निर्माण ना करते हुए उन स्कूलों को अपने अधीन ले लिया जो आदिम जाति सेवा मंडल के द्वारा बनाए गए थे. साल 1975 के बाद से ये सभी स्कूल सरकार के द्वारा संचालित किए जाने का भी दावा किया गया है. हालांकि, इस दावे के एवज में कोई भी दस्तावेज संस्थान के पास नहीं है.
करमटोली चौक स्थित आदिवासी हॉस्टल का दावा
संस्थान के सदस्य विकास सिन्हा ने कहा कि उस वक्त संस्थान के जितने भी वर्कर स्कूलों में पढ़ाई कराते थे उन्हें सरकार ने भी पढ़ाने का जिम्मा दिया इसलिए संस्थान ने सरकार को ये स्कूल सौंप दिए. विकास कुमार ने यह भी बताया कि रांची के करमटोली चौक स्थित आदिवासी हॉस्टल भी इसी सेवा मंडल के द्वारा बनाया गया था. उस वक्त इसका नाम यदुवंश आदिवासी छात्रावास था लेकिन, जब इसे सरकारी कल्याण विभाग द्वारा चलाया जाने लगा तब इसका नाम भी बदल दिया गया. संस्थान के द्वारा रांची, चतरा, खूंटी समेत कई जिलों में स्थित स्कूल और हॉस्टल को इनके द्वारा निर्मित बताया जाता है जिसे बाद में सरकार ने अपने अधीन ले लिया.
Adim Jati Sewa Mandal की पहली गठित समिति के सदस्यों के नाम
विभिन दावों के बीच यह अभी तक पुख्ता रूप से नहीं पता चल पाया है कि आखिर वो 603 स्कूल कहां गए. अगर सरकार ने उसे अपने अधीन लिया तो उससे संबंधित दस्तावेज भी संस्थान के पास नहीं है. लेकिन, संस्थान (Adim Jati Sewa Mandal) का मानना है कि यह हमारी उपलब्धि है कि हमारा संस्थान जिस उद्देश्य से बनाया गया उसे बढ़ाने के लिए सरकार ने हमसे लिया और अब बच्चों को सरकारी सुविधा मिल रही है और राज्य के आदिवासी लोगों को शिक्षा और रोजगार मिल पा रहा है. भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद इस पूरे संस्थान के पहले अध्यक्ष रहे. इस वक्त जो कमिटी बनाई गई थी उसमें ए वी ठक्कर समेत कई लोग मौजूद थे.कहा जाता है कि महात्मा गांधी जब रामगढ़ के अधिवेशन में शामिल होने आए थे तब उन्होंने यहां के टाना भगतों से मुलाकात की थी और समाज को शिक्षित बनाने के लिए जागरूक करने के लिए कहा था. उसी सुझाव के बाद इस संस्थान का निर्माण किया गया था जिसकी पहली समिति में कुल 9 लोग प्रमुख रूप से शामिल थे.
- अध्यक्ष : राजेंद्र प्रसाद
- उपाध्यक्ष : ए वी ठक्कर
- महासचिव : नारायण जी
- सचिव : भैया राम मुंडा
- कोषाध्यक्ष : गौरी शंकर डालमिया
- सदस्य : राज कुमार लाल
- सदस्य : देवेन्द्र नाथ सामंत
- सदस्य : बरियार हेंब्रम
- सदस्य : बोनिफास लकड़ा