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न जमीन, न रहने लायक घर, नदी का पानी पी रहे हैं, नरक की जिंदगी जी रहे हैं रायडीह प्रखंड के बिरहोर जाति के लोग

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  • पीबो पंचायत का हरिजन कॉलोनी 40 साल पहले बेचिरागी गांव था, बिरहोर जनजाति आकर बसे तो जनजीवन शुरू हुई

  • जंगल-जंगल भटकते रहे. कई परिवार बिछड़ गये. 10 बिरहोर परिवार भटकते हुए पीबो पंचायत के जंगल में आकर बस गये

  • पीबो जंगल में पहले से हरिजन कॉलोनी थी. कॉलोनी में कोई नहीं रहता था. उसी कॉलोनी में भटक कर पहुंचे बिरहोर रहने लगे.

गुमला : न जमीन है. न रहने लायक घर. तन ढकने के लिए ठीक ढंग का कपड़ा भी नहीं है. प्यास लगी तो नदी का पानी पीते हैं. नरक की जिंदगी जी रहे बिरहोर जनजाति के लोग. हम बात कर रहे हैं, रायडीह प्रखंड की पीबो पंचायत के जंगल में बसे बिरहोर टोंगरी का. आज जिसे हम बिरहोर कॉलोनी कहते हैं. 40 साल पहले यह हरिजन कॉलोनी थी. परंतु यह गांव बेचिरागी था.

हरिजन कॉलोनी के नाम पर 10 घर बने थे, जो जर्जर हो गये हैं. 40 साल पहले इस हरिजन कॉलोनी में भटकते हुए बिरहोर जनजाति के 10 परिवार आकर बस गये. बाद में इस गांव का नाम बिरहोर टोंगरी कहलाया. बिरहोर जनजाति के लोग कभी इस जंगल तो कभी उस जंगल में लकड़ी का घर बना कर रहते थे.

भटकते हुए ये लोग पीबो पंचायत के जंगल में पहुंचे और स्थायी रूप से बस गये. इसके बाद से यहां के स्थायी वासी हो गये हैं. बिरहोर टोंगरी जरूर आबाद हो गया. बेचिरागी का अभिशाप भी खत्म हुआ. परंतु सरकार की तरफ से जो सुविधा मिलनी चाहिए. वह सुविधा नहीं मिली. जबकि यह जनजाति विलुप्त होने के कगार पर है. हालांकि बिरहोरों की सुने तो ये लोग अक्सर 45 से 50 परिवार एक साथ जंगलों में भटकते थे और जहां पीने, रहने व ऊपरी चट्टान मिलता था. वहां बस जाते थे. परंतु कई परिवार जंगलों में भटकने के दौरान बिछड़ते गये और आज मात्र 10 परिवार बचे हैं जो पीबो जंगल में संकटों को जूझते हुए जी-खा रहे हैं.

नदी का पानी पीते हैं

प्रशासन ने गांव में तीन साल पहले सोलर जलमीनार बनायी. कुछ दिनों तक नल से पानी लोगों को मिला. परंतु बारिश में वज्रपात हुआ. जिससे मशीन जल गयी. तब से जलमीनार बेकार है. लोग पुन: नदी का पानी पीने लगे. बारिश के दिन में पानी गंदा होता है. मजबूरी में उसी पानी से खाना बनाते हैं और पीते भी हैं. गर्मी के दिनों में नदी सूख जाता है तो पझरा पानी पीते हैं.

  • पीबो पंचायत का हरिजन कॉलोनी 40 साल पहले बेचिरागी गांव था, बिरहोर जनजाति आकर बसे तो जनजीवन शुरू हुई

  • जंगल-जंगल भटकते रहे. कई परिवार बिछड़ गये. 10 बिरहोर परिवार भटकते हुए पीबो पंचायत के जंगल में आकर बस गये

  • पीबो जंगल में पहले से हरिजन कॉलोनी थी. कॉलोनी में कोई नहीं रहता था. उसी कॉलोनी में भटक कर पहुंचे बिरहोर रहने लगे.

गुमला : न जमीन है. न रहने लायक घर. तन ढकने के लिए ठीक ढंग का कपड़ा भी नहीं है. प्यास लगी तो नदी का पानी पीते हैं. नरक की जिंदगी जी रहे बिरहोर जनजाति के लोग. हम बात कर रहे हैं, रायडीह प्रखंड की पीबो पंचायत के जंगल में बसे बिरहोर टोंगरी का. आज जिसे हम बिरहोर कॉलोनी कहते हैं. 40 साल पहले यह हरिजन कॉलोनी थी. परंतु यह गांव बेचिरागी था.

हरिजन कॉलोनी के नाम पर 10 घर बने थे, जो जर्जर हो गये हैं. 40 साल पहले इस हरिजन कॉलोनी में भटकते हुए बिरहोर जनजाति के 10 परिवार आकर बस गये. बाद में इस गांव का नाम बिरहोर टोंगरी कहलाया. बिरहोर जनजाति के लोग कभी इस जंगल तो कभी उस जंगल में लकड़ी का घर बना कर रहते थे.

भटकते हुए ये लोग पीबो पंचायत के जंगल में पहुंचे और स्थायी रूप से बस गये. इसके बाद से यहां के स्थायी वासी हो गये हैं. बिरहोर टोंगरी जरूर आबाद हो गया. बेचिरागी का अभिशाप भी खत्म हुआ. परंतु सरकार की तरफ से जो सुविधा मिलनी चाहिए. वह सुविधा नहीं मिली. जबकि यह जनजाति विलुप्त होने के कगार पर है. हालांकि बिरहोरों की सुने तो ये लोग अक्सर 45 से 50 परिवार एक साथ जंगलों में भटकते थे और जहां पीने, रहने व ऊपरी चट्टान मिलता था. वहां बस जाते थे. परंतु कई परिवार जंगलों में भटकने के दौरान बिछड़ते गये और आज मात्र 10 परिवार बचे हैं जो पीबो जंगल में संकटों को जूझते हुए जी-खा रहे हैं.

नदी का पानी पीते हैं

प्रशासन ने गांव में तीन साल पहले सोलर जलमीनार बनायी. कुछ दिनों तक नल से पानी लोगों को मिला. परंतु बारिश में वज्रपात हुआ. जिससे मशीन जल गयी. तब से जलमीनार बेकार है. लोग पुन: नदी का पानी पीने लगे. बारिश के दिन में पानी गंदा होता है. मजबूरी में उसी पानी से खाना बनाते हैं और पीते भी हैं. गर्मी के दिनों में नदी सूख जाता है तो पझरा पानी पीते हैं.

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