लीड : धावाडंगाल पंचायत: विकास की आस में तरसते गांव

धावाडंगाल पंचायत: विकास की आस में तरसते गांव

By Prabhat Khabar News Desk | December 26, 2024 8:16 PM
an image

अनदेखी. सड़क है बदहाल, ग्रामीणों को पीने के लिए शुद्ध पेयजल भी मयस्सर नहीं अभिषेक, काठीकुंड पाकुड़िया और गोपीकांदर प्रखंड से सटे काठीकुंड प्रखंड के धावाडंगाल पंचायत में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यह पंचायत, जिसमें अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ी जनजाति के समुदायों का बसेरा है, आज भी खराब सड़कों और पेयजल की किल्लत जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. भालसुंगिया, चिरूडीह, दलदली, छोटा फुलझिंझरी, बड़ा फूल झिंझरी, सुग्गापहाड़ी, कुसुमघाटी, धावाडंगाल, कुमीरकट्टा, मोहुलपहाड़ी, जामचुआं, रानीपहाड़ी, तिनसुलिया, मुसाबिल और तालडीह जैसे गांवों की स्थिति बेहद चिंताजनक है. इन गांवों तक विकास की गाड़ी तभी पहुंचेगी, जब बेहतर सड़कों और शुद्ध पेयजल की सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी. मोहुलपहाड़ी: पथरीली सड़कों पर चलती जिंदगी मोहुलपहाड़ी गांव के लोग सड़क की बदहाली से सबसे ज्यादा परेशान हैं. पहाड़िया और आदिवासी समुदाय के परिवारों वाले इस गांव में कुटरा टोला के 15 से अधिक परिवार चट्टानों जैसे बड़े-बड़े बोल्डरों को ही सड़क मानकर चलने को मजबूर हैं. इन पथरीली सड़कों पर गिरने से गंभीर चोटें लगना आम बात है. पेयजल की समस्या यहां और भी विकराल है. गर्मियों में इकलौता चापानल जवाब दे देता है, और ग्रामीणों को झरने का पानी पीना पड़ता है. यह पानी स्वास्थ्य के लिए कितना घातक हो सकता है, इसकी कल्पना ही की जा सकती है. — चिरूडीह प्राणिक टोला: पानी की बूंद-बूंद को तरसते लोग चिरूडीह के प्राणिक टोला के लगभग 25-30 मकान और सैकड़ों की आबादी पानी के लिए एकमात्र चापानल पर निर्भर है. जब चापानल जवाब दे जाता है, तो ग्रामीण खेतों में बने कुएं से पानी लाते हैं. यह कुआं गांव से काफी दूर है और वहां तक पहुंचने का रास्ता भी बेहद खतरनाक है. यहां के कुएं की हालत ऐसी है कि उसमें सांप तैरते हुए देखे जा सकते हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां के लोगों के लिए यह कुआं जीवन देने के बजाय जीवन के लिए खतरा बन चुका है. — कुसुमघाटी से छोटा फुलझिंझरी: बदहाल सड़कें और कठिन रास्ता कुसुमघाटी से छोटा फुलझिंझरी बाजार तक पहुंचने के लिए केवल 2 किलोमीटर का सफर तय करना होता है, लेकिन कच्ची और खराब सड़कों के कारण यह रास्ता कठिन और थका देने वाला बन जाता है. ग्रामीणों को काठीकुंड बाजार तक पहुंचने के लिए छह किलोमीटर की पथरीली सड़क पर चलना पड़ता है. बीमार लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता, क्योंकि एंबुलेंस गांव तक पहुंच ही नहीं पाती. पेयजल के लिए यहां के लोग भीषण संकट से जूझ रहे हैं. गर्मियों में इकलौता कुआं सूख जाता है, जिससे जीवन और कठिन हो जाता है. इन गांवों के भी नहीं सुधरे हालात सुग्गापहाड़ी, केंदपहाड़ी, मुसाबिल और अन्य गांवों की भी स्थिति कोई अलग नहीं है. इन इलाकों में पक्की सड़कें अब तक नहीं बन सकी हैं. बेहतर सड़क और शुद्ध पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान किए बिना इन गांवों का विकास असंभव है. सरकार और प्रशासन को इन गांवों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कदम उठाने की जरूरत है. तभी इन दुर्गम इलाकों में विकास की रोशनी पहुंचेगी और यहां के लोगों का जीवन बेहतर हो सकेगा.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

Exit mobile version