पांच वर्षों से अधूरा है चतरा का कुंदा कस्तूरबा विद्यालय भवन, दूसरे भवन में क्लास का संचालन किया जा रहा है

भवन के अभाव में बच्चियों को बीआरसी कार्यालय व अन्य भवन में पठन-पाठन किया जा रहा है. बच्चियों को पढ़ाई करने व रहने में काफी दिक्कत हो रही है. विद्यालय में छात्राओं की संख्या 350 है. सबसे अधिक परेशानी छात्राओं को रात्रि विश्राम के दौरान होती है. विद्यालय में कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई होती है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 25, 2021 2:05 PM
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चतरा : बच्चियों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2005 में कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की स्थापना की गयी थी. लेकिन 15 वर्ष बाद भी प्रखंड में विद्यालय का अपना भवन नहीं बन पाया है. संवेदक की लापरवाही के कारण आज तक कस्तूरबा विद्यालय का भवन अधूरा है. भवन का निर्माण 3.86 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा था. निर्माण कार्य 2016 में शिक्षा विभाग द्वारा शुरू किया गया था, लेकिन भवन आधा अधूरा बना कर छोड़ दिया गया. दो वर्षों से निर्माण कार्य बंद है.

भवन के अभाव में बच्चियों को बीआरसी कार्यालय व अन्य भवन में पठन-पाठन किया जा रहा है. बच्चियों को पढ़ाई करने व रहने में काफी दिक्कत हो रही है. विद्यालय में छात्राओं की संख्या 350 है. सबसे अधिक परेशानी छात्राओं को रात्रि विश्राम के दौरान होती है. विद्यालय में कक्षा छह से 12वीं तक की पढ़ाई होती है.

क्या कहती हैं छात्रा :

कक्षा आठ की छात्रा रेखा कुमारी ने कहा कि एक ही कमरा में कई कक्षाएं चलती है, जिसके कारण सही से पढ़ाई नहीं कर पाती हूं. रहने व सोने में भी परेशानी होती है. नीतू कुमारी ने कहा कि एक कमरा में कई छात्राओं के साथ रहने से काफी शोर होता है, जिससे कारण अच्छी से पढ़ाई नहीं कर पाती हूं.

बच्चियों के अभिभावक अभिभावक :

बेसरा गांव के चुरामन दास ने कहा कि भवन के अभाव में बच्चियों को रहने में काफी परेशानी होती है. एक साथ कई कक्षा संचालन होने से उनकी पढ़ाई सही ढंग से नहीं हो पाती है. चाया गांव के कैलाश यादव ने बताया कि विद्यालय का अपना भवन नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है. बच्चियों को पढ़ाई करने व रहने में दिक्कत होती है.

क्या कहती है वार्डन :

प्रभारी वार्डन नूतन कच्छप ने बताया कि भवन के अभाव में बच्चियों का पठन-पाठन प्रभावित हो रहा है. उन्हें रहने में भी काफी दिक्कत हो रही है. दूसरे भवन में विद्यालय का संचालन किया जा रहा है. जगह के अभाव में छात्राओं को खेलने कूदने में परेशानी होती है.

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