मधेपुरा: लालपुर में टूटा नहर का बांध, 40 एकड़ में लगी फसल हुई बर्बाद
भागलपुर. बढ़ी दाढ़ी, सिर पर केसरिया पगड़ी बांधे और हाथ में खुरपी लिये बाबा की नगरी की ओर मस्त चाल में चले जा रहे एक बम पर सबकी निगाहें पड़ रही थी. हर किसी को उनके बारे में जानने की जिज्ञासा बढ़ रही थी. जिज्ञासा इसलिए भी कि इस रास्ते पर इकलौते यही बम चल रहे थे, जिनके पास गंगा जल नहीं था. अचानक उनके पांव में कुछ चुभता है और उकड़ू बैठ कर खुरपी से कच्चा कांवरिया पथ की बालू-मिट्टी हटाने लगते हैं. दोनों हाथों से बालू-मिट्टी से काफी संख्या में कंकड़ निकाल कर किनारे के गड्ढे में फेंकते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं.
सुलतानगंज में दिखने लगे भक्ति के कई रंग
आगे रास्ते पर पॉलीथिन, पानी की चिपकी हुई बोतल देखते ही उठा कर फेंक देते हैं. यह सिलसिला आगे भी चलता रहता है. कोई उन्हें पागल, कोई वैरागी, तो कोई सच्चा साधक बता रहे थे. उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं था कि कौन उसे क्या कह रहा है या समझ रहा है. बस अपनी मस्ती में अपना काम करते हुए चले जा रहे थे. इनसे जब बात की, तो पता चला कि ये नंदन चक्रवर्ती हैं और धनबाद (झारखंड) के पतरास के रहनेवाले हैं.
काफी कुरेदने पर बताया कि यह खुरपी बनवा कर इसकी पूजा करवायी है. वर्ष 2016 से हर बार वे सुलतानगंज से देवघर जाते हैं और यह काम करते रहते हैं. उनका मानना था कि बम के पांव में कुछ नहीं चुभे और गंदगी पर पांव न पड़े, इसलिए यह काम करते हैं. बम की सेवा को ही वे सबसे बड़ी पूजा मानते हैं. साथ में चल रहे कुंदन कुमार रवानी उनका जल लेकर जा रहे थे.
मो मोसिम की पेंटिंग वाली टी-शर्ट से सज रहे डाक बम
दुनिया का सबसे लंबा श्रावणी मेला की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां सभी धर्मों के लोग एक साथ मिल कर काम करते हैं. उद्देश्य सिर्फ यह होता है कि बाबा नगरी की यात्रा पर जानेवाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं हो. ऐसे ही लोगों में एक मो मासिम सुलतानगंज सीढ़ी घाट पर एक दुकान में पेंट करते दिखे. वे डाक बम की टी-शर्ट पर बम का नाम, मोबाइल नंबर आदि पेंट कर रहे थे. इसके बदले 20 से 50 रुपये तक चार्ज ले रहे थे. उनका कहना था कि यह उनका खानदानी पेशा है. पिता मो शनीफ ने यह काम 40 वर्ष पहले शुरू किया था. अब भाई मो वसीम के साथ यह काम करते हैं.