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Gaya News : एएनएमएमसीएच में हर दिन पहुंच रहे ब्रेन स्ट्रोक के 10 मरीज

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Gaya News : एएनएमएमसीएच में इन दिनों ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है. हर दिन यहां 10-12 मरीज इससे शिकार होकर पहुंच रहे हैं. देरी से अस्पताल पहुंचने के चलते आधे मरीजों की मौत हो जा रही है.

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गया. एएनएमएमसीएच में इन दिनों ब्रेन स्ट्रोक के मरीजों की संख्या काफी बढ़ गयी है. हर दिन यहां 10-12 मरीज इससे शिकार होकर पहुंच रहे हैं. देरी से अस्पताल पहुंचने के चलते आधे मरीजों की मौत हो जा रही है. अस्पताल से मिली जानकारी के अनुसार, पिछले आठ दिनों में 80 से अधिक ब्रेन स्ट्रोक के शिकार मरीज यहां भर्ती कराये गये हैं. इसमें 35-36 की मौत हो गयी है. इसका मुख्य कारण रहा है कि समय पर मरीजों को अस्पताल नहीं लाया जाना. अस्पताल में इस बीमारी से निबटने के लिए दवा व डॉक्टरों की व्यवस्था ढंग की दिखती है. अस्पताल पहुंचने पर मरीज को तुरंत ही इलाज मिलने लगता है. इस तरह के मरीजों के लिए यहां इमरजेंसी में आइसीयू की व्यवस्था है. बाहर से लोगों को दवा तक खरीद कर नहीं लाना पड़ता है. अस्पताल उपाधीक्षक एनके पासवान ने बताया कि सर्दियों में तापमान में गिरावट के कारण शरीर की गर्मी को बनाये रखना मुश्किल होने लगता है. इससे खून गाढ़ा होने के चलते रक्त प्रवाह में दिक्कत आने लगती है और ये ब्रेन स्ट्रोक का कारण बन जाता है. उन्होंने बताया कि हाइ ब्लड प्रेशर व मधुमेह से जूझ रहे लोगों को अधिक खतरा होता है. ठंड शुरू हाेते ही इसके शिकार मरीजों की संख्या बढ़ जाती है. उन्होंने कहा कि ठंड में बुजुर्ग महिला-पुरुष का हर हाल में सावधान रहने की जरूरत है. सबसे अधिक शिकार 50 से अधिक उम्र वाले ही हो रहे हैं.

क्या है ब्रेन स्ट्रोक

जानलेवा बीमारियों के बीच एक और खतरनाक बीमारी में ब्रेन स्ट्रोक को माना जाता है. इसे ब्रेन अटैक भी कहते हैं. मस्तिष्क तक ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने वाली नसें ब्लॉक हो जाती हैं या फट जाती हैं. ऐसे में दिमाग की कोशिकाएं फंक्शन नहीं कर पातीं या नष्ट होने लगती हैं. इस तरह से उन कोशिकाओं से नियंत्रित होने वाला शरीर का हिस्सा प्रभावित होता है. उच्च रक्तचाप, हृदयरोग, डाइबिटीज और धूम्रपान आदि पक्षाघात ( लकवा ) का जोखिम पैदा करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारण हैं. इनके अलावा स्ट्रोक अल्कोहल का अत्यधिक सेवन, उच्च रक्त कॉलेस्टेराल स्तर, नशीली दवाइयों का सेवन,आनुवांशिक या जन्मजात परिस्थितियां भी इसके कारण माने जाते हैं. इसका इलाज समय पर नहीं होने से जान जाने का खतरा अधिक हो जाता है. इससे प्रभावित होने पर व्यक्ति के शरीर का कोई एक हिस्सा सुन्न होने लगता है और उसमें कमजोरी या लकवा जैसी स्थिति होने लगती है.

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डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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