चना, जौ, मसूर, राजमा, तीसी, उड़द जैसे महंगे अनाज की खेती का बढ़ रहा रकबा
बिहारशरीफ. जिले के किसानों को जल्द ही गिले कचरे से तैयार जैविक खाद मिलने लगेगी. डीआरडीए (जिला ग्रामीण विकास अभिकरण) द्वारा प्रत्येक गांव को स्वच्छ व समृद्ध बनाने के उद्देश्य से स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण और लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान-टू चलाया जा रहा है़ इसके तहत ग्राम पंचायत क्रियान्वयन समिति (जीपीआइसी) और वार्ड क्रियान्वयन व प्रबंधन समिति (डब्ल्यूआइएमसी) का गठन कर ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक घरों से कचरा उठाव और उसके प्रबंधन पर काम किया जा रहा है. ग्राम पंचायत स्तरीय समिति का मुखिया और वार्ड स्तरीय समिति का प्रमुख वार्ड सदस्य होते हैं. यह समिति कचरा उठाव और उसके प्रबंधन की जिम्मेदारियां उठाती हैं. गांव से संग्रहित कचरा से हानिकारक पदार्थ निकाल कर उसे जैविक खाद तैयार करने के उद्देश्य से यह समिति का गठन किया गया है. फिलहाल वर्तमान में चार प्रखंड परवलपुर के पांच, नगरनौसा के तीन, करायपरसुराय के एक और बेन प्रखंड के तीन ग्राम पंचायत क्रियान्वयन समिति गिले कचरे से जैविक खाद तैयार करने की शुरुआत कर दी है. परवलपुर प्रखंड अंतर्गत मई ग्राम पंचायत क्रियान्वयन समिति से तैयार जैविक खाद की गुणवत्ता रिपोर्ट के लिए कृषि विभाग में सैंपल भेजा गया है तथा शेष अन्य तैयार जैविक खाद की नामांकन व पैकेजिंग प्रक्रिया चल रही है. जिले में स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण ओर लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान-टू के तहत वित्तीय वर्ष 2020-21 में ग्रामीण क्षेत्रों में कूड़ा उठाव तथा अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई बनाने की पहल शुरू किया गया था. एक अवशिष्ट प्रसंस्करण इकाई के निर्माण में लगभग 7.50 लाख रुपये खर्च किये गये हैं. अलग-अलग क्षेत्रों में अलग योजना की राशि से बनाये गये हैं, जिसका सार्थक परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है. कुल 226 ग्राम पंचायत में अवशिष्ट प्रसंस्करण इकाई बनाने का लक्ष्य तय किया गया, जिसमें अब तक 173 यूनिट बनकर तैयार हो गया है. 49 अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई निर्माणाधीन है. 222 अपशिष्ट प्रबंधक यूनिट के लिए जमीन सर्वे कार्य पूरा कर लिया गया है. फिलहाल चार प्रखंड के 12 ग्राम पंचायत में गिला कचरा से नापेड विधि से जैविक खाद तैयार होने लगी है. परवलपुर प्रखंड के पांच अरावां, चौसंडा, पिलीच, शिवनगर, नगरनौसा प्रखंड के कैला, दामोदर बर्धा, अरियामा, करायपरसुराय के कराय एवं बेन प्रखंड तीन पंचायत अकौना, मैजरा और नोहसा में भी गिले कचरे से जैविक खाद बनाने की शुरुआत हो गयी है, जिसकी बाजार में बिक्री के लिए कागजी प्रक्रिया विभाग ने शुरू कर दी है. इसके अतिरिक्त सिलाव के घोसरावां, अस्थावां, बिहारशरीफ, बिंद, इस्लामपुर व सरमेरा के कई ग्राम पंचायत क्रियान्वयन समिति भी अपने-अपने क्षेत्र में जैविक खाद निर्माण कराने की लगभग प्रक्रिया पूरी कर ली है. विभाग को उम्मीद है कि जल्द ही इन क्षेत्रों में भी जैविक खाद निर्माण की शुरुआत होने लगेगी. नाडेप विधि से 45 से 50 दिनों में तैयार हो रही जैविक खाद : गांव को स्वच्छ और समृद्ध बनाने के उद्देश्य से कूड़ा प्रबंधन सिस्टम पर काम किया जा रहा है. इसके लिए प्रत्येक वार्ड में एक-एक ठेला और एक-एक स्वच्छता मित्र नियुक्त किये गये हैं. वहीं पंचायत स्तर पर एक इ-रिक्शा उपलब्ध है, जिससे घर-घर से संग्रहित कचरा को संबंधित पंचायत स्तरीय अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई तक पहुंचाया जाता है. अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई में संग्रहित वाले गीला और सूखे कचरे को अलग कर दिया जाता है. सूखा कचरा प्लास्टिक, लकड़ी, धातू जैसे वस्तुओं को अलग कर दिया जाता है. सिर्फ गिले कचरे यथा- साग-सब्जी, पत्ते, फल के छिलके, अंडे के छिलके जैसे कचरों को नाडेप विधि से जैविक खाद तैयार कर रहे हैं. इसमें गोबर 100-150 लीटर पानी में घोल कर ढांचे की तह पर डाल देते हैं. आठ इंच मोटी कचरे की तह दबा-दबा कर बेड बनाते हैं. इसके बाद 30-40 किलोग्राम गोबर 100-125 लीटर पानी का घोल कचरे के ऊपर डालते हैं. तत्पश्चात लगभग 100 किलोग्राम मिट्टी को ऊपर बिछाते हैं. यह क्रिया ढांचे की ऊंचाई से 10-12 इंच ऊपर भरने तक दुहराते हैं. इस तरह 45 से 50 दिनों में जैविक खाद तैयार हो जाता है. सब्जियों की फसल के लिए साबित होंगे वरदान : कृषि विभाग के अधिकारी कुमार किशोर नंदा ने बताया कि जैविक खाद खेती, आर्थिक, स्वास्थ्य और पर्यावरण सभी दृष्टि से बेहतर हैं. इसके प्रयोग से फसल में बीमारियों और कीट प्रकोप कम होते हैं. गमलों के साथ-साथ छोटे जगहों पर उगाई जाने वाली सब्जियों के लिए यह वरदान साबित होंगे. पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यह फायदेमंद है.
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