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धन को चलाते रहो

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धन का शास्त्र समझना चाहिए. धन जितना चले, उतना बढ़ता है. समझो कि यहां हम सब लोग हैं, सबके पास सौ-सौ रुपये हैं. सब अपने सौ-सौ रुपये रख कर बैठे रहें! तो बस प्रत्येक के पास सौ-सौ रुपये रहे. लेकिन सब चलायें, चीजें खरीदें-बेचें, रुपये चलते रहें, तो कभी तुम्हारे पास हजार होंगे, कभी दस […]

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धन का शास्त्र समझना चाहिए. धन जितना चले, उतना बढ़ता है. समझो कि यहां हम सब लोग हैं, सबके पास सौ-सौ रुपये हैं. सब अपने सौ-सौ रुपये रख कर बैठे रहें! तो बस प्रत्येक के पास सौ-सौ रुपये रहे. लेकिन सब चलायें, चीजें खरीदें-बेचें, रुपये चलते रहें, तो कभी तुम्हारे पास हजार होंगे, कभी दस हजार होंगे.

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कभी दूसरे के पास दस हजार होंगे, कभी तीसरे के पास दस हजार होंगे. रुके रहते, तो सबके पास सौ-सौ होते. चलते रहें, तो यहां सौ आदमी हैं, तो सौ गुने रुपये हो जायेंगे. इसलिए अंगरेजी में रुपये के लिए जो शब्द है, वह करेंसी है. करेंसी का अर्थ होता है : जो चलती रहे, बहती रहे. धन बहे तो बढ़ता है. अमेरिका धनी है, तो उसका कुल कारण इतना है कि वह अकेला मुल्क है, जो धन के बहाव में भरोसा करता है. चकित होओगे जान कर कि उस रुपये को तो लोग रोकते ही नहीं, जो उनके पास है, उस रुपये को भी नहीं रोकते जो कल या परसों उनके पास होगा.

उससे भी इंस्टालमेंट पर चीजें खरीद लेते हैं. इसका अर्थ समझो. एक आदमी ने कार खरीद ली. पैसा उसके पास है ही नहीं. उसने लाख रुपये में कार खरीद ली. यह लाख रुपया वह चुकायेगा आनेवाले दस सालों में. जो रुपया नहीं है, वह रुपया भी उसने चलायमान कर दिया. ये लाख रुपये अभी हैं नहीं, लेकिन चल पड़े. इसने कार खरीद ली लाख की. इंस्टालमेंट पर चुकाने का वायदा कर दिया. जिसने कार बेची है, उसने लाख रुपये बैंक से उठा लिये. लाख रुपयों ने यात्रा शुरू कर दी! अमेरिका धनी है, तो करेंसी का ठीक-ठीक अर्थ समझने के कारण. भारत गरीब है, तो धन का ठीक अर्थ न समझने से.

भारत में धन का अर्थ है बचाओ! जबकि धन का सही अर्थ होता है चलाओ. जितना चलता रहे उतना धन स्वच्छ रहता है. इसलिए जो है, उसका उपयोग करो. खुद के उपयोग करो, दूसरों के भी उपयोग आयेगा. लेकिन यहां लोग, न खुद उपयोग करते हैं, न दूसरों के उपयोग में आने देते हैं! और धीरे-धीरे हमने इस बात को बड़ा मूल्य दे दिया. हम इसको सादगी कहते हैं. यह सादगी बड़ी मूढ़तापूर्ण है. दरिद्रता है. दरिद्रता का मूल आधार है. मेरा कहना है चलाओ! कुछ उपयोग करो. खरीद सको तो खरीदो. धन को दबा कर बैठे मत रहो!

– आचार्य रजनीश ओशो

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