हर चीज सुंदर है
बचपन से ही मैं हर तरह के जीव पर काफी ध्यान देता था, इसमें बहुत समय बिताता था. मैंने पाया कि रंग, ज्यामिति और कार्यकलाप की विविधता में एक नन्हे से कीड़े की बनावट भी बहुत शानदार होती है. आप किसी भी जीव को देखें, तो आप पायेंगे कि प्रकृति और क्रमिक विकास ने कितनी […]
बचपन से ही मैं हर तरह के जीव पर काफी ध्यान देता था, इसमें बहुत समय बिताता था. मैंने पाया कि रंग, ज्यामिति और कार्यकलाप की विविधता में एक नन्हे से कीड़े की बनावट भी बहुत शानदार होती है. आप किसी भी जीव को देखें, तो आप पायेंगे कि प्रकृति और क्रमिक विकास ने कितनी सुंदरता से उसका रूप संवारा है. न सिर्फ सूर्योदय या सूर्यास्त जैसी कोई बड़ी चीज, बल्कि छोटे-से-छोटे जीवों की बनावट भी बहुत सुंदर होती है.
अगर आप अंदाजा लगाते हैं कि कोई कीट अपने आकार और ऊर्जा की तुलना में कितना क्रियाकलाप करता है, तो यह साफ हो जाता है कि वह ज्यामितिय दृष्टि से संपूर्ण है और न्यूनतम संघर्ष और टकराव के साथ काम कर रहा है. अच्छी बनावट वाली हर चीज मुझे रोमांचित करती है. चाहे वह मशीन हो, इमारत हो, या कोई कीड़ा, पशु या मनुष्य. जहां तक हम इंसानों की बात है, तो जब मनुष्य आनंदित और उत्साहित होते हैं, तो हर किसी का चेहरा सुंदर लगता है. हमारे शरीर को सुंदर रखने में थोड़ी मेहनत लगती है. बहुत से लोग धरती के आकार के हो रहे हैं. जब मैं बड़ा हो रहा था, तो लगभग हम सभी लोग दुबले-पतले थे, क्योंकि हम शारीरिक रूप से काफी सक्रिय होते थे. आजकल स्कूली बच्चे काफी हद तक मोटे हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि गोल-मटोल व्यक्ति सुंदर नहीं होता है.
आप हर चीज में सुंदरता देख सकते हैं. लेकिन, जब हम तकनीकी रूप से सुंदरता की बात करते हैं, तो इसका मतलब ज्यामितिय रूप से सटीक होना होता है. जब कोई प्रणाली कम-से-कम संघर्ष के साथ काम करती है, तो उसके काम करने का तरीका सुंदर होता है. यह बात हर चीज पर लागू होती है. उदाहरण के लिए कोई गुंबद ज्यामितिय सटीकता के कारण खड़ा होता है, उसमें लगी सामग्री की मजबूती के कारण नहीं.
यही बात दूसरी इमारतों के साथ भी लागू होती है. हम हमेशा हर इमारत को ज्यामितिय दृष्टि से सटीक बनाना चाहते हैं, ताकि हमें कम सामग्री की जरूरत पड़े. विकास की प्रक्रिया में हमेशा ज्यामिति पर ध्यान दिया गया है. धरती अपनी धुरी पर इसलिए है, क्योंकि उसने एक तरह की ज्यामितिय संपूर्णता पा ली है.
– सद्गुरु जग्गी वासुदेव