साधना का लक्ष्य जीवन को उन सीमाओं से मुक्त करना है, जिनसे अभी वह घिरा हुआ है. इस संसार में हमारा आगमन साधना करने के उद्देश्य से ही हुआ है. साधना आजीवन चलनेवाली प्रक्रिया है. हमारे जीवन का प्रत्येक दिन, प्रत्येक क्षण आगे बढ़ने का अभियान है.
इस महान यात्रा के मार्ग में बाधाएं अनेक हैं, किंतु जब तक आपके रथ का सारथि परमात्मा है, चिंता की कोई बात नहीं. आप अवश्य ही अपने गंतव्य पर पहुंचेंगे. प्राय: लोगों के मन में आध्यात्मिक मार्ग के प्रति कोरी उत्सुकता ही रहती है. वे सोचते हैं कि यदि वे कुछ यौगिक अभ्यास करेंगे, तो कुछ शक्तियां एवं सिद्धियां प्राप्त कर लेंगे. जब ऐसा नहीं होता, तो वे धैर्य खो बैठते हैं एवं अभ्यास करना भी बंद कर देते हैं. वे आध्यात्मिक मार्ग को ही छोड़ देते हैं तथा योग एवं योगियों का तिरस्कार तक करने लगते हैं. मात्र उत्सुकता आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति में सहायक नहीं होगी. आत्म-निरीक्षण कीजिये. अपने विचारों का विश्लेषण कीजिये तथा पता लगाइये कि आपके अंदर सच्ची आध्यात्मिक जिज्ञासा है या केवल क्षणिक कुतूहल. सतत् सत्संग, श्रेष्ठ आध्यात्मिक पुस्तकों के अध्ययन, प्रार्थना, जप, तप एवं ध्यान द्वारा अपनी उत्सुकता को मुक्ति की सच्ची पिपासा में रूपांतरित कीजिये.
केवल उत्तम उद्देश्यों से काम नहीं चलेगा. उनके साथ पर्याप्त प्रयास भी होना चाहिए. साथ ही काम, क्रोध, लोभ, अहंकार एवं स्वार्थपरता से स्वयं को सुरक्षित रखना होगा. नैतिक शुद्धि एवं आध्यात्मिक आकांक्षा एक साधक के जीवन की प्राथमिक आवश्यकताएं हैं. नैतिक मूल्यों में दृढ़ आस्था के बिना आध्यात्मिक जीवन तो संभव ही नहीं है, इसके बिना आप उत्तम सांसारिक जीवन भी नहीं जी सकते. इसके लिए कठोर आत्मानुशासन अत्यंत आवश्यक है. आत्मानुशासन का तात्पर्य दमन से नहीं है, बल्कि अपने अंदर के पशु को नियंत्रित करने से है. आत्मानुशासन का वास्तविक अर्थ है- हमारे अंदर के पशु का मानवीकरण एवं मानव का आध्यात्मीकरण. यह बात सच है कि आध्यात्मिक मार्ग ऊबड़-खाबड़ और कंटकाकीर्ण होता है. अध्यवसाय एवं धैर्य के साथ इन कांटों को उखाड़ फेंकना होगा.- स्वामी शिवानंद सरस्वती