21.1 C
Ranchi
Monday, February 10, 2025 | 08:13 pm
21.1 C
Ranchi
HomeReligionपरमेश्वर की तटस्थ शक्ति

परमेश्वर की तटस्थ शक्ति

- Advertisment -

जीवात्मा के साथ निरंतर रहनेवाला परमात्मा परमेश्वर का प्रतिनिधि है. वह सामान्य जीव नहीं है. इसका स्पष्टीकरण करने के लिए भगवान कहते हैं कि वे प्रत्येक शरीर में परमात्मा रूप में विद्यमान हैं. वे जीवात्मा से भिन्न हैं, पर हैं, दिव्य हैं.

जीवात्मा किसी विशेष क्षेत्र के कार्यों को भोगता है, लेकिन परमात्मा किसी सीमित भोक्ता के रूप में या शारीरिक कर्मों में भाग लेनेवाले के रूप में विद्यमान नहीं रहता. आत्मा तथा परमात्मा भिन्न-भिन्न हैं. परमात्मा के हाथ-पैर सर्वत्र रहते हैं, लेकिन जीवात्मा के साथ ऐसा नहीं होता है.

चूंकि परमात्मा परमेश्वर है, अतएव वह अंदर से जीव की भौतिक भोग की आकांक्षा पूर्ति की अनुमति देता है. परमात्मा की अनुमति के बिना जीवात्मा कुछ भी नहीं कर सकता. जीव भुक्त है और भगवान भोक्ता या पालक है. जीव अनंत हैं और भगवान उन सबमें भिन्न रूप में निवास करता है.

प्रत्येक जीवन परमेश्वर का नित्य अंश है. लेकिन जीव में परमेश्वर के आदेश को अस्वीकार करने की प्रकृति पर प्रभुत्व जताने के उद्देश्य से स्वतंत्रतापूर्वक कर्म करने की प्रवृत्ति पायी जाती है. चूंकि उसमें यह प्रवृत्ति होती है, अतएव वह परमेश्वर की तटस्थ शक्ति कहलाता है.

– स्वामी प्रभुपाद

जीवात्मा के साथ निरंतर रहनेवाला परमात्मा परमेश्वर का प्रतिनिधि है. वह सामान्य जीव नहीं है. इसका स्पष्टीकरण करने के लिए भगवान कहते हैं कि वे प्रत्येक शरीर में परमात्मा रूप में विद्यमान हैं. वे जीवात्मा से भिन्न हैं, पर हैं, दिव्य हैं.

जीवात्मा किसी विशेष क्षेत्र के कार्यों को भोगता है, लेकिन परमात्मा किसी सीमित भोक्ता के रूप में या शारीरिक कर्मों में भाग लेनेवाले के रूप में विद्यमान नहीं रहता. आत्मा तथा परमात्मा भिन्न-भिन्न हैं. परमात्मा के हाथ-पैर सर्वत्र रहते हैं, लेकिन जीवात्मा के साथ ऐसा नहीं होता है.

चूंकि परमात्मा परमेश्वर है, अतएव वह अंदर से जीव की भौतिक भोग की आकांक्षा पूर्ति की अनुमति देता है. परमात्मा की अनुमति के बिना जीवात्मा कुछ भी नहीं कर सकता. जीव भुक्त है और भगवान भोक्ता या पालक है. जीव अनंत हैं और भगवान उन सबमें भिन्न रूप में निवास करता है.

प्रत्येक जीवन परमेश्वर का नित्य अंश है. लेकिन जीव में परमेश्वर के आदेश को अस्वीकार करने की प्रकृति पर प्रभुत्व जताने के उद्देश्य से स्वतंत्रतापूर्वक कर्म करने की प्रवृत्ति पायी जाती है. चूंकि उसमें यह प्रवृत्ति होती है, अतएव वह परमेश्वर की तटस्थ शक्ति कहलाता है.

– स्वामी प्रभुपाद

You May Like

Prabhat Khabar App :

देश, दुनिया, बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस अपडेट, टेक & ऑटो, क्रिकेट राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां.

- Advertisment -

अन्य खबरें

- Advertisment -
ऐप पर पढें