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शक्ति के लिए ध्यान-माध्यम

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मन की पहली शक्ति है कल्पना. कल्पना-शक्ति का उपयोग किये बिना कोई भी आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता. ध्यान के अभ्यास-काल में हम बार-बार कहते हैं-कल्पना मत करो, कल्पना मत करो, विकल्प मत करो. किंतु काम के समय कल्पना की बहुत अपेक्षा होती है. निर्विकल्प शक्ति के द्वारा कल्पना-शक्ति का विकास होता है. यह […]

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मन की पहली शक्ति है कल्पना. कल्पना-शक्ति का उपयोग किये बिना कोई भी आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता. ध्यान के अभ्यास-काल में हम बार-बार कहते हैं-कल्पना मत करो, कल्पना मत करो, विकल्प मत करो. किंतु काम के समय कल्पना की बहुत अपेक्षा होती है.
निर्विकल्प शक्ति के द्वारा कल्पना-शक्ति का विकास होता है. यह न मानें कि निर्विकल्प दशा में और कल्पना की मनोदशा में कोई सर्वथा विरोध है. उनमें सर्वथा विरोध ही नहीं है. ध्यान-काल में कोई विकल्प न करे, कोई कल्पना न करे शक्ति के संवर्धन के लिए. ध्यानमुक्त काल में कल्पना करे. दोनों जरूरी हैं. ध्यान के विकास के लिए कल्पना करना बहुत जरूरी है.
ध्यान में बैठने से पूर्व कल्पना करनी चाहिए. अर्हत् की कल्पना करें. मन में एक स्वस्थ आकृति का निर्माण करें. जब तक कोई आकृति स्पष्ट नहीं होती, तब तक काम आगे नहीं बढ़ सकता. सबसे पहले कल्पना करनी होती है, एक चित्र का निर्माण करना होता है कि मैं यह बनना चाहता हूं. ध्यान में यह क्षमता है कि वह व्यक्ति को अपने संकल्प के अनुसार ढाल सकता है.
जैसा चाहें वैसा बनें- इसमें ध्यान माध्यम बनता है. एक व्यक्ति चाहता है कि मैं अमुक व्यक्ति को पीड़ित करूं. ऐसी शक्ति भी ध्यान के द्वारा ही प्राप्त होती है, एकाग्रता के द्वारा ही प्राप्त होती है. एकाग्रता के द्वारा शक्ति को अर्जित कर अच्छा काम करना चाहिए. आत्मविकास करनेवाले व्यक्ति का यह पहला कर्तव्य है कि जो बनना है उसका वह चित्र बनाये.
आचार्य महाप्रज्ञ

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